तुलसीदास जयन्ती
Tulsidas Jayanti
संत तुलसीदास भक्त, कवि और समाज-सुधारक थे। जिस समय तुलसीदास हुए वह समय परतंत्रता का तो था ही क्योंकि देश में तब मुगलों का शासन था। पर तब हिन्दू समाज में कटुता और भेदभाव काफी फैला हुआ था। तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना कर लोगों में धर्म के प्रति आस्था जगाई। राम के प्रति लोगों में आसक्ति पैदा की। राम नाम की महिमा स्थापित कर लोगों को सोचने-समझने की नई दिशा दी । असत से सत की ओर मोड़ा। अधर्म की भावना को मिटा धर्म की लौ जगाई । अँधेरे हृदयों को जीवन की नई ज्योति प्रदान की ।
तुलसीदास के जन्म के बारे में मतभेद हैं। कुछ लोगों का मत है कि वे बाँदा जिले के राजापुर गाँव में पैदा हुए थे। कुछ लोगों के मतानुसार उनका जन्म सोरों में हुआ था। पर दूसरे मत से अधिक प्रमाण इस मत के हैं कि वे वि. संवत् 1554 की श्रावण शुक्ला सप्तमी को बाँदा जिले के राजापुर ग्राम में ही पैदा हुए थे।
उनके पिता पंडित आत्माराम दुबे और माता हुलसी देवी थीं। ये सरयूपारी ब्राह्मण परिवार था। तुलसीदास के बचपन का नाम रामबोला था। वि. संवत् 1583 में तुलसीदासजी का विवाह रत्नावलि से हुआ। रत्नावल रूपवती भी थीं और विदुषी भी। तुलसीदासजी पत्नी के प्रति बहुत आसक्त थे। रत्नावलि ने एक बार उनकी इस प्रवृत्ति पर तीखा व्यंग्य कर दिया था। तुलसी का भावुक मन उस व्यंग्य से व्याकुल हो उठा। रत्नावलि ने कहा था-हाड़चाम की देह मम, तापर इतनी प्रीति। तसु आधो जो राम पर, होत मिटत भव-भीति । ।
तुलसी पत्नी की आसक्ति से विरक्त हो चित्रकूट चले गए। कहते हैं वहीं जब तुलसी चंदन घिस रहे थे तब इनके आराध्य हनुमान की कृपा से इन्हें राम-लक्ष्मण के दर्शन हुए। दोनों ने तुलसी से चंदन लगवाया ।
तीर्थ-यात्राएँ करते हुए तुलसीदास अयोध्या पहुँचे। वहीं श्री हनुमान की आज्ञा से उन्होंने ‘श्रीरामचरितमानस’ की रचना शुरू की। कहते हैं इस महान ग्रंथ की रचना तुलसीदास ने दो वर्ष सात माह और छब्बीस दिन में कर ली थी। ग्रंथ पूरा हो जाने पर रामभक्त हनुमान ने इसे सुना और तुलसीदास को आशीर्वाद दिया ।
तुलसीदास ने रामचरितमानस का बाल कांड अयोध्या में रहकर लिखा। उसके बाद वे काशी चले गए। वहाँ असीघाट पर एक झोंपड़ी में रहते हुए ग्रंथ को पूरा किया। ऐसी अनूठी अमर कृति की चर्चा से कहते हैं तब कई लोग ईर्ष्या और द्वेष के वशीभूत हो ग्रंथ को ही नष्ट कर देना चाहते थे। कुछ व्यक्तियों ने ऐसा प्रयास किया । अर्द्धरात्रि के समय वे तुलसीदास की झोंपड़ी में घुसे। उन्होंने जैसे ही ग्रंथ. को हाथ लगाया भगवान् शंकर ने उन्हें ऐसा भयभीत किया कि वे दोनों वहाँ से भाग छूटे। कहते हैं भगवान् शंकर ने तब ग्रंथ पर ‘सत्यम् शिवम् सुन्दरम्’ लिखा और अन्तर्धान हो गए।
कहा जाता है तुलसी का जन्म मूल नक्षत्र में हुआ था अतः माता-पिता ने इन्हें अपने से दूर रखा! इन्हें बचपन में माता-पिता का सुख और प्यार नहीं मिला। अंधविश्वास के चलते माता-पिता ने इन्हें अशुभ मान लिया था !
