सूरदास जयन्ती
Surdas Jayanti
कृष्ण के अनन्य भक्त थे सूरदास। सूरदास ने अपने आराध्य कृष्ण को लेकर ही काव्य रचना की। सूरदास जैसा संत कवि न पहले हुआ न सूर के बाद। उन्हें हिन्दी साहित्याकाश का सूर्य कहा जाता है। सूरदास ने कृष्ण-लीला का जो वर्णन किया है वह अद्वितीय है।
सूरदास का जन्म संवत् 1635 में हुआ था। आगरा से मथुरा की ओर जाने वाले मार्ग पर स्थित रुनकता ग्राम इनकी जन्मस्थली थी। इनके पिता श्री रामदास सारस्वत ब्राह्मण थे ।
ऐसा माना जाता है कि सूरदास जन्म से ही अंधे थे। फिर भी प्रतिदिन अपने आराध्य द्वारिकाधीश कृष्ण के दर्शन करने जाते थे! कहते हैं वहाँ मंदिर में किसी ने सूरदासजी पर व्यंग्य करते हुए कह दिया कि “बाबा, तुम यहाँ क्या करने आते हो!”
“भाई, यह सही है मैं अंधा हूँ। परन्तु वह जगत का मालिक तो अंधा नहीं है न! वह तो मुझे देखता है न कि मैं रोज उसे शीश नवाने आता हूँ।”
सूरदास अपने लिखे सुललित पदों को तानपूरे के साथ गाते रहते थे। एक दिन इनकी भेंट महाप्रभु वल्लभाचार्य से हुई। उन्होंने जब सूर के पद सुने तो भावविभोर हो गए ! वल्लभाचार्य ने सूरदास को अपने वल्लभ सम्प्रदाय में दीक्षित कर लिया। अपने गुरु की आज्ञा से ही सूर ने ‘श्रीमद् भगवद्’ के आधार पर कृष्ण-भक्ति के पदों की रचना की। सूर वास्तव में कृष्ण के अनन्य भक्त थे। कृष्ण ही उनके आराध्य देव थे। सूर की भक्ति निष्काम थी।
सूरदास के तीन ग्रंथ उपलब्ध हैं-सूरसागर, सूर सारावली और साहित्य लहरी। इन तीनों ग्रंथों में सूरसागर महान कृति है ।
सूर ने बालक कृष्ण का भी वर्णन किया है तो कृष्ण के मथुरा चले जाने के बाद माता यशोदा सहित गोपियों के विरह का भी हृदयस्पर्शी वर्णन किया है। कृष्ण के बाल रूप के वर्णन में भी सूर का वात्सल्य प्रेम भक्ति से ओतप्रोत है। सूरदास के पद गेय हैं। उन्हें आसानी से गाया जा सकता है। सूरदास बाल-लीला का वर्णन करने वाले पहले कवि हैं।
कृष्ण, राधा, नंद, यशोदा, गोप-गोपियाँ सभी के वर्णन अपने पदों में सटीक और सरस किये हैं। सूर का सम्पूर्ण साहित्य ईश्वर प्रेम में भीगा हुआ है।
कहते हैं एक बार सूर कुएँ में गिर गए थे। उस अंधे कुए में से को उनके आराध्य देव भगवान् श्रीकृष्ण ने ही निकाला! सूर के पदों ने तब के रास-रंग में डूबे समाज को भक्ति के मार्ग की ओर मोड़ा। ब्रजभाषा में लिखा सूर का साहित्य, हिन्दी साहित्य जगत के लिए भी अनमोल धरोहर है।
सूर ने अपने काव्य से देश और समाज का कल्याण किया। तब हिन्दू समाज छिन्न-भिन्न हो रहा था। छुआछूत व ऊँच-नीच का बोलबाला था। सामाजिक भेदभाव, घृणा, अविश्वास और अशांति का अंधकार फैला हुआ था। ऐसे में सूरदास ने सीधे चाहे कुछ भी नहीं कहा पर उनके पदों ने जन-जन के मन में भक्ति का रस घोल दिया। सैकड़ों वर्ष बाद आज भी सूरदास के पद गाकर लोग भगवान् कृष्ण के चरणों में अपनी श्रद्धा के सुमन अर्पित करते हैं।
ऐसे भक्त कवि सचमुच वंदनीय हैं जिन्होंने निष्काम भाव से भक्ति को ।
कैसे मनाएं सूरदास जयन्ती
How to celebrate Surdas Jayanti
- सूरदास का चित्र रखें।
- दीप जलाएँ।
- चित्र को माला पहनाएँ।
- सूर कृष्ण-भक्त थे अतः कृष्ण के बाल्यकाल से संबंधित पोस्टर लगाए।
- सूर के ऐसे पद चुने जाएँ जिन्हें पार्श्व में गाया जाए और मंच पर पद के अनुसार बच्चे अभिनय करें, झाँकी सजाएँ।
- बच्चों में सूर के पदों की गायन प्रतियोगिता रखी जाए।
- सूर के पदों में राधा और गोपियों का वर्णन खूब किया गया है, पद के अनुसार नृत्य प्रस्तुत किये जा सकते हैं।
- सूरदास के तीन ग्रंथ हैं, उनके बारे में बच्चों को जानकारी दी जाए।
- सूरदास ने छुआछूत, ऊँच-नीच का भेदभाव मिटाने का काम भी किया था। उनकी इन विशेषताओं को भी बच्चों के सामने प्रस्तुत किया जाए।