विद्यार्थी जीवन में डायरी का महत्त्व
Vidyarthi Jeevan me Diary ka Mahatva
अच्छे विद्यार्थी अपने दिनभर के क्रियाकलापों, व्यवहार, वार्तालाप तथा जन-सम्मिलन से जो-जो अच्छी प्रेरणाएँ प्राप्त करते हैं-उनको वे अपनी डायरी में नोट करते जाते हैं। विद्यार्थी के लिए डायरी वह पुस्तिका है, जिसमें वह दिनभर के महत्त्वपूर्ण कार्यों को लिखता है। इस प्रकार के लेखन-कार्य से उसका मन हल्का हो जाता है। डायरी में छात्र अथवा छात्राएँ अपने प्रतिदिन के देखे हुए संसार-समाज और भोगे हुए अनुभवों को व्यक्त करते हैं।
डायरी को दैनिकी’, ‘दैनन्दिनी’ तथा रोजनामचा भी कहते हैं। जिन्दगी के अनुभवों से व्यक्ति के मन पर जो छाप पड़ती है, उसको वह डायरी के अन्दर शब्दों के माध्यम से व्यक्त कर देता है। इस प्रकार डायरी विद्यार्थी के आन्तरिक व्यक्तित्व के बाह्य प्रकाशन का सबसे सशक्त माध्यम है। किसी अन्य लेखन-माध्यम या लेखन कला के जरिए विद्यार्थी अपने मन के भावों को इतने सशक्त ढंग से अभिव्यक्त नहीं कर सकता।
डायरी को विद्यार्थी के चरित्र का दर्पण भी कहा जा सकता है क्योंकि विद्यार्थी के मन में चारित्र्य के जो भाव पैदा होते हैं वे ही भाव शब्दों के रूप में डायरी के पृष्ठों पर अंकित हो जाते हैं।
एक साहित्यकार अथवा डायरी लेखक डायरी लिखते समय निष्पक्षता का बड़ा ध्यान रखता है लेकिन जब एक विद्यार्थी अपनी डायरी को लिखता है तो उसमें किसी प्रकार की निष्पक्षता, बनावट या कृत्रिमता नहीं होती। किसी भी घटनाविशेष का उसके मन पर जिस रूप में प्रभाव पड़ता है, वह अपनी डायरी में घटना के उसी रूप को अंकित करता है।
एक विद्यार्थी की डायरी के कई विषय हो सकते हैं। कुछ विद्यार्थी अपने स्कूल या कॉलिज की बातों के अनुभवों के अलावा घर-परिवार में घटित हुई बातों अथवा आस-पड़ोस के अन्दर घटित हुई बातों को भी लिखते हैं। कभी-कभी विद्यार्थियों को विद्यालय जाते समय रास्ते में बड़े अजीब प्रकार के दृश्य देखने को मिल जाते हैं, जैसे दुकानदारों का परस्पर लड़ना-झगड़ना या ग्राहकों का दुकानदारों से झगड़ना, मदारी-बाजीगर या भालू का खेल होते देखना, सड़क पर किसी अंधे एवं लुले-लँगड़े व्यक्ति को देखकर उसकी सहायता करना, राशन की दुकान के सामने कुछ अनहोनी बात घट जाना, घर का सौदा खरीदते हुए किसी वस्तु की प्रामाणिकता पर सन्देह होना, खेल के मैदान में किसी खिलाड़ी से तू-तू, मैं-मैं हो जाना, किसी को शराब या भाँग के नशे में देखना, किसी अन्य छात्र को बुरी संगत या कुसंग में बिगड़ते हुए देखना, सड़क पर किसी व्यक्ति को चोटग्रस्त या दुर्घटनाग्रस्त देखना आदि कोई भी दृश्य या विषय विद्यार्थी के डायरी लेखन का विषय बन सकता है। डायरी को रात्रि को सोने से पूर्व भरना चाहिए। शयन से पूर्व सारे दिन के कार्यों का लेखा-जोखा अपनी स्मृति में लाना चाहिए। यदि सारे दिन में विद्यार्थी से कोई भूल या त्रुटि हुई तो प्रभु से अपनी गलती की क्षमा माँगते हुए डायरी में अपनी गलतियों को नोट करना चाहिए। इससे विद्यार्थी का आत्म-परिष्कार होता है। वैसे दिन में जिस किसी के साथ कोई गलती घटित हुई हो, उस सम्बन्धित व्यक्ति से भी तुरन्त अपनी भूल की क्षमा माँग लेना विद्यार्थी की विनम्रता तथा महानता को बतलाता है।
