स्वामी रामदास जयन्ती
Swami Ramdas Jayanti
संवत् 1665 वि. (अप्रैल सन् 1608) में चैत्र शुक्ला नवमी को रामदास का जन्म हुआ । इनका जन्म का नाम नारायण था। यही नारायण आगे चलकर समर्थ गुरु स्वामी रामदास बने ।
रामदास का जन्म आन्ध्र प्रदेश के औरंगाबाद जिले में स्थित जाम्ब नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता श्री सूर्याजी पंत और माता राणूबाई की ये दूसरी संतान थे। रामदास के माता-पिता दोनों ही धार्मिक प्रवृत्ति के सीधे-सरल दम्पति थे। श्री सूर्याजी सूर्य के उपासक थे।
रामदास जब बालक थे तब के दिनों में संत एकनाथ अपनी विद्वता के लिए काफी प्रसिद्ध थे। रामदास माता-पिता अपने दोनों बच्चों को लेकर संत एकनाथ के दर्शनार्थ गए। संत एकनाथ ने अपने योगबल से बालक रामदास को देखते ही कहा, “यह बालक बहुत बड़ा महापुरुष होगा। इसके हाथों देश का उद्धार होगा।”
कहते हैं श्री महावीर ने सात वर्षीय रामदास को केवल अपने ही दर्शन नहीं दिए बल्कि उन्हें श्रीराम के दर्शन भी कराए। श्रीराम ने स्वयं नारायण को रामदास नाम दिया और आदेश दिया कि धर्म और समाज का उद्धार करो।
रामदास तब मात्र बारह वर्ष के ही थे। माता ने उनके विवाह का प्रयास किया। पर जिस बालक के मन में देश के उद्धार की लौ सुलग रही थी भला वह कैसे विवाह के बंधन में बँधना स्वीकार करता। रामदास घर छोड़कर चला गया। विवाह का मुहूर्त टल जाने के बाद घर लौटा। माता ने उन्हें विवश कर विवाह करना चाहा, पर वह विवाह छोड़ घर को ही त्यागकर वन में चले गए।
वन-गमन के पीछे उनका उद्देश्य तपस्या करने का था। पंचवटी पहुँचकर बारह वर्ष तक तपस्या में लीन रहे। इसके बाद तीर्थों के दर्शन करने तीर्थयात्रा पर चल पड़े। तीर्थयात्रा के दौरान लोगों को सत्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते रहे।
स्वामी रामदास परम विद्वान थे। महात्मा थे। उनकी विद्वता की चर्चाएँ सुनकर ही छत्रपति शिवाजी ने गुरु रामदास से दीक्षा ली। समर्थ गुरु रामदास ने भी शिवाजी महाराज में अपनी दिव्य दृष्टि से ऐसा कुछ देखा कि दीक्षा देने को तत्पर हो गए। गुरु रामदास की ही प्रेरणा से शिवाजी महाराज ने सत्यधर्म और स्वराज की स्थापना का संकल्प लिया। गुरु के मार्गदर्शन, उनकी प्रेरणा और उनके आशीर्वाद के कारण ही महाराज शिवाजी के शासनकाल में देश एक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में उभरा। महाराष्ट्र की स्थापना का श्रेय भी गुरु रामदास को ही जाता है। गुरु के मन में तब एक रामराज्य की आकांक्षा थी।
गुरु रामदास की जयन्ती पूरे देश में मनाई जाती है। उस महान संत और उसके आदर्शों की चर्चा होती है। परन्तु महाराष्ट्र में तो गुरु रामदास को हनुमान का अवतार मानते हैं। देवता की तरह उनकी पूजा होती है। पूरे महाराष्ट्र में संत गुरु स्वामी रामदास की जयन्ती बहुत धूम-धाम से मनाई जाती है। स्वराज और रामराज्य के प्रेरक गुरु की जयन्ती मनाकर उनके आदर्शों से प्रेरणा लेनी चाहिए।
कैसे मनाएँ गुरु रामदास जयन्ती
How to celebrate Ram Das Jayanti
- आयोजन स्थल को सजाएँ।
- गुरु रामदास का चित्र रखें।
- माल्यार्पण कर दीप-अगर जलाएँ।
- गुरु रामदास व शिवाजी के अनेक संस्मरण हैं जो शिवाजी की गुरुभक्ति पर प्रकाश डालते हैं।
- गुरु रामदास की संक्षिप्त जीवनी विद्यार्थियों को बताई जानी चाहिए।
- विद्यार्थियों को गुरु का सम्मान करने की प्रेरणा दी जा सकती है। 7. चित्र न होने पर किसी बालक को रामदास की वेश-भूषा में बैठाया जा सकता है।
- रामदास व शिवाजी के संस्मरणों को लघु-नाटिका के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है।