दयालुता सबसे बड़ा उपहार है
Dayaluta Sabse Bada Uphar He
बहुत समय पहले, जंगल में एक पक्षी रहता था। वह हर सुबह मीठा-मीठा गीत गाया करता। जब भी वह गीत गाता तो उसकी सुंदर चोंच से मोती गिरने लगते।
एक सुबह, उस जंगल से एक शिकारी निकल रहा था कि उसने पक्षी को गाते सुना। वह उसकी सुंदरता पर मोहित हो गया और उसे जाल में फांसने की सोची। फिर उसने नीचे गिरे हुए मोती देखे तो उसे यकीन हो। गया कि वह तो एक अद्भुत पक्षी को पकड़ने जा रहा था।
शिकारी शाम को जंगल में आया और पक्षी को पकड़ने के लिए जाल लगा दिया। अगली सुबह जब वह जंगल में आया तो पाया कि पक्षी जाल में पकड़ा गया था।
अगले कुछ माह तक उसने पक्षी को अपने पास ही रखा। हर सुबह पक्षी गीत गाता और उसकी चोंच से मोती झरते। शिकारी उन सभी मोतियों को अपने पास जमा कर लेता। धीरे-धीरे शिकारी बहत धनवान, जब उसने बहुत सा धन एकत्रित कर लिया तो उसने पक्षी को सोने पिंजरे में डाला और राजा को भेंट कर दिया।
राजा को भी उपहार बहुत पसंद आया और उन्होंने शिकारी को अपने दरबार में जगह दे दी। अब शिकारी राजा का दरबारी बन गया था।
दरबार में भी पक्षी गीत गाता और मोती झरने लगते। जल्द ही, राजा के भंडार में मोती भर गए और मोतियों को रखने के लिए कोई जगह नहीं बची। राजा को कुछ समझ नहीं आया तो उन्होंने उसे अपनी रानी को भेंट में दे दिया।
रानी ने पक्षी को देखा तो वह बहुत प्रसन्न हुई पर उसे पक्षियों को पिंजरे में बंद करके रखना अच्छा नहीं लगता था। रानी बहुत ही दयालु थी।
जब भी वह पक्षी को गाते सुनती तो उसका दिल उसके लिए दया से भर जाता। वह प्रायः सोचती, कितना प्यारा पक्षी है और इसे सुनहरे पिंजरे में बंदी बना रखा है। इसे तो खुले आकाश में उड़ने की छूट दी जानी चाहिए।‘ फिर एक दिन उसने पक्षी को पिंजरे से आजाद करने का निर्णय ले ही लिया। अगली सुबह, रानी ने पिंजरे का दरवाजा खोल दिया और पक्षी गाना गाते हुए आकाश में उड़ गया। ऐसा मधुर गाना तो उसने पहले कभी नहीं गाया था।
नैतिक शिक्षाः दयालुता सबसे बड़ा उपहार है।