विज्ञापनों का प्रभाव
Vigyapano Ka Prabhav
विज्ञापन मनुष्य के सेवक हैं। वे मार्गदर्शक हैं। वे उपभोक्ता को यह बताना चाहते हैं कि उनकी आवश्यकता की चीजें कहाँ मिलती हैं। उन चीज़ों में क्या गुण हैं। विज्ञापन यह भी बताते हैं कि कौन-सी चीजें बाजार में उपलब्ध हैं। कौन-सी नई चीजें बन रही हैं। यह विज्ञापन का उद्देश्य है। बहुत से विज्ञापन इस लक्ष्य की पूर्ति कर भी रहे हैं। परंतु देखने में यह आता है कि अधिकतर विज्ञापन इस लक्ष्य से भटककर लोगों को अपने लालच का शिकार बनाने में लगे हुए है। कभी सुंदर लड़कियाँ अपने रूप से लुभाती हैं, कभी वे अर्धनग्न होकर आपको भटकाती हैं। कभी दूरदर्शन पर विज्ञापन करने वाले कलाकारों को देखिए। उनकी अदाएँ, उनके तेवर, उनकी भाषा और वेशभूषा देखिए। ऐसा लगता है कि वे अपने रूपजाल में फंसाने वाली विष कन्याएँ हैं। शेविंग ब्लेड के विज्ञापन में भला लड़कियों का क्या काम? परंतु लड़कियाँ लाई जाती हैं। यह लक्ष्य से भटकना है। इसी प्रकर बहुत से विज्ञापन आपकी इच्छाओं को बेकार में बढ़ाते हैं। वे बिना जरूरत के आपकी जरूरतें बढ़ाते हैं। बहुत से विज्ञापन तो आपत्तिजनक हैं। अधिकतर साबुन, शैंपू, सुगंध या सौंदर्य प्रसाधनों के विज्ञापन भटकाने वाले होते हैं। कुछ विज्ञापन ऐसी गतिविधियाँ दिखलाते हैं कि अबोध बच्चों को इसका दंड भुगतना पड़ता है। जैसे कि किसी पेय पदार्थ की बोतल के लिए छतें पार करना, पहाड़ों पर कूदना या चौथी मंजिल से छलाँग लगाना। इससे एक भी दुर्घटना हो जाए तो इसकी भरपाई कौन करेगा?