कार
Car
(मानव की आरामदायक सवारी)
सन् 1860 में बेल्जियम के एक इंजीनियर लीनोर ने कोयले की गस से चलने वाली कार सड़क पर चलाकर दिखाई। उसका आकार पहियों पर रखे ताबूत (कॉफीन) जैसा था। इसमें डेढ़ हॉर्सपावर का इंजन लगा था। तीन पहियों वाली यह कार 4 मी प्रति घंटे की रफ्तार तक
चलती थी। इसके पिछले दोंनों पहिए बड़े आकार के थे, जबकि अगला पहिया छोटे आकार का था, जो स्टीयरिंग से जुड़ा था।
प्रख्यात चिंतक फ्रायर रोजर बेकन ने सन् 1260 में भविष्यवाणी की थी कि एक दिन ऐसा आएगा, जब गाड़ियां बिना घोड़ों के चलेंगी। उनकी गति काफी ज्यादा होगी।
सदियों तक यह कल्पना ही रही। सन् 1771 में फ्रांस के इंजीनियर निकोलस कार्नोट ने एक तिपहिया वाहन भाप के इंजन से चलाकर दिखाया किन्तु वह भारी-भरकम गाड़ी कुछ खास प्रभावी नहीं थी।
लीनोर द्वारा बनाई गई पहली कार को रूस के शासक जार एलेक्जेंडर द्वितीय ने खरीदा था; पर उन्होंने उस कार को कभी चलाया या नहीं, यह ज्ञात नहीं है। ज्यों ही यह कार रूस आई, तुरंत ही गायब हो गई। किसी को उसका पता नहीं चला।
जो भी हो, उस समय के लिए यह एक विस्मयकारी वस्तु थी और अनेक आविष्कारक इसके पीछे लगे थे। सन् 1885 में डैमलर नामक जर्मन इंजीनियर ने गैसोलीन से चलने वाले इंजन पर आधारित कार बाजार में उतारी। बाद में डैमलर ने साइकिल पर अपने इंजन को लगाकर मोटरसाइकिल भी बनाई।
सन् 1886 में कॉर्ल बेंज नामक एक अन्य जर्मन इंजीनियर ने अपनी कार जनता के सामने पेश की। इस प्रकार ऑटोमोबाइल उद्योग चल पड़ा। अनेक लोगों ने कार को लोकोपयोगी बनाने में योगदान किया। एक अंग्रेज ने सन् 1896 में विद्युत् स्टार्टर बनाया, जबकि चेकोस्लोवाकिया के एक वैज्ञानिक ने इसके बंपर 1897 में तैयार किए।
पहले इंजन चेन खींचता था और इसके सहारे पिछला पहिया चलता था। सन् 1908 में ड्राइव शॉफ्ट तैयार किया गया। तब चेन से छुटकारा मिल गया। हवा भरे हुए टायर पहले फ्रांस में लगाए गए। सन् 1916 में एक अमेरिकी वैज्ञानिक ने शीशे पर से बारिश का पानी साफ करने के लिए विंड शील्ड वाइपर तैयार किया।
अमेरिका के रैंसम ओल्ड ने बड़े पैमाने पर कारों के उत्पादन की योजना बनाई। सन् 1908 में हेनरी फोर्ड इस क्षेत्र में आए। उस समय कार के पुर्जे कन्वेयर केल्ट पर चलते थे और अर्धशिक्षित कारीगर इसके पुर्जे जोड़ते थे। फोर्ड ने इसे जोड़ने की प्रक्रिया को और कारगर बनाया। अब 115 मील लम्बी कन्वेयर बेल्ट पर कार का मुख्य ढांचा और पुर्जे धीरे| गरे आगे बढ़ने लगे और रास्ते में एक-एक कारीगर अपने-अपने काम योजनाबद्ध तरीके से करने लगा। इससे कार का उत्पादन कम समय में होने लगा। फोर्ड ने अपना टी मॉडल बाजार में उतारा, जो अच्छा-खासा सस्ता था।
ज्यों-ज्यों बाजार में कारों की संख्या बढ़ने लगी त्यों-त्यों घोड़ों बग्घी के दिन लदने लगे। विशेष बात यह थी कि उस समय लोग दो कारणों से कारों स्वागत कर रहे थे। पहला कारण यह था कि घोड़ागाड़ी में यात्रा को लोग असुरक्षित और कार को सुरक्षित मानते थे; दूसरी बात यह थी कि घोड़ों से तरह-तरह का प्रदूषण, ध्वनि-प्रदूषण, उनके मल के कारण गंदगीहोती थी। लोग समझते थे कि कारों केआने से प्रदूषण पर रोक लग जाएगी।
सन् 1991 में एक प्रमुख अखबार के संपादक ने लिखा कि कारें यात्रा के लिए ज्यादा सुरक्षित होंगी तथा सड़कों पर जानवरों द्वारा गिराई जाने वाली गंदगी पर भी अब रोक लगेगी।
पर कारों में चलना सुरक्षित नहीं रहा। कार्ल बेंज की कार 13 कि. मी. प्रति घंटा की रफ्तार से चलती थी और आज की कारें 100-120 कि. मी. प्रति घंटा की रफ्तार से दौड़ती हैं। दुनिया भर में हजारों लोग प्रतिवर्ष कार दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं और इससे कहीं ज्यादा लोग विकलांग हो जाते हैं। इसके अलावा कारों के कारण वायु-प्रदूषण फैल रहा है। बड़े शहरों में टनों की मात्रा में प्रदूषणकारी पदार्थ निकलते हैं।
फिर भी कारों की संख्या बढ़ रही है। लाखों किलोमीटर लम्बी सड़कें यातायात के लिए बनाई जा चुकी हैं और आगे भी बनाई जा रही है। एक और खतरा बढ़ रहा है। जिस रफ्तार से कारें बढ़ रही हैं, यदि वह रफ्तार रही तो पृथ्वी पर उपलब्ध तेल भण्डार समाप्त हो जाएंगे और ईंधन के लिए नए स्त्रोत की तलाश करनी पड़ेगी।