सब दिन जात न एक समाना
Sab Din Jaat na ek Samana
प्रकृति का हर रूप परिवर्तनशील है। प्रकृति परिवर्तन के द्वारा सब कुछ करने में समर्थ है। प्रकृति अर्थात् समय कभी समान नहीं होता है जीवन-संसार में कभी दुःख तो कभी सुख और कभी सुख-दुःख की सम्मिलित छाया भी दिखाई पड़ती है। इस प्रकार समय कभी एकसमान नहीं रहता है।
समय परिवर्तन का चक्र लिए निरन्तर क्रियाशील रहता है। उसका यही टेक होता है। समय के परिवर्तन से ही राजा रंक होता है और रंके राजा बन जाता है। समय के परिवर्तन चक्र का ही यह कमाल है कि बड़े साम्राज्य धूल में मिल जाते हैं और वीरान तथा घने-घने जंगल भी सुन्दर और बड़े-बड़े भवनों में बदल जाते हैं। यह समय चक्र का ही प्रभाव होता है कि कभी-कभी अचानक कोई घटना ऐसे घट जाती है जिसे देखकर या सुनकर हम हतप्रभ रह जाते हैं। समय चक्र के परिवर्तनशील गति के कारण सुबह, दोपहर, शाम और रात हुआ करती है और कभी-कभी तो सुबह रात जैसे अंधकार के वस्त्र से ढक जाती है और रात चन्द्रमा की चाँदनी से दिन के समान चमककर हमारे मन को आकर्षित कर देती है–
समय अथति दिन एक समान नहीं रहता है, यह कठोर सत्य है। ‘सब दिन। जात न एक समान’ उक्ति को चरितार्थ करने के लिए किसी कवि के द्वारा कहा। गया यह दोहा अत्यन्त रोचक और आकर्षक है–
मनुष्य नहीं बलवान है, समय होता बलवान।
भीलन ने गीपिन लूटी, वही अर्जुन वही बान।।
अर्थात् समय के सामने मनुष्य का कोई वश नहीं चलता है; जैसे-गोपियों को ले जाते समय अर्जुन सहित मार्ग में उन्हें भीलों ने लूट लिया और अर्जुन कुछ नहीं कर पाये । उनका वही गाण्डीव और बाण पड़े ही रह गए। इसलिए समय का महत्त्व और प्रभाव सर्वाधिक है। समय जो चाहे सो कर डाले, इसे कौन रोक सकता है।
हम यह देखते हैं तो सत्य ही पाते हैं कि किसी का दिन (समय) एक समान कभी नहीं रहता है। सबका दिन अवश्य बदल जाता है। मनुष्य सहित इस प्रकृति के सभी चराचर का समय एक समान न होकर परिवर्तन का हाथ पकड़े हुए आगे बढ़ता जाता है। चाहे वह अच्छी दशा को प्राप्त हो या बुरी दशा को प्राप्त हो, लेकिन उसकी दशा अवश्यमेव बदली हुई होती है। मनुष्य सहित अन्य जीव-जन्तु की बात तो परिवर्तनशील है ही, प्रकृति का जो सबसे प्रभावशाली रूप सूर्य, चन्द्रमा, तारे, हवा, जल आदि भी कभी एक समान नहीं रहते हैं। इन्हें समय के सर्वोपरि प्रभाव से प्रभावित होना पड़ता है। समय की महानता को सिद्ध करते हुए किसी विचारक ने बड़ी ही उच्चकोटि की बात कही है–
“No religion is greater than time. Time is the greatest Dharma. Believe the time and adore the time, if you want to live and if you want to survive.”
अर्थात् कोई भी धर्म समय से बढ़कर मुहान नहीं है। इसलिए यदि जीना चाहते हैं और महान बनना चाहते हैं तो समय का मूल्यांकन कीजिए।”
‘सब दिन जात न एक समाना’ के आधार पर समय एकसमान किसी का जब नहीं होता है। तब इस बदले हुए समय में एक-दूसरे की सही पहचान भी हो जाती है, क्योंकि समय बदलने के साथ सभी अपनी बदलती हुई पहचान भी प्रस्तुत कर देते हैं। इसीलिए कविवर रहीमदास ने बड़े ही स्पष्ट रूप से कहा है कि–
“रहिमन विपदा हूँ भली, जो थोड़े दिन होइ ।।
जानि परत है जगत में, हित-अनहित सब कोइ ।।”
अर्थात् अगर विपत्ति भी थोड़े दिन की हो तो वह अच्छी है; क्योंकि इससे इस संसार में अपने मित्रों और शत्रुओं की सही पहचान हो जाती है। महाकवियों ने इस संदर्भ में और भी उच्चकोटि की बातें कहीं हैं।
‘सब दिन जात न एक समाना’ के विषय में विचारने पर एक तथ्य और पुष्ट होता हुआ दिखाई पड़ता है कि समय अर्थात् दिन का परिवर्तन न तो निश्चित है। और न इस निश्चय में इसका सुनिश्चित क्रम भी है। जन्म-मृत्यु, उत्थान-पतन, उदय-अस्त, आगमन प्रस्थान आदि इसी सन्दर्भ में सत्य है। इसी को स्पष्ट करते। हुए कबीरदास ने बहुत सुन्दर प्रमाण दिया है–
माली आवत देख के, कलियाँ करें पुकार ।
फूले फूला चुन लिए, काल्हि हमारी बार।।
अतएव ‘सद दिन जात न एक समान’ वास्तव में सत्य और यथार्थ सिद्ध होता है।