एकता ही बल है
Unity is Strength
एक होने की स्थिति या भाव एकता है । एकता हमें याद दिलाती है कि मनष्य-मनुष्य एक है । कोई छोटा या बड़ा नहीं है। इसलिए हमारे मन मिले रहें और हम लोग मिल-जुलकर कार्य करते रहें । एक अकेला कुछ नहीं कर सकता. सब मिल जाएँ तो कुछ भी संभव है । कहा भी गया है – ‘अकेला चना भाँड नहीं फोड़ सकता।’
एकता में अद्भुत शक्ति होती है । जलती हुई लकड़ियाँ अलग-अलग होने पर धुआँ छोड़ती हैं, एक साथ होने पर जल उठती हैं । तिनके अकेले रहकर कुछ नहीं कर पाते, साथ मिलकर रस्सी का रूप धारण कर लेते हैं । हिरनों के झंड पर शेर हमला बोलने से पहले सौ बार सोचता है । चींटियों का समह गिरगिट को वश में कर लेता है। इसी तरह जब लोगों में एकता होती है तो बड़े से बड़ा काम भी आसान हो जाता है । संसार एकता के सामने हमेशा सिर झुकाता है।
हाथ की उंगलियाँ अलग-अलग रहकर कुछ नहीं कर पातीं । लेकिन मिलकर तरह-तरह के कार्य करती हैं। किसी चीज को उठाना हो तो पाँचों इकट्ठा होकर उठाती हैं । इसलिए हमें एकता की भावना से काम करना चाहिए । ‘अपनी डफली अपना राग’ के सिद्धान्त पर चलने वाले लोगों को पछताना पड़ता है । उनकी कोई नहीं सुनता । परन्तु जब समूह बनाकर काम किया जाता है तो काम बन जाता है । गाँधी जी ने आजादी की लड़ाई में आम लोगों को जोडा । उन्होंने दनिया के सामने एकता का एक बड़ा उदाहरण प्रस्तुत किया । इस एकता के सामने अँगरेज़ों को झुकना पड़ा । उन्हें भारत को आजाद करना पड़ा।
एकता के बल को पहचान कर मजदूर और कर्मचारी संगठन बनाकर काम करते हैं । मजदूर संगठन, बैंक कर्मचारी संगठन, रिक्शा चालक संगठन, किसान यूनियन, व्यापारी संगठन आदि काफी मजबूत होते हैं । ये एकता के बल पर अपनी बात मनवा सकते हैं । यातायात को रोककर जन-जीवन ठप कर सकते हैं । मजदूर हड़ताल करके फैक्ट्री का काम-काज रोक सकते हैं । जब संगठन मिलकर आवाज़ उठाते हैं तो सरकार को इनकी माँगें माननी पड़ती हैं । जब जनता एकत्रित होकर सड़कों पर उतर आती है तो प्रशासन उनकी माँगें मानने के लिए विवश हो जाता है।
आपसी फूट से एकता में बाधा आती है । भाई-भाई लडते हैं तो बाहर के लोग इसका गलत फायदा उठाते हैं । अँगरेज़ों ने भारत के लोगों की आपसी फूट का पूरा लाभ उठाया । देश पर मुट्ठी भर अँगरेज़ों का राज हो गया । विभीषण और रावण की फूट का लाभ राम ने उठाया । अतः हमें आपस में भेद-भाव नहीं रखना चाहिए । जो आपस में मिलकर नहीं रहते, वे कभी सुख नहीं पाते । इसलिए जात-पाँत, ऊँच-नीच आदि का भेदभाव भूलकर सभी भारतवासियों को एक हो जाना चाहिए।
शक्तियों को एकत्रित करने से एकता उत्पन्न होती है । शक्तियों के छिन्न-भिन्न होने से फूट आती है । बुद्धिमान लोग हमेशा शक्तियों को इकट्ठा रखने की बात करते हैं । वे समझते हैं कि भेदभाव ऊपर-ऊपर से है, भीतर से सब एक हैं । जहाँ एकता होगी वहाँ परिवार, समाज और राष्ट्र स्वाभिमानी होकर सुख-शांति से जी सकेगा । जहाँ एक होकर काम करने की भावना होगी वहाँ उन्नति के सभी द्वार अपने आप खुलने लगेंगे । अतः हमें एक होकर रहना चाहिए।