काश! मैं प्रधानाध्यापक होता
Kash me Principal Hota
अथवा
यदि मैं प्रधानाचार्य होता
Yadi me Principal Hota
विद्यालय एक परिवार होता है। परिवार में जो स्थान मुखिया का होता है, वही स्थान विद्यालय में प्रधानाचार्य का होता है। प्रधानाचार्य का पद जितना गौरवपूर्ण है, उसका दायित्व भी उतना ही महत्वपूर्ण है। प्रधानाचार्य विद्यालय को प्रगति-पथ पर बढ़ाते हुए चलते हैं, जैसे इंजन रेलगाड़ी को गंतव्य की ओर ले जाता है। मैं एक छात्र हूँ, पर कभी-कभी सोचता हूँ कि यदि मैं प्रधानाचार्य होता तो अपनी नीतियों से विद्यालय को एक आदर्श विद्यालय का रूप देता।
प्रधानाचार्य का पद ग्रहण करने पर सबसे पहले मैं अपने छात्रों से व्यक्तिगत संपर्क स्थापित करता, उनकी कठिनाइयों को सुनता और समझता; फिर अध्यापकों की कठिनाइयों को उनसे पछता। इसके अलावा उन सारी कमियों को खोज निकालता. जो आदर्श शिक्षा-व्यवस्था म बाधक हैं। और दूसरे विद्यालयों में पाई जाने वाली अच्छाइयों को अपन। विद्यालय में प्रतिष्ठित कराने का प्रयास करता और छात्रों एवं अध्यापक की कठिनाइयों को दूर करने का प्रयास करता, जिससे सुविधा वातावरण में अध्ययन-अध्यापन का कार्य भली प्रकार संपन्न हो सके।
यदि में प्रधानाचार्य होता तो अपने छात्रों और अध्यापको का का मूल्य एवं महत्व समझाने का प्रयास करता। पाठ्यक्रम को अलग-अलग समय-अंतराल में बॉटकर उसे समय पर पूरा करने का प्रयास करता। विद्यार्थियों के चमुखी विकास के लिए प्रत्येक कक्षा में छात्रों की अंत्याक्षरी. निबंध-भाषण कला प्रतियोगिता नया वाद-विवाद के लिए समय निर्धारित करता। विद्यालय के वाचनालय तथा पुस्तकालय के लिए प्रत्येक कक्षा का हफ्तेवार कार्यक्रम निर्धारित करता। राष्ट्रीय कार्यक्रमों पर छात्रों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम करवाता और अच्छा कार्यक्रम प्रस्तुत करने वालों को पुरस्कृत करता।
यदि मैं विद्यालय का प्रधानाचार्य होता तो नैतिक शिक्षा को अनिवार्य बनाता और छात्रों को नैतिक विषय पर बोलने का अवसर देता। फिर विद्यालय के वार्षिकोत्सव पर पाँच सदाचारी छात्रों को पुरस्कृत करता। मेरा लक्ष्य अपने छात्रों को अनुशासित बनाना होता। इसके लिए समय पर वंदना, समय पर उपस्थिति, समय पर गृह-कार्य के निरीक्षण की भी व्यवस्था करता।
यदि मैं प्रधानाध्यापक होता तो फुटबॉल, वॉलीबॉल, हॉकी, बैडमिंटन, क्रिकेट आदि खेलों ऐसी व्यवस्था करता कि छात्र और अध्यापक साथ-साथ खेलते और विभिन्न कक्षाओं की समय-समय पर खेल-प्रतियोगिताएँ भी होती रहतीं।
यदि मैं प्रधानाचार्य होता तो विद्यार्थियों में राष्ट्रीय चेतना जगाकर उन्हें देशभक्त बनाता और नैतिकता तथा अनुशासन के बीज उनके मन में बो देता। भगवान मुझे इतनी शक्ति और ज्ञान दे जिससे मैं एक दिन प्रधानाचार्य बन सकूँ।