स्वामी विवेकानन्द जयन्ती (Swami Vivekananda Jayanti)
कलकत्ता के सिमुलिया पल्ली नामक गाँव में विवेकानन्द का जन्म हुआ था। इनके पिता विश्वनाथ दत्त एक वकील थे। 12 जनवरी सन् 1863 को माता भुवनेश्वरी देवी की कोख से जन्म लिया था भारत के इस महापुरुष ने। भुवनेश्वरी देवी स्वयं भी धार्मिक विचारों वाली तीव्र बुद्धि की महिला थीं। विवेकानन्द का जन्म का नाम नरेन्द्रनाथ था ।
अपने माता-पिता से विवेकानन्द को कुशाग्र बुद्धि विरासत में मिली थी। पिता वकील थे अतः धन-सम्पत्ति का जरा भी अभाव नहीं था। विवेकानन्द ने बचपन से ही अंग्रेजी भाषा के माध्यम से अपनी शिक्षा आरंभ की थी। वह पढ़ने में बहुत तेज थे। उनकी स्मृति भी कमाल की थी। जो कुछ पढ़ते वह उन्हें तुरंत स्मरण हो जाता। विवेकानन्द को खेल और व्यायाम से बहुत प्यार था। इसलिए उनका शरीर गठीला और सुडौल था।
सन् 1879 में स्कूल की शिक्षा पूरी कर विवेकानन्द ने कलकत्ता के जनरल असेम्बली कॉलेज में दाखिला लिया। सन् 1884 में उन्होंने बी.ए. पास किया। इसके बाद कानून की पढ़ाई की।
कॉलेज शिक्षा के दौरान विवेकानन्द ने दर्शन व साहित्य का गहरा अध्ययन किया था। उनकी तर्क करने की शक्ति प्रबल थी। जब तक उन्हें किसी बात का संतोषप्रद उत्तर नहीं मिलता वे तर्क करते रहते। दीन-दुखियों के प्रति उनके मन में दया थी। वे किसी को दुखी देखते तो विचलित हो उठते ।
पिता की मृत्यु के बाद परिवार के भरण-पोषण के लिए विवेकानन्द ने नौकरी की। पर उनका मन नहीं लगा। उन्हें सांसारिक विषयों में जरा भी दिलचस्पी नहीं थी! उनका मन तो अध्यात्म की ओर दौड़ता था। वे किसी ऐसे व्यक्ति की तलाश में थे जो उनकी ज्ञान-पिपासा को शान्त कर सके।
उन दिनों स्वामी रामकृष्ण परमहंस अपने उपदेशों और भक्ति-भावना के कारण पूरे देशभर में प्रसिद्ध थे। सन् 1861 ई. में विवेकानन्द ने स्वामी रामकृष्ण परमहंस से भेंट की। अपनी तर्क करने की आदत के अनुसार वे रामकृष्ण परमहंस से तरह-तरह के सवाल पूछते। अपने ज्ञान की लौ को बढ़ाते-बढ़ाते एक दिन विवेकानन्द संन्यासी हो गए। इसी समय से विवेकानन्द नाम ग्रहण किया था।
सन् 1888 में विवेकानन्द ने भारत भ्रमण आरम्भ किया। तब उनकी आयु मात्र 25 वर्ष थी। देश के कोन-कोने में उन्होंने रामकृष्ण परमहंसा संदेश पहुँचाया। वे दो वर्ष तक पूरे भारत का भ्रमण करते रहे।
सन् 1893 सितंबर में अमरीका के शिकागो नगर में एक सर्वधर्म सम्मेलन का आयोजन हुआ। इस सम्मेलन में भाग लेने के लिए पूरे विश्व भर के सब धर्मों के विद्वान शामिल हुए थे। विवेकानन्द इसे एक सुअवसर समझ स्वयं भी शिकागो जा पहुँचे। यद्यपि उन्हें वहाँ से कोई निमन्त्रण नहीं मिला था। इसलिए न उनका वहाँ स्वागत हुआ न अन्य कोई व्यवस्था । वहाँ उन्हें काफी कठिन समय बिताना पड़ा। सम्मेलन में बोलने के लिए भी उन्हें बड़ी मुश्किल से अनुमति दी गई। किंतु जब विवेकानन्द ने सम्मेलन में धारा-प्रवाह अंग्रेजी में अपना भाषण दिया तो वहाँ बैठे दस हजार श्रोता और उपस्थित विद्वान मंत्र-मुग्ध हो गए। उस सम्मेलन में बोलकर उन्होंने पूरे अमरीका का ही दिल नहीं जीता, अन्य देशों में भी उनकी प्रशंसा हुई। वे इस सम्मेलन के सबसे सफल वक्ता रहे।
