History of “Tea”, “चाय” Who & Where invented, Paragraph in Hindi for Class 9, Class 10 and Class 12.

चाय

Tea

History of Tea

History of Tea

(ताजगी और स्फूर्ति के लिए)

विश्व में चाय का सर्वश्रेष्ठ उत्पादको देश भारत है, मगर यहां के लोग तब चाय के स्वाद से भी परिचित नहीं थे। यहां के लोगों को न सिर्फ चाय का स्वाद लेने के लिए, बल्कि उसकी लत लगाने के लिए चाय बनाकर बड़े-बड़े ड्रमों में सड़कों पर रखी जाती थी और आते-जाते  लोगों को वह गरमागरम चाय मुफ्त पिलाई जाती थी। उसी का फल है कि एक अरब से भी अधिक आबादी वाले इस देश में सत्तर प्रतिशत लोग दिन में दो या उससे अधिक बार चाय अवश्य पीते हैं।

चाहे ताजगी प्राप्त करनी हो या सिरदर्द को दूर भगाना हो अथवा कड़कड़ाती ठंड से थोड़ी राहत पानी हो या किसी का आतिथ्य-सत्कार करना हो-हर समय चाय का ही सहारा लिया जाता है।

हमारे देश में चाय का प्रचलन भले ही हाल के तीस-पैंतीस वर्षों में  अधिक हुआ हो, लेकिन संसार में मनुष्य चाय का उपयोग हजार साल से भी पहले से करता आ रहा है। प्राप्त तथ्यों के अनुसार, चाय का सबसे पहला उपयोग चीन में किया गया था। उस समय वहां के सम्राट् थे-शेन वे सदा उबला पानी ही पीते थे। हमेशा की तरह एक दिन जब उनका रसोइया ली की अंगीठी पर पानी उबाल रहा था, तभी उसी (अंगीठी वाली) लकड़ी की टहनी की कुछ पत्तियां असावधानी के कारण पानी के बर्तन में गिर गई और साथ ही उबल भी गई।

जब सम्राट ने वह पानी पिया तो तुरन्त रसोइया को बुलवाया। रसोइया  तो डर के मारे कांप रहा था, लेकिन सम्राट् ने उसे सजा देने की बजाय पुरस्कार दिया। दरअसल, उन उबली पत्तियों की खुशबू के कारण वह पानी उन्हें बड़ा ही मनभावन लग रहा था। उसके बाद से तो वे प्रतिदिन उसी तरह उबली हुई पत्तियों वाला पानी पीने लगे। वे पत्तियों  चाय की ही थीं।

इस प्रकार वह सम्राट् दुनिया में चाय पीने वाले प्रथम व्यक्ति हुए; लेकिन दूसरे मायने में देखें तो वह चाय थी ही नहीं, क्योंकि उसमें चाय की उबली पत्तियां तो थीं, मगर उसमें न तो दूध था, न ही चीनी थी।

जो भी हो, उस सम्राट् के बाद क्रमशः उनके दरबारी, सैनिक और  प्रजाजन भी चाय पीने लगे। इस प्रकार पूरे चीन के लोग चाय पीने के अभ्यस्त हो गए।

चीन से यह चाय एशिया के विभिन्न देशों में आई; लेकिन उनमें (जिनमें हमारा देश भी था) इसका उपयोग फैलाव नहीं ले पाया। उसके लगभग डेढ़ हजार वर्ष बाद सन् 1650 में ईस्ट  इंडिया कम्पनी के अधिकारियों के माध्यम से चाय इंग्लैंड में पहुंची। वहां के लोगों ने इसे तत्काल हाथोंहाथ लिया। लंदन की गलियों तक में चाय बनाई और बेची जाने लगी। चूंकि चाय आती थी चीन से और इंग्लैंड में चाय की खपत अधिक थी, इसलिए इंग्लैंड का काफी धन  चीन की झोली में जाने लगा। इसी वजह से इंग्लैंड में भरपूर प्रयास किया गया कि वहां के लोग चाय पीना छोड़ दें। इस प्रयास के तहत खूब बढ़ा-चढ़ाकर प्रचारित किया गया कि चाय पीने से मनुष्य को काफी स्वास्थ्य हानि उठानी पड़ती है। हेल्स नामक एक पादरी ने तो यहां  तक कहा कि चाय में डुबोने पर सूअर के बच्चों की पूंछ के बाल झड़ जाते हैं। उसने ऐसा करके भी दिखाया। लेकिन इन समस्त प्रचारों का कोई प्रभाव लोगों पर नहीं पड़ा।

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