हमारे पड़ोसी देश
Hamare Padosi Desh
पडोसी देश से अर्थ है वे देश जिन देशों की भारत से सीमा सटी है। पड़ोसी देशों का व्यवहार जब मित्रवत् होता है तब कथित देश दिन दुगनी रात चौगनी तरक्की करते हैं। भूटान, नेपाल जैसे देश ऐसे हैं जिनसे भारत भी लाभ उठा रहा है और कथित देश भी। पर इसी कड़ी में दो देश ऐसे भी हैं जो हमारे लिए सरदर्द बने हुए हैं। ये देश हैं पाकिस्तान और चीन। ये दोनों देश इस प्रकृति के हैं कि किसी न किसी तरह उनके देशों की सीमा का विस्तार हो। वे भारत का कुछ हिस्सा दबाने की चेष्टा में रहते हैं।
चीन के बारे में अक्सर ऐसी सूचनाएँ प्राप्त होती रहती हैं कि जिनसे पता चलता है कि उसने हमारी सीमा के भीतर आकर कुछ क्षेत्र कब्जा लिया। जब पता चलता है तो भारत जवाबी कार्रवाई कर उससे अपना क्षेत्र वापस ले लेता है। असल में हुआ यह था कि जब चीन स्वतंत्र हुआ तो वह उसी तरह विखंडित हो गया जिस तरह भारत हो गया था। कोमिंगतांग चीन जिसके अधिपति थे चांग काई शेक। और साम्यवादी चीन। संयुक्त राष्ट्र में सदस्यता का जब सवाल आया तो भारत ने साम्यवादी चीन का पक्ष लिया। चीन आज संयुक्त राष्ट्र का नियमित सदस्य है तो भारत के कारण है। भारत ने अनेक स्तर पर अंतरराष्टीय मंच पर चीन के हितों की रक्षा की और सदा मैत्री और सहयोग का हाथ बढ़ाया।
चीन और भारत में समानता भी कम नहीं है। दोनों का इतिहास अत्यंत पुराना है, दोनों की संस्कृति अत्यंत गौरवशाली है। दोनों भगवान बुद्ध के सिद्धांतों से प्रभावित हैं। दोनों तृतीय विश्व या विकासशील देशों के हितों के प्रति संवेदनशील हैं और उनके नेतृत्व का दावा करते हैं। दोनों ही उपनिवेशवाद के शत्रु हैं। एशिया की एकता के पक्षधर हैं। सब देशों को समान मानते हैं।
भारत सन् 1947 में स्वतंत्र हुआ और पाकिस्तान 1948 में। स्वतंत्रता के बाद भारत के दो टुकड़े हुए भारत और पाकिस्तान। रोन के भी दो टुकड़े हुए-कोमिंगतांग चीन और माओत्सेतुंग का साम्यवादी चीन। दोनों ने लंबी गुलामी सहन की थी इसलिए स्वतंत्रता के बाद दोनों देश उल्लसित थे। दोनों देश अपने-अपने देश को संपन्न बनाने में सनद्ध हुए। भारत चीन और भारत पाकिस्तान में भारत से अलग अंतर यह दिखा कि चीन और पाकिस्तान दोनों ही अपने-अपने देशों का साम्राज्य विस्तार करने में जट गए। यही कारण रहा कि चीन जापान, रूस, कोरिया, वियतनाम आदि देशों से भी संघर्षरत रहा। चीन की इसी विस्तारवादी नीति के कारण 1962 में उसने भारत पर हमला किया और इसमें उसे मुंह की खानी पड़ी। चीन प्रत्यक्ष में हिंदी चीनी भाई भाई की नीति पर चलता है पर जब चाहे अपनी साम्राज्यवादी सोच दिखा जाता है। वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चीन के साथ रिश्ते सधारने में लगे हैं जिनके सकारात्मक परिणाम मिल रहे हैं।
पाकिस्तान भी भारत से अलग होने के बाद से भारत के रास्ते में काँटे बोता रहा है। आज तक पाकिस्तान पर जनतंत्र बहाल इसीलिए नहीं हुआ है कि वहाँ अप्रत्यक्षतः सैनिक शासन है। दिखावे भर का लोकतंत्र है। आरंभ में पाकिस्तान ने भी लोकतंत्र अपनाने की कोशिश की थी। लियाकत अली के समय यह कोशिश शुरू हुई पर उसकी हत्या कर दी गई। इस हत्या के बाद भी कुछ समय तक संसदीय प्रणाली चली। उसके अंतर्गत प्रधानमंत्री भी आते-जाते रहे। बाद में अयूब खाँ ने सत्ता हथिया ली। प्रधानमंत्री भुट्टो बने तो कुछ समय तक संसदीय शासन चला। पर जनरल जिया ने उन्हें न केवल पद से हटा दिया अपितु उसकी हत्या भी करवा दी। पाकिस्तान अब कहने को लोकतांत्रिक देश है पर पर्दे के पीछे वहाँ सैनिक शासन ही चलता है। भारत की आज भी पाकिस्तान के प्रति सद्भावनापूर्ण नीति है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कोशिश यही है कि पड़ोसी देशों से अपने संबंध अच्छे रखें। वे तो पूरे विश्व के देशों से अपने संबंध सद्भावपूर्ण बनाने में जुटे हैं। तथापि पाकिस्तान और चीन अब भी भारत को इस नीति का मजाक उड़ाता दिखाई देता है। अगर मैत्रीपूर्ण संबंध होंगे तो भारत ही नहीं उसके पड़ोसी देश हर दृष्टि से मजबूत होंगे। पर साम्राज्यवाद की आतुरता पड़ोसी देशों को सद्भावपूर्ण माहौल में जीने नहीं देती। जो सद्भावपूर्ण नीति का पालन कर रहे हैं वे दिन-दुगनी रात चौगुनी तरक्की कर रहे हैं।