मुँह में राम बगल में छुरी
Muh me Ram Bagal me Churi
अमर ने स्कूल से आकर दादाजी को बताया-“दादाजी, हमारी क्लास में एक लड़का है। उसका नाम है रमेश। वह अंदर-ही-अंदर मुझसे बहुत चिढता है, क्योंकि मुझे हमेशा उससे ज्यादा अंक मिलते हैं। लेकिन वह ऊपर से बड़ी मीठी-मीठी बातें करता है।”
“हाँ, दादाजी! हमारी क्लास में भी एक ऐसी लड़की है, आशी!” लता बोली। अमर और लता की बातें सुनकर दादाजी बोले-“बेटे, इस तरह के लोगों के लिए ही कहा जाता है, मुँह में राम, बगल में छुरी। ऐसे लोग ऊपर से तो बड़ी मीठी और चिकनी-चुपड़ी बातें करते हैं, लेकिन अंदर से जलते रहते हैं। इस कहावत के पीछे भी एक रोचक कहानी है, सुनो!” दादाजी ने कहानी शुरू की दो दोस्त थे। एक का नाम था दयाराम और दूसरे का नाम था गयाराम। दयाराम बड़ा ही दयालु, ईमानदार और मेहनती था। जबकि गयाराम बड़ा ही ईष्र्यालु, बेईमान और आलसी था। दयाराम हमेशा गयाराम की मदद करता था और उसे सही रास्ते पर चलने की सीख देता। था। लेकिन गयाराम अपनी आदत से मजबूर था। वह दयाराम से अंदर-ही-अंदर जलता था। “ दयाराम की परचून की दुकान थी। वह उचित दाम पर बढ़िया सामान बेचता था। इसलिए लोग उस पर विश्वास करते थे और उसका आदर करते थे। उसकी दुकान पर हमेशा ग्राहकों की भीड़ लगी रहती थी। वह रोजाना अच्छी कमाई कर लेता था। वह तन, मन और धन से जरूरतमंद लोगों की मदद भी करता था।” कहते-कहते दादाजी थोड़ी देर चुप रहे।
और गयाराम क्या करता था, दादाजी?” अमर ने पूछा। दादाजी बोले-4 गयाराम दूध बेचने का काम करता था। वह दूध में पानी मिलाकर महँगे दाम पर बेचता था। इसलिए लोग उस पर। विश्वास नहीं करते थे। उसके पास बहुत कम ग्राहक जाते थे। उसकी आमदनी बहुत कम होती थी। वह अपनी गाय-भैंसों को अच्छा चारा भी। नहीं खिलाता था। वह कभी किसी की मदद भी नहीं करता था। लोग उसे पसंद नहीं करते थे।
दयाराम अपनी मेहनत और ईमानदारी से एक अमीर आदमी बन गया। जबकि गयाराम वहीं का वहीं रह गया। वह दयाराम की दौलत और मशहूरी से मन-ही-मन जलने लगा। कभी-कभी तो वह यहाँ तक। सोचता था कि दयाराम का काम तमाम कर दिया जाए। वह मौके की तलाश में था। एक दिन उसने नहा-धोकर नए कपड़े पहने। उसने कुत। की बगल वाली जेब में एक छरी रख ली और दयाराम से मिलने चल पडा।” दादाजी कहते-कहते कुछ देर के लिए रुक गए और फिर बोले| वह दयाराम के पास पहुँचकर बोला-‘राम-राम दोस्त!’ गयाराम से आते देख दयाराम उठ खड़ा हुआ और उसे अपने गले से लगा लिया। वह बोला-‘कहो दोस्त, कैसे हो? आज बहुत दिनों बाद आए हो।’ यह अनकर गयाराम ने मन में सोचा-‘आज तुम्हारा क्रियाकर्म करने आया हैं। फिर उसने दयाराम से कहा-‘दोस्त, बहुत दिनों से मिलने का मन कर रहा था।
रहा नहीं गया तो आ गया। कहते हुए गयाराम ने दयाराम के घर में चारों तरफ नजर दौड़ाई। वह उसके ठाट-बाट देखकर जल उठा. लेकिन सँभलकर बोला-‘दोस्त, तुम कितने अच्छे आदमी हो। रामजी तुम्हें सुखी रखें। कहते हुए गयाराम ने छुरी वाली जेब में हाथ डाला। दयाराम ने देख लिया और मन-ही-मन बोला-‘वाह दोस्त! मुँह में राम, बगल में छुरी। दयाराम ने अनजान बनकर गयाराम की बहुत खातिरदारी की और उसे कीमती उपहार भी भेंट किए। अपने दोस्त का सच्चा प्रेम देखकर गयाराम मन-ही-मन बड़ा शर्मिंदा हुआ। ” कहते हुए दादाजी ने कहानी समाप्त की।
कहानी सुनकर अमर बोला-“दादाजी, हमें ऐसे लोगों से सावधान रहना चाहिए। न जाने मीठी-मीठी बातें करके हमें कब धोखा दे जाएँ।”