बहुत से विद्यार्थी अपनी डायरी में रोजाना के महत्त्वपूर्ण प्रसंगों की चर्चा न करके सामान्य से विषयों को नोट करते जाते हैं। उदाहरण के तौर पर वे कक्षा में बताई हुई पढ़ाई के विषय-सम्बन्धी बातों को तथा दिए गए गृहकार्यों को नोट करते हैं। इसके अलावा स्कूल की साप्ताहिक समय सारिणी, परीक्षा सम्बन्धी सूचना तथा परीक्षा की तिथि आदि बातें विद्यार्थी की डायरी के विषय हो सकते हैं। जब विद्यालय के शिक्षक विद्यार्थियों को पाठ्यक्रम सम्बन्धी कोई महत्त्वपूर्ण पुस्तक खरीदने के लिए कहते हैं तो विद्यार्थी उस पुस्तक का नाम, लेखक एवं प्रकाशक का नाम तथा मूल्य आदि का विवरण अपनी डायरी में लिख लेते हैं।
किसी भी विद्यार्थी की डायरी उसके जीवन का एक महत्त्वपूर्ण दस्तावेज होता है जो विद्यार्थी के लिए अत्यन्त उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण होता है। विद्यार्थी को सचेत अथवा सजग होकर अपनी डायरी लिखनी चाहिए। प्रतिदिन की डायरी रोजाना रात्रि सोने से पूर्व भरें एवं डायरी भरने में किसी प्रकार का प्रमाद या आलस्य नहीं करें। यदि विद्यार्थी किसी दिन विवशतावश या अनजाने में कोई बात नहीं लिख पाए तो उसे दूसरे दिन अवश्य लिख लेना चाहिए।
डायरी विद्यार्थी के लिए गीता के सन्देश की तरह है जो विद्यार्थी को सतत रूप से कर्म करने की प्रेरणा देती है। डायरी को सच्चे मन से लिखने वाला विद्यार्थी कभी अपने काम में प्रमाद अथवा आलस्य नहीं करता। डायरी-लेखन के जरिए वह अपने आपका निरीक्षण-परीक्ष करता है तथा अपनी सभी कमजोरियों एवं बुराइयों को निकालकर अपने अन्दर सद्गुण धारण करता रहता है। डायरी-लेखन की आदत से विद्यार्थी अपने प्रमाद, निद्रा एवं संकोच का त्याग करके स्कूल के काम को पूरा करता है। डायरी प्रतिक्षण विद्यार्थी को नई-नई प्रेरणाएँ देती रहती है। विद्यार्थी की डायरी विद्यार्थी की कार्यक्षमता तथा कार्य-कौशल का परिचायक है। विद्यार्थी को स्कूल में क्या-क्या काम मिलता है, घर पर तथा स्कूल में रहकर वह कौन-कौन-से महत्त्वपूर्ण काम करता है, कहाँ-कहाँ जाता है, कैसे-कैसे व्यक्तियों अथवा यार-दोस्तों से मिलता है-इस सबकी सूचना विद्यार्थी की डायरी द्वारा मिल जाती है।
विद्यार्थी की डायरी को उसके चरित्र का दर्पण कहा जा सकता है। जिस विद्यार्थी का चरित्र जितना ही उज्ज्वल और श्रेष्ठ होता है-वह उतनी ही ईमानदारी से डायरी को लिखता है तथा अपनी डायरी को साफ-सुथरा अथवा स्वच्छ भी बनाए रखता है।
विद्यार्थी जीवन में डायरी लेखन का बड़ा ही महत्त्व है। डायरी विद्यार्थी के लिए ज्ञान के नेत्र का काम करती है। इस नेत्र के जरिए विद्यार्थी अपनी शैक्षणिक एवं नैतिक प्रगति का मूल्यांकन करता है। डायरी विद्यार्थी के जीवन की अनमोल निधि है। जो लोग इस निधि का सदुपयोग करते हैं-सफलता उनके चरण चूमती है। जो इस निधि को गाड़कर रख देते हैं अर्थात डायरी को उपयोग में नहीं लाते, वे नष्ट हो जाते हैं।
डायरी का लेखन-कार्य विद्यार्थी को अमरत्व का वरदान देता है और जो विद्यार्थी इसका उपयोग नहीं करते उनके जीवन का प्रत्येक कार्य कठिन लगने लगता है तथा उनका सारा ही जीवन विष की तरह हो जाता है।
जो विद्यार्थी डायरी जैसे महत्त्वपूर्ण विषय की ओर जरा-सा भी ध्यान नहीं देते, वे अपने जीवन के अनमोल समय को व्यर्थ की गपशप, अनर्थकार्य तथा बेकार के वार्तालापों में आँवा देते हैं और अन्त में असफलता तथा पश्चात्ताप ही उन्हें देखते को मिलता है।