दासी के घर में पालन-पोषण हुआ। दासी की जल्दी मृत्यु हो जाने के कारण तुलसी को भीख माँगनी पड़ी। एक दिन पंडित नरहरि शास्त्री ने भीख माँगते बालक तुलसी को देखा। उनकी अन्तर्दृष्टि ने तुलसी में छिपी प्रतिभा को पहचाना। वे उसे अपने घर ले गए। अयोध्या ले जाकर तुलसी का यज्ञोपवीत संस्कार करवाया। पाँचों संस्कार करवाकर तुलसी को ‘राम’ मंत्र की दीक्षा दी। पंडित नरहरि ने उन्हें संस्कृत साहित्य का अध्ययन कराया। तुलसीदास ने गुरु के पास रहकर पन्द्रह वर्ष तक वेद-पुराणों का अध्ययन किया।
एक दिन अचानक तुलसी का अपने गाँव जाने का मन हुआ। गुरु की आज्ञा लेकर अपने गाँव पहुँचे। अपने घर की दशा देख उन्हें काफी दुख हुआ। सारा घर उजड़ गया था। माता-पिता का स्वर्गवास हो चुका था। उन्होंने माता-पिता का श्राद्ध किया। घर को ठीक-ठाक कर वहीं रहने लगे। वहीं रहकर लोगों को रामकथा सुनाते और जो कुछ मिलता उससे जीवन यापन करते ।
तुलसी का बचपन ही नहीं पूरा जीवन कष्ट और संघर्ष में ही बीता था। तुलसी विद्वान तो थे ही, स्वभाव से विनम्र और मृदुभाषी थे। राम में उनका अटूट विश्वास था। समाज को तब अंधविश्वास व प्रचलित दोषों से बचाया। तुलसीदास को चित्रकूट, अयोध्या और काशी काफी प्रिय थे। अपने अंतिम दिनों में तुलसी काशी में ही थे। लगभग 126 वर्ष की आयु में तुलसी का संवत् 1680 के श्रावण मास में ही स्वर्गवास हुआ।
तुलसीदास ने कई ग्रंथ लिखे, इनमें कवितावली, गीतावली, कृष्णगीतावली, विनय-पत्रिका और रामचरितमानस प्रमुख हैं। ये सभी ग्रंथ आज भी हिन्दू धर्म में काफी पवित्र माने जाते हैं।
कैसे मनाएँ तुलसीदास जयन्ती
How to celebrate Tulsidas Jayanti
- आयोजन स्थल को सजाएँ।
- तुलसीदास के चित्र पर माला लगाएँ एवं दीप जलाएँ ।
- तुलसी का जीवन काफी प्रेरणादायक है। उनके जीवन की कई घटनाएँ व प्रसंग ऐसे हैं जो बच्चों को सुनाए जाने चाहिए।
- तुलसीदास द्वारा रचित ग्रंथों की सूची बनाकर लगाएँ। बच्चों को इन ग्रंथों का परिचय दें कि किस ग्रंथ में क्या लिखा गया है।
- इनके ग्रंथों की हिन्दू धर्म में क्या प्रतिष्ठा और क्या महत्व है। बच्चों को बताया जाए ताकि बच्चों में भी इन ग्रंथों के प्रति रुचि जाग्रत हो ।
- रामायण के दोहे-चौपाइयों के लेखन की प्रतियोगिता की जाए। 7. बच्चों से रामायण किसी विशेष प्रेरक अंश का सस्वर पाठ करवाया जाए।
- इनके जीवन के किसी प्रसंग या घटना को लघु नाटिका रूप में पेश किया जाए।