कांगज
Paper
(कागज का आविष्कार चीन के ‘त्साई लुन’ ने किया)
दिलचस्प बात यह है कि जूलियस सीजर, मूसा, क्लियोपेट्रा आदि के बारे में इतिहासकारों व साहित्यकारों ने सैकड़ों-हजारों कागज काले किए, पर इन महापुरुषों ने अपने जीवनकाल में कागज की शक्ल तक नहीं देखी। हालांकि उनके जमाने में भी लिखने की परम्परा थी, पर उस समय पत्थरों, ताड़पत्रों, भोजपत्रों, पपारस वृक्ष की छाल, जानवरों की खाल आदि पर लिखा जाता था। लेकिन लिखने वाले उपर्युक्त चीजों पर लिखकर सन्तुष्ट नहीं थे। वह ऐसी चीज पर लिखना चाहते थे, जिस पर लिखना आसान हो और लिखने के बाद उसे सुरक्षित रखा जा सके।
105 ईसवी में चीन के साई लुन नामक व्यक्ति ने कागज का आविष्कार किया। पेशे से राजनीतिज्ञ त्साई लुन ने पुरानी रस्सी के टुकड़े, कबाड़, पेड़ की छाल, मछली पकड़ने के सड़े हुए जाल आदि को काफी देर तक पानी में भिगोया और जब वे सब गल गए तो उनकी लुगदी बना ली। इसके बाद उसने उस लुगदी को एक मोल्ड में डालकर उससे एक पतली परत बनाई, जो जो सूखने के बाद विश्व का पहला कागज होने का गौरव पा सकी।
अब लोग इस पर लिखने लगे। अन्य चीजों की अपेक्षा उस पर लिखना आसान था और लिखने के बाद इसे संभालकर रखा भी जा सकता था। कागज बनाने की यह कला पांच सौ सालों तक चीन में ही रही। सातवीं सदी में पहले-पहल यह जापान पहुंची और उसके बाद विश्व के अन्य भागों में फैल गई।
751 ईसवी में मुसलिम आक्रमणकारी चीन से कुछ कागज निर्माताओं को पकड़कर अपने साथ ले गए और कागज-निर्माण की कला का अपने यहां प्रसार किया। वहां से यह कला यूरोप जा पहुची।।
पहले पुरानी जैविक वस्तुओं, फटे-पुराने, गले सड़े कपड़ों आदि से । कागज बनाया जाता था। इन चीजों को गलाकर उनकी लुगदी तैयार की जाती थी और उससे कागज की शीट तैयार की जाती थी। एक कुशल कारीगर दिन भर में लगभग 750 शीट तैयार कर लेता था।
जब पुरानी चीजों, कपड़ों आदि की कमी होने लगी तो स्टेनवुड नामक कागज निर्माता ने इस समस्या का एक विचित्र हल निकाला। उसने मिस्र से ममियों (पुराने सुरक्षित रखे शव) को मंगाना प्रारम्भ कर दिया। वे शव अत्यंत बढ़िया कपड़ों में लिपटे होते थे। स्टेनवुड ने उनका कपड़ा उतारकर उनका इस्तेमाल प्रारम्भ कर दिया और शव को जमीन में गाड़ने लगा।
इस पुराने कपड़े से बेहतरीन कागज बनने लगा। मोटा भूरा कागज काफी मजबूत होता था और दुकानदार इसे मांस व सब्जी आदि पैक करने के लिए इस्तेमाल करने लगे; पर दुष्कर्म माना जाने वाला यह तरीका अधिक दिनों तक नहीं चल पाया। चंद महीने बाद ही पुराने शवों के सम्पर्क में आने के कारण उसके कर्मचारी हैजा के शिकार हो गए और स्टेनबुड को यह तरीका बंद करना पड़ा।
तब बहुत थोड़ा कागज बन पाता था और वह काफी महंगा भी होता था। उन्नीसवीं सदी में विलियम टावर नामक एक अमेरिकी ने एक नई तकनीक तैयार की, जिसमें लकड़ी की लुगदी तैयार की जाती थी। यह नई प्रक्रिया आसान भी थी और सस्ती भी। थोड़े ही समय में पूरे विश्व में इसे अपना लिया गया।
इसके बाद कागज की वस्तुएं उपलब्ध होने लगीं। सन् 1841 में एक व्यक्ति ने कागज का लिफाफा तैयार कर दिया। फिर तो इसका काफी इस्तेमाल होने लगा। सन् 1894 में कागज का बैग बनाने की स्वचालित मशीन तैयार कर ली गई, जिससे कागज की खपत भी बढ़ी और बैगों का इस्तेमाल भी खूब होने लगा।
कागज से सम्बन्धित कई रोचक घटनाएं हैं। पहले जब लोग फाउंटेन पेन से कागज पर लिखते थे तो कई बार कागज पर स्याही फैल जाती थी। उसे बड़ी मुश्किल से सुखाया जाता था। कभी-कभी उस पर तो रेत भी डालनी पड़ती थी। इस कारण लोग काफी परेशान थे और उसका हल ढूंढ़ने की कोशिश में थे। दूसरी ओर कागज बनाने की प्रक्रिया में सरेस लगाया जाता था। इससे कागज चिकना और लिखने लायक
हो जाता था। एक बार इंग्लैंड के बर्कन शायर स्थित एक कागज मिल में कागज तैयार किया जा रहा था। भूलवश एक कर्मचारी ने कागज की एक गड्डी में सरेस नहीं मिलाया। जब वह कागज बनकर प्रबंधक के पास पहुंचा तो उसने उस कागज के सैंपल पर लिखकर उसकी जांच की। उसने पाया कि इस कागज पर स्याही फैलकर तुरन्त सूख जाती है। पहले तो उसे बड़ा गुस्सा आया और वह नुकसान के लिए जिम्मेदार कर्मचारी का वेतन काटने के लिए तैयार हुआ; पर थोड़ी देर में उसे खयाल आया कि इसका इस्तेमाल सोख्ता कागज के रूप में हो सकता है।
जब प्रबंधक ने उस कागज को बाजार में सोख्ता कागज के नाम से बेचा तो वह धड़ाधड़ बिक गया और गलती करने वाले कर्मचारी को दंड के बजाय इनाम दिया गया।
धीरे-धीरे कागज का इस्तेमाल बहुत बढ़ने लगा। आज दफ्तर का एक क्लर्क दिन में किलो-दो कागज या तो इस्तेमाल कर लेता है या रद्दी की टोकरी में फेंक देता है। उधर पेड़ कटकर कागज की भेंट चढ़ते रहे। पर्यावरणविदों ने शोर मचाना प्रारम्भ कर दिया कि यदि कागज के इस्तेमाल की रफ्तार यही रही तो हर व्यक्ति सालाना आधा टन लकड़ी नष्ट करेगा और पेड़ों का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा।