वेंकट गिरि
V. V. Giri
जन्म: 10 अगस्त 1894, ब्रह्मपुर
निधन: 24 जून 1980, चेन्नई
- श्री वराह गिरि वेंकट गिरि का जन्म एक संपन्न परिवार में हुआ था। उनके पिता जोग्ययापन्तुलू गारू, अच्छे वकील और राष्ट्रवादी थे ।
- वराह गिरि के बड़े परिवार में सात भाई और पाँच बहनें थीं। बालक गिरि पर अपने पिता के साथसाथ मामा और चाचा की समाज-सेवा का प्रभाव पड़ा। बाल्यकाल से ही उनके मन में देश-सेवा की इच्छा ने जन्म ले लिया था ।
- बारह वर्ष की अवस्था में ही उन्होंने ‘लाइब्रेरी आंदोलन’ का नेतृत्व किया । उच्च शिक्षा के लिए ब्रिटेन गए, तो वहाँ भी वह भारतीय छात्र संघ के सचिव बन गए ।
- सन् 1913 में, डबलिन में उनका परिचय गांधीजी से हुआ।
- स्वदेश लौटने पर वह राजनीति में सक्रिय हो गए । वह रोलेट एक्ट के विरुद्ध खड़े होने वाले प्रमुख सत्याग्रहियों में से एक थे ।
- सन् 1922 में कांग्रेस महासमिति के सदस्य बनकर उन्होंने मद्यनिषेध आंदोलन में सक्रिय भागीदारी दी । वयरामपुर में एक बड़ा पुस्तकालय खोला । ‘यंग मैन एसोसिएशन’ का गठन किया, जो देश और गरीबों के लिए धन इकट्ठा करताथा।
- श्री गिरि श्रमिकों के बहुत बड़े पक्षधर थे । उन्होंने अपना अधिकांश समय श्रमिक आंदोलनों में लगाया। सन् 1935 में चेन्नई में श्रम मंत्री रहे।
- सन् 1947 से 1951 तक श्रीलंका में उच्चायुक्त रहे। उपराष्ट्रपति बनने से पहले उन्होंने उत्तर प्रदेश, केरल व मैसूर का राज्यपाल पद संभाला । सन् 1978 में वह भारत के राष्ट्रपति बने।
- उन्होंने “इंडस्ट्रीयल रिलेशन’ व ‘लेबर प्राब्लम्स इन इंडिया’ आदि पुस्तकें लिखीं। सन् 1971 में उनको ‘भारत-रत्न’ से सम्मानित किया गया ।
- 24 जून, 1980 को उनका निधन हो गया ।