हिन्दू धर्म में तुलसी पवित्र क्यों?
Hindu Dharm mein Tulsi ke paudhe ko pavitra kyo mana jata hai.
प्राचीन मान्यताओं के अनुसार प्रत्येक हिन्दू के घर के आँगन में कम-से-कम एक तुलसी का पौधा अवश्य होना चाहिए। कार्तिकमास में तुलसी का पौधा लगाने का बड़ा माहात्म्य माना गया है। स्कंदपुराण में लिखा है कि इस मास में, जो जितने तुलसी के पौधे लगाता है, वह उतने ही जन्मों के पापों से मुक्त हो जाता है। पदमपुराण में उल्लेख है कि जिस घर में तुलसी का उद्यान होता है, वह तीर्थरूप होता है और उसमें यमराज के दूतों का प्रवेश नहीं होता। जिस घर में भूमि (आँगन) तुलसी के नीचे की मिट्टी से लीपी रहती है, उसमें रोगों के कीटाणु प्रवेश नहीं करते।
प्राचीन धर्मग्रंथों में तुलसी की महिमा का खुब वर्णन किया गया है। यहाँ पर कुछ महत्त्वपूर्ण बातों का संक्षिप्त उल्लेख किया जा रहा है–
तुलसी की गंध को लेकर वायु जिस दिशा में जाती है. वह दिशा तथा वहाँ रहने वाले सभी प्राणी पवित्र और दोषरहित हो जाते हैं। तुलसी के लगाने और उसकी सेवा करने से बडे-बडे पाप भी नष्ट हो जाते हैं। जिस स्थान पर तुलसी का एक भी पौधा होता है, वहाँ ब्रह्मा, विष्णु, शिव आदि समस्त देवों तथा पुष्कर आदि तीर्थ, गंगा आदि सरिताओं का निवास होता है। अतएव उसकी पूजा-अर्चना करने से समस्त देवों आदि के पूजन का फल मिलता है। कार्तिकमास में तलसी के दर्शन, स्पर्श और ध्यान करने अर्चना, आरोपण, सिंचन से अनेक युगों के संग्रहीत पापों का समूह नष्ट हो जाता है। तुलसी समस्त सौभाग्यों को देने वाली और आधि-व्याधि को मिटाने वाली है। इसे भगवान् कृष्ण के चरणों में बढाने से मुक्ति प्राप्त होती है। तुलसी के बिना जितने भी धार्मिक कर्मकाण्ड किये जाते हैं, वे सब सफल होते हैं, क्योंकि इससे देवता प्रसन्न नहीं होते। जो दान तुलसी के संयोगपूर्वक किया जाता है, वह अपार फलदायी होता है। तुलसी वन की छाया में किया गया ‘श्राद्ध’ पितरों के लिए विशेष तृप्तिकारक होता है।
तलसी के पत्ते यानी तुलसीदल का भी काफी महत्त्व बताया गया है। जो व्यक्ति सदैव तीनों समय तलसीदल का सेवन करता है, उसका शरीर अनेक चान्द्रायणव्रतों के फल की तरह शुद्ध हो जाता है। जो व्यक्ति स्नान के जल में तुलसी डालकर उपयोग में लाता है, वह सब तीर्थों में नहाया हुआ समझा जाता है और सब यज्ञों में बैठने का अधिकारी बनता है।
जो व्यक्ति तुलसीदल मिश्रित चरणामृत का नियमित सेवन करता है, वह सब पापों से छुटकारा पाकर अन्त में सद्गति को प्राप्त करता है, वह शारीरिक विकारों व रोगों से बचता है और अकालमृत्यु को प्राप्त नहीं होता। प्रत्येक पूजा-पाठ और प्रसाद में तुलसीदल का उपयोग करने का विधान है। मरते हुए व्यक्ति के मुख में तुलसीदल और गंगाजल डालने से त्रिदोष नाशक महौषधि बन जाती है और आत्मा पवित्र होकर मुक्त होती है। दूषित जल के शोधन हेतु भी तुलसीदल डाला जाता है।
हर शाम तुलसी के पौधे की पूजा, आरती और उसके नीचे दीपक जलाने से सती वृन्दा की कृपा मिलती है और भगवान् विष्णु स्वयं उसकी रक्षा करते हैं। वृन्दा की भक्ति और विष्णु के प्रति उसके समर्पण से तुलसी की सुगन्ध उसके पत्तों में आ गई, ऐसा कहा जाता है। सोमवती अमावस्या को तुलसी की 108 परिक्रमा करने का विधान है। परिक्रमा से दरिद्रता मिटती है।
वैज्ञानिक दृष्टि से तुलसी शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त लाभकारी पौधा है। इसके सेवन से गम्भीर बीमारियाँ तक दूर हो जाती हैं और शरीर शक्तिशाली तथा ओजस्वी बन जाता है।