मैं चिट्ठी हूँ
Main Chithi Hu
मैं सादे कागज पर प्रेम से लिखी गई एक चिट्ठी हूँ। मुझे लिफ़ाफे में बंद कर आप पानेवाले का पता लिखते हैं और डाक टिकट लगाकर लैटरबॉक्स में डाल देते हैं।
डाकिया मुझे निकाल अपने थैले में भर लेता है। फिर हम सब डाकखाने पहुँचते हैं। यहाँ शहर, गाँव, जिले के आधार पर हमें बाँट दिया। जाता है। यहीं तय होता है कि आगे की यात्रा रेलगाड़ी, वायुयान या मेल वैन में होगी।
ठप्पा लगा हमें फिर से थैलों में भरकर पते के अनुसार भेज दिया जाता है। जिस स्थान पर हमें पहुँचना है, वहाँ के समीप डाकखाने में एक बार फिर हमें गली, मोहल्ले के आधार पर बाँटा जाता है।
अब डाकिया स्वयं हमें हमारे ठिकाने तक छोड़कर आता है। कभीकभी रास्ते में हमें कुछ नुकसान भी पहुँचता है। खुशी और दुख की खबरें लिए हमें मित्र-संबंधियों तक पहुँचकर बहुत खुशी मिलती है।