मोहोंल्ले की गलियों और सड़कों की स्वच्छता के सम्बन्ध में सम्पादक को पत्र
प्रतिष्ठा में।
श्रीयुत सम्पादक महोदय,
नवभारत टाइम्स
बहादुरशाह जफर मार्ग,
नई दिल्ली -110001
महोदय,
आपका जनप्रिय दैनिक पत्र जनता का चहेता है। सूर्योदय के साथ। ही सब की पलकें इसकी प्रतीक्षा में बिछ जाती हैं। देश-विदेश के ताजे समाचारों के साथ-साथ जनता के दु:ख-दर्द की कहानी पढ़ने को मिलती है। मुझे बचपन से ही देश भ्रमण का शौक रहा है। इंजीनियर होने के नाते विदेश यात्रा का भी सौभाग्य प्राप्त कर चुका है। वहाँ की सड़के शीशे की तरह चमकती हैं। मगर मेरी बागों की रानी दिल्ली की सड़कें, गली-कूचे सभी अस्वच्छता की चादर ओढ़े हुए हैं। इस चादर को उतार फेंकने का दायित्व नगर-निगम का है जो कि कुम्भकरण की तरह साल में कभी-कभार ही जाग पाता है। इस सम्बन्ध में अपने विचार आपके पत्र के माध्यम से नगर-निगम के अधिकारियों तक पहुँचाना चाहता हूँ।
हमारी ऐतिहासिक दिल्ली पर्यटकों के दिल की धड़कन है। सोने की चिड़िया कहलाने वाले भारत की राजधानी है। देश-विदेश के लोग अपने-अपने व्यवसाय तथा सैर सपाटे के लिए यहाँ आते हैं। उन्हें यहाँ की सड़कों, गली-कैंचों में यत्र-तत्र गंदगी के दर्शन होते हैं। गाँधी नगर तो सिले-सिलाये वस्त्रों की एशिया में सब से बड़ी मार्केट है। मगर वहाँ से गुजरने वालों को नाक पर रूमाल रखना ही पड़ता है। ऐसी ही स्थिति दिल्ली के अन्य क्षेत्रों की भी है। वहाँ के वासियों को नारकीय जीवन बिताना पड़ता है। उनके परिवार के लोग किसी न किसी रोग से ग्रस्त रहते हैं। पावस ऋतु में तो यहाँ का और भी बुरा हाल हो जाता है। पानी के निकास की समुचित व्यवस्था न होने के कारण, मच्छरों । की बन आती है और मलेरिया का प्रकोप हनुमान जी की पूँछ के समान बढ़ता चला जाता है।
महानगरों में नगर निगम की व्यवस्था इसलिए की जाती है कि वहाँ की स्वच्छता, जल, विद्युत्, बाग और सड़क निर्माण तथा स्वास्थ्य को व्यवस्थित रूप प्रदान किया जा सके; किन्तु दिल्ली नगर निगम की कार्य प्रणाली को तो ग्रहण लग चुका है। अब इस ग्रहण से मुक्ति आपका पत्र ही दिला सकता है। इसके अधिकारियों के प्रमाद को दूर कर इस महानगरी को नई दुल्हन की तरह सजा सकता है।
सधन्यवाद,
भवदीय,
अ ब स
मंत्री,
क्षेत्र सुधार समिति
दिनांक……..