कपड़े
Clothes
(मनुष्य को तन ढकने के लिए जरूरी)
प्रारम्भ में मनुष्य नंगे बदन रहता) था। सदी में उसे कपड़ों की जरूरत । महसूस हुई। उसने मारे गए जानवरों की खाल और फर को शरीर पर लपेटकर अपनी आवश्यकता की पूर्ति की पर लपेटने में उसे परेशानी होती थी। कई बार वह खुल जाती थी और उसे अपने हाथों से थमना पड़ता था। उसके हाथ दूसरे काम, जैसे-शिकार करना, सामान ढोना आदि नहीं कर पाते थे। उसने एक नुकीली हड्डी से उस खाल में दो छेद किए। और फिर हड्डी को उसमें फंसा दिया। इस प्रकार वह हड्डी बटन | का काम करने लगी।
अब मनुष्य को नंगे रहना बुरा लगने लगा; उसने कपड़ों की तलाश प्रारम्भ की। उसे ऐसे कपड़ों की तलाश थी, जो धोने पर जल्दी सूख जाएं और पहनने में अच्छे लगे। कपड़ों का आविष्कार किसने किया, यह तो ज्ञात नहीं है; पर यह अनुमान लगाया
जाता है कि उत्तपाषाण युग में कपड़े बनाने और उन्हें पहनने की परम्परा प्रांरभ हुई। धीरे-धीरे कपड़े पहनना सिर्फ शरीर के बचाव के लिए ही आवश्यक नहीं रहा वरन् वह समाज में व्यक्ति की स्थिति को भी दर्शाने लगा। गरीब लोग साधारण वस्त्र पहनने लगे, जबकि अमीर लोग उत्तम वस्त्रों की तलाश करने लगे।
अमेरिका में 1793 में दो महत्वपूर्ण घटनाएं हुई। एली व्हाइट ने नो बकपासा के रेशों से बीज निकालने के लिए मशीन तैयार की। दूसरी ओर सामुवोल्ला स्लेटर, जो बुनाई मजदूर था, ने पहली कपड़ा मिल लगाई।
अब मानुष्य कपास से बने सूती कपड़ों से सन्तुष्ट नहीं था। उसने कृत्रिमा रेशों से मनपसन्द कपड़े तैयार करना प्रांरभ किया। नायलॉन इस दिशा में पहला प्रयास था। धीरे-धीरे सिंथेटिक कपड़ों की बाढ़-सी आ गाई
पहले कपड़े हाथ से सिल जाते थे, फिर सिलाई मशीन आ गई। लोग ह्माथा या पौरों से चलनेवाली मशीन से कपड़े सिलने लगे। उसके बाद बिजली की स्वचालित मशीनें आई और अब रेडीमेड कपड़ों की बाढ़-सी आ गाई है।
कपड़ों की दिशा में प्रयोग अभी जारी हैं। पर्वतारोहण के लिए अलग कपड़े बनाए जाते है। अंतरिक्ष यात्री अलग किस्म के कपड़े पहनते हैं।