विश्वकर्मा जयन्ती
Vishwakarma Jayanti
विश्वकर्मा देवताओं के शिल्पकार अर्थात् इंजीनियर हैं। इन्हें शिल्प का देवता माना जाता है। देवताओं के समस्त अस्त्र-शस्त्र इन्हीं के द्वारा निर्मित हैं। कहते हैं द्वारकाधाम, लंका की स्वर्णपुरी, भगवान् जगन्नाथ का श्रीविग्रह सब इन्हीं के द्वारा निर्मित हैं। ऐसा माना जाता है कि सभी लोक पाताल-लोक, पृथ्वीलोक और स्वर्गलोक भी इन्हीं के द्वार निर्मित हैं। ‘स्थापत्य वेद’ नामक ग्रंथ भी विश्वकर्मा द्वारा ही लिखा गया। यहाँ तक माना जाता है कि अनेक देवी-देवताओं के रूप-स्वरूप और उनके वस्त्र आदि तक विश्वकर्मा की कला ने ही सँवारे हैं।
विश्वकर्मा के पिता अष्ट वसुओं में से एक प्रभास नामक वसु हैं। माता का नाम महासती योगसिद्धा है। विश्वकर्मा को त्वष्टा के नाम से भी जाना जाता है। इनके दो पुत्र थे विश्वरूप और वृत्र । भगवान् राम के लिए लंका तक सेतुबंध का निर्माण करने वाले वानरराजा ‘नल’ को भी इन्हीं के अंश से पैदा हुआ माना जाता है। विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा का विवाह सूर्य से हुआ था। सूर्य बहुत तेजस्वी थे। संज्ञा जब भी उनके पास जाती जलने लगती थी। कहते हैं इसका हल भी विश्वकर्मा ने ही खोजा। उन्होंने सूर्य के तेज का आठवाँ भाग छील दिया। बेटी की समस्या तो हल हुई ही, एक काम और हो गया। सूर्य का आठवाँ भाग जो छीलकर निकाला गया उससे विश्वकर्मा ने देवताओं के अस्त्र-शस्त्र बना दिए। भगवान् विष्णु का चक्र और शिव का त्रिशूल सूर्यअंश से ही बनाए गए। इस प्रकार के कई अस्त्र-शस्त्र अन्य देवताओं के लिए बना दिए थे।
ऋग्वेद के अनुसार विश्वकर्मा, अदृश्य शक्तियों के रचनाकार, महान शिल्पी और अद्वितीय कलाकार थे। यह पूरी सृष्टि उन्हीं की कला का अद्भुत नमूना है।
स्वर्गलोक में इन्द्रसभा भी इनकी कला का उत्कृष्ट नमूना है। रावण महान शिवभक्त था। उसने भगवान् शिव से अनुरोध किया कि वह सोने की लंका बनवाना चाहता है। तब भगवान् शिव ने विश्वकर्मा से कहा और उन्होंने रावण की सोने की लंका बनाई। लंका ऐसी बनाई कि यह कहा जाने लगा कि ‘तीन लोक से लंका न्यारी’ ।
भगवान् कृष्ण की द्वारिका और रास-स्थल की रचना भी विश्वकर्मा की ही देन है। पांडवों के लिए विचित्र महल की रचना भी विश्वकर्मा ने ही की । यह उन्हीं की कला का चमत्कार था कि महल में कहाँ जमीन है कहाँ पानी, कुछ पता नहीं चलता था। दुर्योधन इसी चमत्कार से मात खा गए थे और द्रौपदी उनकी दशा देखकर हँस दी थी। यहाँ द्रौपदी ने जो टिप्पणी दुर्योधन पर की थी वही तो महाभारत युद्ध का कारण बनी।
कहते हैं दिल्ली का इन्द्रप्रस्थ और मेरठ का हस्तिनापुर भी विश्वकर्मा की रचना रहे हैं। कई देवी-देवताओं के रथों का रूप-स्वरूप भी विश्वकर्मा की देन है। नर्क के राजा यम का सभास्थल और जल देवता वरुण का महल भी विश्वकर्मा की रचना हैं।
ऐसे महान शिल्पी, रचनाकार और कलागुरु की जयंती मनाकर प्रेरणा लें।
कला और शिल्प को नई कल्पना लें। देश के विकास को नया रूप, नई गति देने की प्रेरणा लें। उनके गुणों का अनुसरण करें। हिन्दू शिल्पी अपने कर्म की उन्नति के लिए भाद्रपद की संक्रांति को इनकी आराधना करते हैं।
कैसे मनाएँ भगवान् विश्वकर्मा जयन्ती
How to celebrate Vishwakarma Jayanti
- विश्वकर्मा की तस्वीर लगाएँ, दीप जलाएँ, माल्यार्पण करें।
- आयोजन स्थल को सजाएँ।
- विश्वकर्मा महान शिल्पी थे, वे स्थापत्य कला व शिल्प के देवता थे। उनके द्वारा किये गए कार्यों के बारे में बच्चों को बताया जाए।
- इस महान शिल्पी की जयन्ती पर कला प्रदर्शनी का आयोजन किया जाए। बच्चों के द्वारा निर्मित विभिन्न प्रकार की चीजें रखी जाएँ और उनमें से श्रेष्ठ को पुरस्कृत करें ।
- विश्वकर्मा ने देवी-देवताओं को रूप-स्वरूप देने का कार्य भी किया था अतः इस अवसर पर विचित्र वेश-भूषा की प्रतियोगिता भी की जा सकती है जिसमें बच्चे विभिन्न देवी-देवताओं के रूप में आएँ । श्रेष्ठ रूप-सज्जा पर पुरस्कार दिए जाएँ।
- देश के अन्य शिल्पियों के बारे में व देश में स्थित प्रसिद्ध शिल्प कला के नमूनों के बारे में भी बच्चों को बताया जा सकता है।