अगले दो वर्ष तक वे अमरीका में ही रहे। घर-घर अपना संदेश पहुँचाया। इस बीच अनेक लोग उनके शिष्य बन गए। अपने देश की संस्कृति व ज्ञान का प्रसार करते हुए वे अमरीका से इंग्लैंड जा पहुँचे। वहीं पर इनका परिचय मार्गेट नोबल नाम की विदुषी महिला से हुआ। वह इनकी शिष्या बनकर भारत आ गई। यहाँ आकर वह भी समाज-सेवा में लग गई। विवेकानन्द की यह शिष्या भारत में ही नहीं पूरे विश्व में भगिनी निवेदिता के नाम से प्रसिद्ध हुई। विवेकानन्द का लंदन प्रवास में ही स्वास्थ्य गिरने लगा था। वे स्विट्जरलैंड, इटली, जर्मन, फ्रांस आदि देशों में चार वर्ष तक भ्रमण के बाद भारत लौटे। 15 जनवरी, 1897 को वे कोलम्बो पहुँचे, वहाँ से कलकत्ता गए। भारत में उनका भव्य स्वागत हुआ। विवेकानन्द ने रामकृष्ण मिशन के नाम से एक संस्था की स्थापना की। इस संस्था का उद्देश्य था गरीबों की सेवा करना ।
विवेकानन्द ने फिर भारत भ्रमण शुरू किया। इस बार वे उत्तर भारत में रहे। 1898 में वापस कलकत्ता पहुँचे और गंगा नदी के किनारे बैलूर मठ की स्थापना की। इस मठ में युवकों को वेद-गीता का अध्ययन कराया जाता था।
कलकत्ता में प्लेग फैला तब स्वामीजी ने अपने शिष्यों के साथ दुखियों की खूब सेवा की। 1899 में पुनः भगिनी निवेदिता के साथ अमरीका, ब्रिटेन व फ्रांस आदि देशों की दो वर्ष तक यात्रा की।
1901 में जब भारत लौटे तब तक उनका स्वास्थ्य काफी खराब हो चुका था। वे बैलूर मठ में ही रहने लगे।
चार जुलाई 1902 को मात्र 39 वर्ष की आयु में विवेकानन्द ने महानिर्वाण को प्राप्त किया। अपने देश की संस्कृति और धर्म की ध्वजा को संसार भर में प्रतिष्ठा के साथ फहराने विवेकानंद जैसी आत्माएँ विरले ही संसार में जन्म लेती हैं। भारत भूमि पुण्यमयी है जिसने ऐसा पुत्र रत्न पाया।
ऐसे मनाएँ विवेकानन्द जयन्ती How to celebrate Vivekananda Jayanti
- विवेकानन्द का फोटो लगाएँ ।
- माल्यार्पण करें, दीप जलाएँ ।
- विवेकानन्द ने हमारे धर्म, संस्कृति, अध्यात्म की दिशा में काम किया था। वे गरीबों के बड़े मददगार थे। बच्चों में अपनी संस्कृति और धर्म के प्रति रुचि जगाने के लिए इनकी जीवनी के प्रमुख अंश बच्चों को सुनाए जाएँ।
- बच्चों में धर्म के प्रति रुचि पैदा हो। इसके लिए किसी विद्वान पुरुष को बुलाकर प्रवचन कराया जा सकता है।
- विवेकानन्द के अनमोल वचन पोस्टर पर लिखकर लगाए जाएँ।
- विवेकानन्द द्वारा स्थापित मठों के बारे में बच्चों को संक्षिप्त में जानकारी दी जाए।