वन संपदा पर गहराता संकट
Van Sampada par Gehrata Sankat
सामने लहलहाता झूमता हुआ, अपनी बाँहों को फैलाए हुए, मदमस्त हरा-भरा, फल-फूलों से लदा आम का पेड़ सदैव की भाँति मुस्कराता दिखाई दे रहा है जो न केवल मेरा, बलिक परे प्राणीमात्र का आश्रयदाता है। जिसकी डालियों में पछियों को बसेरा है, जिसके सिर पर बंदरों का निवास है, मूल में सर्प निवास करते हैं. जिसकी छाया में ग्रीष्म के धूप-साप से थका माँदा राही चैन की साँस लेता है, जिसके फल स्वादिष्ट होने के साथ-साथ पोषक भी हैं, वही आज कुछ परेशान-सा दिख रहा है। कारण, जाज हमारी वनसंपदा के ऊपर अस्तित्व का संकट गहराता जा रहा है। आज के भौतिक युग में लकड़ी उद्योग के नए-नए आयामी ने अनुपयोगी जीर्णशीर्ण वन संपदा को नष्ट करने का प्रयास किया है। उपयोगी फलदार जोशीले युवावृक्षों को भी मानव के अपनी स्वार्थ बुद्धि और अदूरदर्शिता से असमय में ही काट दिया है और वनों के अस्तित्व पर संकट पैदा कर दिया है। आज समूची मानव जाति कटते जंगल और बढ़ते प्रदूषण की शिकार बनती जा रही है। प्राचीन काल में हमारे ऋषि-मुनि नगरों ग्रामों से दूर घने जंगलों में आश्चम बनाकर रहते थे। उनके द्वारा समची मानव जाति के कल्याण के लिए वनस्पति का संरक्षण संवर्धन करना एक स्वाभाविक प्रक्रिया थी। आज भी प्रकृति प्रेम एवं वनस्पति संरक्षण के लिए उनकी दृष्टि प्रेरणा प्रदान करती है।