पूजा में शंख क्यों बजाया जाता है?
Pooja mein Shankh kyo bajaya jata hai?
धर्मग्रन्थों में शंख को विजय, सुख, समृद्धि के साथ-साथ यश देने वाला भी बतलाया गया है। तांत्रिक पूजा में दक्षिणावर्ती शंख का विशेष माहात्म्य है। अथर्ववेद के चौथे काण्ड में ‘शंखमणि सूक्त’ के अन्तर्गत शंख की महिमा का वर्णन है। शंख को रक्षक, अज्ञान और निर्धनता को दूर करने वाला, आयुवर्द्धक तथा राक्षसों और भूत-प्रेतों को दूर करने वाला कहा गया है।
आध्यात्मिक दृष्टि से भी शंख का महत्त्व है ही। अब वैज्ञानिकों ने भी इसके महत्त्व को स्वीकार कर लिया है। वैज्ञानिकों का मानना है कि शंख की ध्वनि जहाँ तक जाती है, वहाँ तक वे विषाणु या तो नष्ट हो जाते हैं या मूर्च्छित हो जाते हैं। शंख फूंकने से फेफड़े मजबूत होते हैं और हृदय से सम्बन्धित कोई रोग भी नहीं होता। बाँझपन से ग्रस्त स्त्री अगर नियमित रूप से इसमें भरे जल का सेवन करे, तो उसके सन्तानवती होने सम्भावना प्रबल होती है।
महाभारत में युद्ध के आरम्भ और युद्ध के समाप्त होने आदि अवसरों पर शंखध्वनि करने का वर्णन आया है। इसके साथ ही पूजा, आरती, कथा, धार्मिक अनुष्ठानों आदि के आरम्भ व अन्त में भी शंख-ध्वनि करने का विधान है। इसके पीछे धार्मिक आधार तो है ही, वैज्ञानिक रूप से भी इसकी प्रामाणिकता सिद्ध हो चुकी है। इस मामले में वैज्ञानिकों का मानना है कि शंख-ध्वनि के प्रभाव से सूर्य की किरणें बाधक होती हैं। अतः प्रात:काल व सायंकाल में जब सूर्य की किरणें निस्तेज होती हैं, तभी शंखध्वनि करने का नियम है। इससे पर्यावरण शद्ध रहता है। अथर्ववेद के अनुसार, ‘शंखन हत्वा रक्षासि‘ अर्थात ‘शंख से सभी राक्षसों का नाश होता है’ और यजुर्वेद के अनुसार ‘अवरस्परायशंखध्वम‘ अर्थात् ‘युद्ध में शत्रुओं का हृदय दहलाने के लिए शंख फूंकने वाला व्यक्ति आवश्यक है।’ यजुर्वेद में ही यह भी कहा गया है कि ‘यस्त शंखध्वनि कुर्यात्पूजाकाले‘, विशेषतः, ‘वियुक्तः सर्वपापेन विष्णुनां सह मोदते‘ अर्थात ‘पजा के समय जो व्यक्ति शंखध्वनि करता है, उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।’ आयुर्वेद के अनुसार शंख फूंकने वाले के साँस से सम्बन्धित रोग जैसे-दमा आदि एवं फेफड़ों के रोग नहीं होते हैं। रुक-रुक कर बोलने व हकलाने वाले अगर नित्य शंखजल का पान करें तो उन्हें लाभ मिल सकता है।
निरन्तर शंख फूंकने वाले व्यक्ति को कभी फुफ्फुस (फेफड़ों) का रोग नहीं हो सकता। दमा ऊरुक्षत, कास, सर्दी, प्लीहा, यकृत और इनफ्लूएंजा जैसे रोगों के पूर्वरूप में शंखध्वनि लाभप्रद है। इसलिए देवमन्दिर, कथाभवन आदि स्थानों में जहाँ मनुष्यों का अधिक जमाव होता हो और उनके मुख से निकलने वाले श्वास से वायुमण्डल दूषित होने का पर्याप्त अवसर हो, ऐसे स्थानों में शंख बजाकर प्रथम ही वायुमण्डल को विशुद्ध बनाना बहुत लाभप्रद है।
शंख का जल क्यों छिड़का जाये?
(नीराजन) आरती के प्रसंग में शंख में जल भरकर श्रद्धालुओं पर छिड़कने का उल्लेख शास्त्रों में किया गया है, यह क्यों? ब्रह्मवैवर्त पुराण में लिखा है-
जलेनापूर्य शंखे च तत्र संस्थापयेद् बुधः। पूजोपकरणां तेन, जलेन क्षालयेत्पुनः॥
अर्थात् ‘शंख में जल भरकर देवस्थान में रखे, पुन: उससे समस्त पूजा-सामग्री का प्रक्षालन करे।’
‘वस्तु वैचित्र्यवाद’ के अनुसार शंखस्थ जल और वह भी विष्णु भगवान् की प्रतिमा के सामने उपहृत परम पवित्र माना गया है। अथर्ववेद में शंख को ‘मणि’ नाम से स्मरण किया है और इसकी महिमा के वर्णन में पूरा एक सूक्त भरा है। पात्र के संयोग से अमुक वस्तु भी उसके गुणों से प्रभावित हो जाती है, यह प्रत्यक्ष देखा जाता है। जैसे-पीतल के बर्तन में मट्ठा विकृत हो जाता है, काँसे और ताँबे के बर्तन में भी घृत आदि द्रव्य बिगड़ जाते हैं, इसी प्रकार अमुक पात्र में तद्-तद् वस्तुएँ तद्गुण-सम्पन्न हो जानी स्वाभाविक हैं। इसलिए शंखस्थ पावक गुणों से अन्यान्य वस्तुओं और श्रद्धालुओं को भी लाभान्वित कैसे किया जाये-इसका सहज उपाय यही हो सकता है कि तत्संयुक्त जल में शंख के गुणों का आधान करके फिर उसे सर्वत्र वितरण किया जाये। इस क्रिया में यह भी समझ लेना आवश्यक है कि जल में डाले हुए द्रव्यों की विशेषता सौ गुणी हो जाती है। इसलिए शंखस्थ जल के सेचन से संस्पृष्ट समस्त वस्तुएँ विशुद्ध हो जाती हैं। सगर्भा स्त्री यदि शंखस्थ जल द्वारा नहलाये गये शालिग्राम शिला का चरणामृत पान करे, तो अन्यान्य लाभों के साथ उससे प्रसूत बालक कभी मूक नहीं हो सकता। रुक-रुककर बोलने वाले हकले व्यक्ति भी शंखजल पान करके रोगमुक्त हो जाते है।