Hindi Essay on “Shrad Ritu”, “शरद ऋतु”, for Class 10, Class 12 ,B.A Students and Competitive Examinations.

शरद ऋतु

Shrad Ritu

 

आश्विन और कार्तिक मास-ये दो महीने शरद ऋतु के हैं और इन महीनों में । बरसात का होना बन्द हो जाता है, जलाशयों का जल निर्मल हो जाता है. नदि । मन्द-मन्द वेग से बहने लगती है और शीतल हवाएँ चलना शुरू हो जाती हैं लेकिन कार्तिक मास के बाद ठण्ड पड़ना कम नहीं होती बल्कि सर्दियाँ और भी ज्यादा बढ़ती जाती हैं। शरद ऋतु के बाद हेमन्त ऋतु में ठण्ड और भी ज्यादा पडती है। हेमन्त के बाद शिशिर ऋतु आती है और शरीर कँपा देने वाली शीत पड़ने लगती है। मार्गशीर्ष, पौष तथा माघ तक हेमन्त और शिशिर ऋतुएँ चलती हैं। शिशिर के बाद सर्दियाँ कम पड़ने लगती हैं और बसन्त ऋतु का आगमन हो जाता है।

नवरात्रा, दशहरा तथा दीपावली आदि त्यौहार शरद ऋतु में ही मनाए जाते हैं। शरद ऋतु के आगमन पर सब तरफ खुशियाँ-ही-खुशियाँ छा जाती है। लोगों को बरसात की बूंदा-बाँदी, कीचड़ और गन्दगी से मुक्ति मिलती है। इसके साथ ही साथ उन्हें मक्खी-मच्छर आदि हानिकारक कीड़े-मकौड़ों से मुक्ति मिल जाने के कारण बुखार, मलेरिया, हैजा, टाइफाइड तथा कालेरा आदि रोगों से भी मुक्ति मिल जाती है।

शरद ऋतु की हलचल के बारे में कविवर जयशंकर प्रसादजी ने अपने ‘कामायनी’ नामक महाकाव्य के ‘आशा सर्ग’ में लिखा है:-

वह विवर्ण मुख त्रस्त प्रकृति का आज लगा हँसने फिर से।

वर्षा बीती, हुआ सृष्टि में शरद-विकास नए सिर से ।।

नव कोमल आलोक बिखरता, हिम-संस्कृति पर भर अनुराग।

सित-सरोज पर क्रीड़ा करता, जैसे मधुमय पिंग पराग ।।

धीरे धीरे हिम-आच्छादन हटने लगा धरातल से।

जगी की वनस्पतियाँ अलसाई, मुख धोती शीतल जल से ।।

नेत्र निमीलन करती मानो प्रकृति प्रबुद्ध लगी होने ।

नधि लहरियों की अंगड़ाई, बार-बार जाती सोने।।

बरसात का गॅदला पानी शरद ऋतु में स्थिर और शान्त होकर स्वच्छ होने 1 है। नदियों के रूप में यही जल मन्द और शीतल होकर धीरे-धीरे बहने लगता है।

शरद ऋतु में वायुमण्डल के तापमान में कमी आने लगती है और चारों एक ठण्डी हवाएँ चलने लगती हैं। ये हवाएँ ठण्डी होकर इसलिए चलती हैं क्योंकि सब तरफ जलाशय भरे होने के कारण जब वायु का जल से स्पर्श होता है वो वायु जल को और भी ज्यादा ठण्डा बनाती है तथा खुद वायु भी जल के स्पर्श से ठण्डी होकर बहती है।

अब तक इन्द्र देवता के दूत यानि मेघ (बादल) जल से खाली हो चुके होते हैं और वे बरसना बन्द कर देते हैं।

शरद ऋतु में मनुष्य का मन खूब सारा भोजन-पदार्थ खाने और खूब सारे कपड़े पहनने का करता है। सर्दी में खाया-पिया सब पच जाता है। कैसा भी गरिष्ठ भोजन, अन्न या पकवान हो-शरद ऋतु में सब पच जाता है।

दीपावली आने से पूर्व शरद ऋतु के सुहावने मौसम में स्थान-स्थान पर मेलों, शरद प्रदर्शनी एवं शरद उत्सवों का आयोजन किया जाता है। इन उत्सवों में रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं।

दीवाली आने से पहले ही लोग इस ऋतु में अपने घर की दीवारों तथा दरवाजे खिड़कियों की साफ-सफाई करने लगते हैं। तब दीपावली आती है और घर-घर में लक्ष्मी पूजन होता है। लोग लक्ष्मी मैया से धन-धान्य का वरदान माँगते हैं। दीवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा होती है और फिर भाई दूज का त्यौहार आता है। इसदिन बहिनें अपने भाइयों के माथे पर मंगल तिलक लगाकर उनका मुख मीठा करती हैं। तथा भाई के जीवन की खुशहाली की प्रभु से प्रार्थना करती

नवरात्रियों का त्योहार और दशहरा भी शरद ऋतु में ही आता है। दशहरा मानव की दस बुराइयों को हराने अथवा मनोविकार रूपी शत्रुओं पर विजय पाने का प्रतीक त्यौहार है। रावण मन की आसुरी वृत्तियों को ही चिह्नित करता है। और राम मानव की अच्छाइयों के प्रतीक देवता हैं।

नवरात्रियों में रतजगे होते हैं और दुर्गादेवी की आराधना की जाती है। इसी ऋतु में टेसू के गीत गाये जाते हैं।

हेमन्त ऋतु और शिशिर ऋतु भी सर्दी की ही ऋतुएँ हैं। इन ऋतुओं में ठण्ड काफी अधिक पड़ने लगती है और आदमी का स्वेटर तथा शॉल पहने बिना। घर से निकलना मुश्किल हो जाता है।

शिशिर ऋतु में चारों तरफ कोहरा-ही-कोहरा छा जाता है। माउण्टआबू जैसे ठण्डे प्रदेशों में कहीं-कहीं वातावरण का तापमान शून्य (0°) से भी नीचे चला। जाता है और पानी में बर्फ जमने लगती है। पशु-पक्षियों और मनुष्यों का सर्दी के मारे बुरा हाल हो जाता है। सर्दी से अपनी रक्षा न कर पाने के कारण बेचारे कई प्राणी तो इस ऋतु में दम ही तोड़ देते हैं।

अत्यधिक शीत के कारण कभी-कभी चारे की कमी हो जाती है, अकाल पाला पड़ जाता है, वृक्षों के पत्ते ठण्ड के कारण सिकुड़कर पीले पड़ने लगते हैं। और शीत पतझड़ शुरू हो जाता है। इसके बाद बसन्त ऋतु का शुभागमन होता है और लोगों को सर्दी के प्रकोप से मुक्ति मिलने लगती है।

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