बालश्रम पर अपने विचार व्यक्त करते हुए दैनिक समाचारपत्र के सम्पादक को एक पत्र लिखिए।
सम्पादक,
‘नवभारत टाइम्स’,
नई दिल्ली।
महोदय,
अमरीका ने बाल श्रम द्वारा तैयार माल को प्रतिबंधित करने के लिए भारत और तीसरी दुनिया के देशों के विरुद्ध अभियान शुरू किया है। यह कदम उनके वाणिज्यिक हित का बचाव है। हालांकि, हम उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश में मुख्य रूप से दरी निर्माण, बीड़ी और शीशा जैसे कई उद्योगों में काम पर लगाए गए बच्चों को उत्पीड़न से छुटकारा दिलाने के प्रति अनिच्छुक नहीं हो सकते हैं। महानगरों में बाल श्रमिकों को खतरनाक रासायनिक उद्योगों में भी काम पर लगाया गया है।
बाल श्रम सस्ता है और ये अपने बड़े परिवार की परवरिश में सहायता के लिए अधिक समय तक काम करते हैं। ये अमानवीय स्थिति में काम करते हैं और जीते हैं और इनके साथ दुर्व्यवहार किया जाता है। उन्हें उचित पारिश्रमिक नहीं दिया जाता है और ये कारखानों और उद्योगों में काम करते हुए प्रायः यक्ष्मा जैसे दुर्बल करने वाले रोगों से पीड़ित हो जाते हैं। उनके लिए कोई स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध नहीं है और यदि काम पर एक दिन के लिए भी अनुपस्थित रहते हैं तो उनका पारिश्रमिक काट लिया जाता है। सचमुच, उनकी दशा दयनीय है।
भारत का संविधान 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को औद्योगिक प्रतिष्ठानों में काम करने से प्रतिबंधित करता है। किंतु आर्थिक विवशताएं उन्हें विद्यालय जाने से रोकती है। ये अपने परिवारों का निर्वाह करने में सहायक होते हैं। बाल श्रमिकों के साथ निरंकुश दुर्व्यवहार को रोकने के लिए, स्वैच्छिक संगठनों को पीड़ितों की सहायता के लिए आगे आने और सुधार करने के लिए कदम उठाने की आवश्यकता है। केवल कानून ही बालश्रम को दूर करने के लिए काफी नहीं है।
8 फरवरी,
भवदीय, (क)