वैक्यूम क्लीनर
Vacuum Cleaner

History of Vacum Cleaner in Hindi
(वस्तुओं की सफाई के लिए)
सफाई का महत्व मनुष्य को प्रारम्भ में ही ज्ञात हो गया था। वह अपनी हर चीज को झाड़-पोंछकर, धोकर साफ रखने का प्रयत्न करता था। बाद में जब दरी, कालीन आदि चीजें प्रयोग में आने लगीं तो सफाई में समस्या आने लगी। शहरों में औद्योगिक क्षेत्रों में धूल की समस्या बढ़ने लगी। सफाई के सामान्य साधन उड़ाने में तो सक्षम थे, पर एक जगह से उड़ी धूल दूसरी जगह पर फिर जम जाती थी और सफाई समस्या जस-की-तस रह जाती थी। इस दिशा में अनेक प्रयास हुए। पहले-पहल जो उपकरण बनाए गए, वे वैक्यूम पर आधारित तो थे, पर वे धूल खींचने की बजाय धूल को तेज से उड़ाते थे। जब उन उपकरणों को चलाया जाता तो बेतहाशा धूल उड़ती थी। तब वहां पर खड़े रहना भी सफाई कर्मचारी के लिए दूभर हो जाता था।
अब वैज्ञानिकों ने सोचा कि यदि धूल को अन्दर खींच लिया जाए तो सारी समस्या हल हो जाएगी। एकत्र धूल को बाद में सुरक्षित स्थान पर फेंका जा सकता है।
उस समय बिजली नहीं थी। अतः मोटर के जरिए वैक्यूम उत्पन्न करना सम्भव नहीं था। हाथ में पंप से वैक्यूम उत्पन्न किया जाने लगा। वैक्यूम क्लीनर को चलाने के लिए दो लोगों की आवश्यकता होती थी। एक व्यक्ति लगातार पंप चलाकर वैक्यूम उत्पन्न करता था और दूसरा व्यक्ति साथ लगे हौज को कालीन आदि के पास घुमाता था, ताकि धूल वहां से खिंचकर वैक्यूम क्लीनर के बक्से में एकत्र हो जाए।
प्रारम्भ में फिल्टर भी नहीं था। धूल, गंदगी के अलावा छोटी-मोटी चीजें भी खिंचकर बक्से में पहुंच जाती थीं। एक बार जब एक विक्रेता अपने नए वैक्यूम क्लीनर का प्रदर्शन कर रहा था, तो ह्यूबर्ट बूथ नामक व्यक्ति ने भी उसे देखा। उसे लगा कि इस उपकरण में अभी भी कमी है। इसमें बीच में फिल्टर लगाया जाना चाहिए।
वह सोचता रहा। उसने घर में तरह-तरह के प्रयोग भी किए। इसी क्रम में उसने अपना रूमाल लिया और गंदे कालीन के सामने रखा। अब वह रूमाल मुंह में लगाकर जोर-जोर से मुंह से सांस खींचने लगा। थोड़ी देर में उसने देखा कि रूमाल का वह हिस्सा, जो मुंह के सामने था, काला हो गया है। उसे अपनी समस्या का हल मिल गया। उसने कपड़े को फिल्टर के रूप में इस्तेमाल करना प्रारम्भ कर दिया।
बूथ हाथ से उत्पन्न किए जाने वाले वैक्यूम से भी सन्तुष्ट नहीं था। विजली उस समय थी नहीं। उसने पैसे से मोटर चलाकर वैक्यूम उत्पन्न किया और कपड़े के फिल्टर का इस्तेमाल किया। यह नया क्लीनर ज्यादा सफल रहा।
पर यह वैक्यूम क्लीनर दैत्याकार था। इसका वजन एक किंवटल से भी ज्यादा था। बूथ ने सोचा कि उसे बेचना कठिन है। अब उसने सफाई-सेवा प्रारम्भ की। उसने घोड़ागाड़ी पर अपनी मशीन को लादा और लोगों ने घर-घर जाकर सफाई करने लगा। उसकी गाड़ी में सैकड़ों फीट लम्बे हॉज पाइप लगे थे, जो घर की खिड़कियों से अन्दर जाते थे और गंदगी खींचकर बाहर कर देते थे।
पर यह सेवा ए साल ही चल पाई। इस सफाई-सेवा में शोर बसून होता था। घरवालों को बाहर बैठना पड़ता था। पड़ौसी भी परेशान हो जाते थे। शोर से घोडागाड़ी के घोड़े भी बिदक जाते थे और दुर्घटना का खतरा उत्पन्न हो जाता था।
जब बिजली की मोटर आई तो दैत्याकार वैक्यूम क्लीनर का आकार । छोटा होता चला गया। सन् 1905 में सेन फ्रांसिस्को की कम्पनी ने जो । वैक्यूम क्लीनर बनाया, उसका वजन लगभग 40 किलो था। उसे ट्रॉली पर रखकर एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जा सकता था।
दो साल बाद ओहियो में और भी छोटा वैक्यूम बना। सन् 1908 में हूवर ने इस व्यवसाय में प्रवेश किया। अब वैक्यूम क्लीनर अधिकांश घरों में उपलब्ध होने लगा है। इसका इस्तेमाल भी आसान हो गया है।