Vridhashram “वृद्धाश्रम” Hindi Essay 350 Words, Best Essay, Paragraph, Anuched for Class 8, 9, 10, 12 Students.

वृद्धाश्रम

Vridhashram

वृद्धाश्रम की संस्कृति पाश्चात्य संस्कृति से भारत आई है, अधिकांश चिंतक ऐसा ही मानते हैं। लेकिन यह सच नहीं है। वेदकाल से व्यक्ति की सौ वर्ष आय मानी जाती रही है। व्यक्ति को चार अवस्थाओं में विभाजित किया गया था। ब्रह्मर्चय आश्रम, गृहस्थ आश्रम, बाणप्रस्थ आश्रम और संन्यास आश्रम। ब्रह्मचर्य आश्रम 25 वर्ष और गृहस्थ आश्रम 25 वर्ष का माना जाता था। बाणप्रस्थ आश्रम 50 वर्ष पूर्ण करने के बाद आरम्भ होता था। गृहस्थी इस आश्रम में प्रवेश करने से पूर्व अपने परिवार को अपना उत्तराधिकारी बना देता था। इस आश्रम में उसकी पत्नी भी उसके साथ रहा करती थी। ईश्वर भजन में लीन होता था। 75 वर्ष पूर्ण होने के उपरांत वह संन्यास आश्रम में प्रविष्ट होता था और अब एकाकी हो जाता था। पली भी उसके साथ नहीं रहती थी। इस अवस्था को व्यतीत करते हुए वे सौ वर्ष या इससे अधिक वर्ष पूरे करता था। लेकिन आज की संस्कृति में व्यक्ति संयुक्त परिवार में सेवा निवृत्त होकर रहता है। यहीं से समस्या खड़ी होती है। उसकी संतान उसे अपने पास नहीं रखना चाहती। उसे उसके हाल पर छोड़ देती है। या तो वृद्ध अपनी पत्नी के साथ किसी वृद्धाश्रम की तलाश करता है अथवा पत्नी अपनी संतान का साथ देकर उसे ही छोड़ देती है। वह एकाकी रह जाता है और उसे मज़बूरन वृद्धाश्रम में रहना पड़ता है। यही वह हिस्सा है जो पाश्चात्य संस्कृति से आज भारत में पसरा है। यह बहुत तकलीफदेह है कि जो पिता अपनी संतान को पढ़ाता-लिखाता है, उसे नौकरी पर लगाता है अथवा उसका व्यवसाय शुरू करवाता है। उसका विवाह करता है। अपनी क्षमता के अनुसार परिवार के लिए धन-संचय करता है। वह जब अक्षम हो जाता है तब उसकी संतान उसे वृद्धाश्रम में छोड़ आती है। जो पिता पाँच-पाँच बच्चों को अपनी हड्डियाँ गलाते हुए उनका पालन-पोषण करता रहा, वही उसकी संतान को अब भारी हो गया है। इसीलिए कुछ संस्थाएँ ऐसे लोगों के लिए वृद्धाश्रम का निर्माण करा रही हैं। देश में अनेक ऐसे वृद्धाश्रम कार्यरत हैं जो वृद्धों का पालन-पोषण कर रहे हैं लेकिन इससे उन वृद्धों की संतानों की निर्दयता अवश्य समाने आ रही हैं।

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