मातृभूमि
Matribhumi
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मातृभूमि: अर्थ • प्राणिजगत में स्वभाविक लगाव के उदाहरण • कर्तव्य
हमारे जीवन में मातृभूमि का विशेष महत्त्व है। यदि हम इसके गौरव का गान करना भी चाहें तो हजारों या भी कम पड़ेंगे। हमारी तूलिकाएँ भी इसके गौरव को चित्रित करने में असमर्थ रहेंगी। वास्तव में मातृभूति स्वर्ग से भी अधिक महान है। तभी तो कहा गया है- जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी अर्थात् जननी और जन्मभूमि तो स्वर्ग से भी बढ़कर हैं क्योंकि स्वर्गलोक तो काल्पनिक है परंतु मातृभूमि का सुख हम अपने जीवन में भोगते हैं।
‘जिसकी रज में लोट-लोट कर बड़े हुए हैं,
घुटनों के बल सरक-सरक कर खड़े हुए हैं,
परमहंस से बाल्यकाल में सब सुख पाए,
जिसके कारण धूल भरे हीरे कहलाए।’
प्राणी जगत में मातृभूमि के प्रति स्वाभाविक लगाव होता है क्योंकि जिस धरती का अन्न-जल ग्रहण करके हम बड़े हुए हैं उस पर गर्व होना स्वाभाविक है। वह भूमि हमारी माँ है और हम उसकी संतानें हैं यह भावना हमें सुख का अनुभव कराती है। प्रत्येक मनुष्य के हृदय में जन्मभूमि नामक देवी का वास होता है। उसके रोम-रोम में मातृभूमि का प्रेम भरा रहता है। उसकी आँखें मातृभूमि को देखकर आनंद से भर जाती हैं। मातृभूमि की हरियाली देखकर मन मयूर नृत्य कर उठता है। मानव में ही नहीं पशु-पक्षियों और पेड़-पौधों में भी मातृभूमि के प्रति प्रेम का संचार होता रहता है। यह एक ऐसी पवित्र भावना है जो मनुष्य को निश्छल प्रेम का पाठ पढ़ाती है और प्रत्येक देशवासी अपने देश के लिए तन-मन-धन समर्पित करने के लिए तत्पर हो जाता है।
तन समर्पित, मन समर्पित और यह जीवन समर्पित
चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ ।
आज आवश्यकता इस बात की है कि हम जो कुछ भी करें, उससे हमारी मातृभूमि की मर्यादा को ठेस न पहुँचे। बल्कि उसके सम्मान में वृधि हो। संकट काल में अपना सर्वस्व समर्पण करने से भी पीछे न हटें। वास्तव में यह भी मातृभूमि के प्रति हमारे प्रेम की कसौटी है। अतः यह हमारा कर्तव्य बनता है कि हम अपने प्राणों का उत्सर्ग करके भी अपनी जन्मभूमि की रक्षा करें।
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