गांधी जयन्ती (Gandhi Jayanti)
एक महामानव का जन्मदिन है दो अक्टूबर। ऐसा महामानव जो पूरी धरती पर सत्य और अहिंसा के देवदूत के रूप में याद किया जाता है। जिसने सारी धरती को त्याग, सदाचार, सहिष्णुता, सेवा और अहिंसा का मार्ग दिखाया। यह महामानव है मोहनदास करमचन्द गांधी। जिसे कृतज्ञ संसार ने बीसवीं सदी का ‘शिखर पुरुष’ (मैन ऑफ द सेंचुरी) माना है। गांधी का जन्म गुजरात के पोरबन्दर में दो अक्टूबर, 1869 ई. को हुआ । इनके पिता करमचन्द पोरबंदर के दीवान थे। गांधी की प्रारम्भिक शिक्षा पोरबंदर में ही हुई। अभी गांधी चौदह वर्ष के किशोर ही थे कि इनका विवाह कस्तूरबा से कर दिया गया।
सन् 1888 में गांधी वकालत की पढ़ाई करने इंग्लैंड गए। सन् 1891 में वकालत की पढ़ाई पूरी कर भारत लौट आए और बम्बई में वकालत करने लगे। तीन साल विदेश में रहते हुए गांधी ने माँ को दिए हुए वचन का पूरा पालन किया। इन्होंने न तो वहाँ माँस का सेवन किया न ही मंदिरा का। इससे पता चलता है कि गांधी कितने संयमी और दृढ़-प्रतिज्ञ थे।
सन् 1893 में गांधी दक्षिण अफ्रीका गए थे। इस दक्षिण अफ्रीका की यात्रा का गांधी के जीवन में बहुत महत्व है। दक्षिण अफ्रीका में गोरे लोग भारतीयों के साथ बहुत दुर्व्यवहार करते थे। पग-पग पर अपमानित करते थे।
सन् 1906 में वहाँ ट्रोसवाल काला कानून पास किया गया। गांधी ने इस कानून का विरोध किया। एक आंदोलन शुरू किया। अपने इस सत्याग्रह आन्दोलन को गांधीजी ने तब तक चलाए रखा जब तक वहाँ भारतीयों पर होने वाले जुल्म नहीं रुक गए।
दक्षिण अफ्रीका में रहते हुए भी उन्हें स्वदेश की चिंता थी। भारत के अकाल पीड़ितों के लिए वहाँ से सहायता भेजते रहे। इसी तरह डरबन में महामारी फैली तो वहाँ लोगों की सेवा करते रहे। गांधीजी की इस सेवा-भावना के कारण ही इन्हें वहाँ ‘केसरे-हिन्द’ की उपाधि देकर सम्मानित किया था।
सन् 1915 में गांधीजी स्वदेश लौट आए। तब इनका देशवासियों ने भव्य स्वागत किया था। गांधीजी देश भ्रमण करते हुए 1917 में चम्पारण पहुँचे। वहाँ रहकर आंदोलन चलाया उन अंग्रेजों के खिलाफ जो वहाँ किसानों पर अत्याचार कर रहे थे।
सन् 1942 में ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो’ का नारा लगाया और पूरे देश में आजादी के लिए तेज गति से आंदोलन शुरू हुआ। जेल-यात्रा के दौरान ही पत्नी कस्तूरबा का स्वर्गवास हो गया था। आजादी का संघर्ष एक लंबा इतिहास है। इस संघर्ष का नेतृत्व गांधी ने किया, वह भी बिना किसो शस्त्र-अस्त्र के । बिना खून-खराबे के आखिर देश को 15 अगस्त, सन् 1947 को आजादी मिली।
गांधी ने हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए निरन्तर प्रयास किया। वे वर्ग भेद-भाव, जाति भेद-भाव व ऊँच-नीच के बहुत खिलाफ थे। वे चाहते थे कि देश सम्प्रदाय या जाति का भेद-भाव भूलकर एक रहे। तभी अखंड भारत की कल्पना पूरी हो सकेगी। वे इसी दिशा में सतत प्रयासरत रहे।
नोआखाली में साम्प्रदायिक दंगा हुआ तो शांति कराने स्वयं वहाँ पहुँच गए और दोनों वर्ग में शांति स्थापित कराई। वे छुआछूत के विरुद्ध थे। हिन्दू धर्म में फैले छुआछूत का उन्होंने विरोध किया और लोगों को समझाया। इसी संदेश को जन-जन तक पहुँचाने के लिए ‘हरिजन’ नाम से पत्रिका निकाली ।
गांधीजी सब धर्मों का समान आदर करते थे। यही संदेश वे हमेशा देते रहते थे कि सब धर्मों का आदर करो। वे सर्वधर्म की मान्यता को स्थापित करना चाहते थे ।
गांधीजी मितव्ययी थे। फालतू खर्च उन्हें पसन्द नहीं था। वे सादगी- पसन्द थे । उनका रहन-सहन, खान-पान सब सादा था। किसी तरह का कोई व्यसन नहीं करते थे। वे परिश्रमी थे। अपना सारा काम स्वयं अपने हाथों से करते थे।
“आने वाली पीढ़ियाँ शायद ही विश्वास करेंगी कि इस धरती पर ऐसा कोई महामानव भी अवतरित हुआ था।” ऐसे भाव प्रकट किए थे प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइन्स्टीन ने। सचमुच वे महामानव थे।
कैसे मनाएँ गांधी जयन्ती (How to celebrate Gandhi Jayanti)
- गांधीजी का चित्र लगाएँ ।
- माल्यार्पण कर दीप जलाएँ।
- गांधीजी का पूरा जीवन त्याग की अनूठी मिसाल रहा। उनके जीवन चरित्र से सैकड़ों बातें सीखने को मिलती हैं। सैकड़ों प्रसंग और घटनाएँ प्रेरणा देने वाली हैं। उनकी सादगी, त्याग, स्वाभिमान, श्रम, अपना काम आप करो, अहिंसा को अपनाओ, सत्य बोलो, ऊँच-नीच और वर्ग-भेद छोड़ो, सब एक रहो, हर धर्म की इज्जत करो, संयम और दृढ़ प्रतिज्ञा अपनाओ, न किसी का बुरा सोचो न बुरा करो, ऐसी पचासों बातें हैं जिन्हें बच्चों को सरल ढंग से बताया जाए।
- इनके जीवन प्रसंगों को नाट्य रूप में प्रस्तुत किया जाए।
- बच्चों में उनके वचन और संस्मरणों को लिखने की प्रतियोगिताएँ आयोजित करें।
- इनके वचन पोस्टर पर लिखकर लगाए जाएँ।
- सब बच्चों से सत्य और अहिंसा को अपनाने की सार्वजनिक रूप से प्रतिज्ञा लिखवाएँ ।