जाको राखे साइयाँ मार सके न कोय
Jako rakhe Saiya maar sake na koi
दादाजी अखबार पढ़ रहे थे। अमर और लता उनके पास बैठे हुए अपना स्कूल का काम कर रहे थे। तभी दादाजी बोले-“बड़ी अजीब खबर है। एक जगह भूकंप आया। हजारों मकान ढह गए। एक मकान के गिरने से उसके मलबे में दबकर एक परिवार के सारे लोग मर गए। जब बचाव दल वहाँ पहुँचा और मलबा हटाया तो एक छह माह का मासूम बच्चा जीवित निकला। इसी को कहते हैं-जाको राखे साइयाँ मार सके न कोय।”
अमर और लता दादाजी की बातें ध्यान से सुन रहे थे। लता बोली-“दादाजी, इसका मतलब है कि जिसके ऊपर भगवान जी की कृपा है, उसे कोई नहीं मार सकता।” “शाबाश बेटे! बिलकुल ठीक कहा तुमने। चलो इस कहावत के बारे में तुम्हें एक कहानी सुना देता हूँ। सुनोगे?” दादाजी बोले “हाँ, दादाजी!” अमर और लता दोनों एक साथ बोले।
दादाजी ने कहानी शुरू की-“ एक जंगल में एक शेरनी रहती थी। उसके दो छोटे-छोटे बच्चे थे। अभी वे अपनी माँ का दूध ही पीते थे। उन्हें शिकार करना नहीं आता था। जब कभी शेरनी को भूख लगती, तब वह अपने दोनों बच्चों को झाड़ियों के पीछे छिपाकर शिकार करने चली जाती थी। बाद में शेरनी के बच्चे आपस में खेलते रहते थे। एक-दूसरे के पीछे भाग-दौड़ करते रहते। धीरे-धीरे दोनों बच्चे बड़े होने लगे। अब वे अपनी शेरनी माँ के साथ शिकार पर जाने लगे। अभी वे शिकार नहीं कर पाते थे लेकिन उनकी माँ जो शिकार करके लाती, उसमें वे अपना-अपना भाग खा लेते थे। जंगल में तरह-तरह के जानवर थे। कभी हाथियों का झुंड दिखाई देता, तो कभी हिरण और जेबरा भोजन और पानी की तलाश में चले आते। “एक दिन शेरनी को जोर से भूख लगी। वह अपने दोनों बच्चों को लेकर शिकार करने निकल पड़ी। शेरनी और उसके दोनों बच्चे एक पेड़ के नीचे छिपकर बैठ गए। थोड़ी दूरी पर ही पानी का तालाब था। उसमें हिरणों का झुंड पानी पी रहा था। शेरनी की नजर हिरण के एक बच्चे पर पड़ गई। उसने सोचा कि हिरण के बच्चे का नरम-नरम गोश्त खाकर उसके बच्चे खुश हो जाएँगे। यह सोचते हुए शेरनी अपने शिकार पर नजरें। गड़ाकर घात लगाकर बैठ गई।” दादाजी कहते-कहते रुक गए। “फिर क्या हुआ, दादाजी? क्या शेरनी उस हिरण के बच्चे को खा गई?” अमर ने बेचैनी से पूछा।
दादाजी ने कहना शुरू किया-“फिर अचानक बिजली की तेजी से शेरनी हिरणों के झुंड की तरफ भागी। यह देखते ही हिरण लंबी-लंबी छलाँग लगाते हुए भाग खड़े हुए। लेकिन हिरण का छोटा बच्चा अपनी माँ से बिछुड़कर वहीं खड़ा रह गया और जोर-जोर से चिल्लाने लगा।
इतने में शेरनी के बच्चे भी भागते हुए वहाँ पहुँच गए और हिरण के बच्चे के साथ खेलने लगे। यह देखकर शेरनी रुक गई। अपने बच्चों को हिरण के मासूम बच्चे के साथ खिलवाड़ करते हुए देखकर उसके दिल में ममता जाग गई। उसे हिरण के बच्चे पर दया आ गई। वह वहीं बैठ गई। फिर शेरनी के बच्चे और नन्हा हिरण शेरनी की पूँछ के साथ खेलने लगे। इस तरह हिरण के जिस मासूम बच्चे को शेरनी खाने के लिए दौड़ी थी, उसे भगवान् ने बचा लिया।” दादाजी बोले ।
“हाँ, दादाजी! जाको राखे साइयाँ मार सके न कोय। जिसका कोई नहीं, उसका मालिक भगवान् है।” लता ने कहा।