सुनीता रानी
Sunita Rani
जन्म : दिसंबर 1979 जन्मस्थान : संगरूर (पंजाब)
सुनीता रानी ‘अर्जुन पुरस्कार पाने वाली चर्चित एथलीट हैं। अक्तूबर 2002 में हुए बुसान एशियाई खेलों में 1500 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक तथा 5000 मीटर दौड़ में कांस्य पदक जीत कर चर्चा में आई सुनीता रानी अखबारों में छा गई जब इन खेलों के बाद हुए डोप टेस्ट में वह फेल हो गई। इसके बाद वह अनेक दिनों तक समाचार पत्रों व समाचार चैनलों पर चर्चा का विषय बनी रही क्योंकि उससे पदक छीन लिया गया तथा उसके बनाए रिकार्ड्स को रिकार्ड्स से हटा दिया गया। यह अलग बात है कि बाद में सुनीता को इस मामले में बरी कर दिया गया और उसके पदक भी वापस दे दिये गए।
सुनीता रानी मध्यम परिवार से आई है। उसके पिता का नाम राम सरूप तथा मां का नाम संतोष रानी है। उसके पिता गांव के पटवारी पद से रिटायर हुए हैं। अब उनकी खेल के सामान की छोटी-मोटी दुकान है। उसे राष्ट्रपति के. आर. नारायणन के हाथों ‘अर्जुन पुरस्कार भी दिया जा चुका है।
उसका खेल का सफ़र 1994 में स्कूली जीवन से शुरू हुआ। पंजाब के संगरूर ज़िले के सुनाम में 15 वर्षीय सुनीता सोचती थी कि यह तो एक जन्मजात प्रतिभा होती है, तभी व्यक्ति दौड़कर इनाम हासिल कर पाता है। तभी उसकी सीनियर छात्रा गोल्डी रानी ने उसे समझाया कि दौड़ में जीतने के लिए मेहनत करो। उसी की प्रेरणा से सुनीता रानी ने ज़िला स्तर पर 1994 में 3000 मीटर की दौड़ में भाग लिया और 18 वर्ष से कम आयु वर्ग में गोल्डी के बाद द्वितीय स्थान प्राप्त किया तथा 16 वर्ष से कम आयु वर्ग में प्रथम स्थान पाया और सुनीता को बहुत प्रशंसा मिली।
इसके बाद अपने पिता व भाइयों की प्रेरणा से उसने अनेक प्रतियोगिताओं में भाग लिया। 1995 के फेडरेशप कप में विजय प्राप्त करने के बाद वह खेल अधिकारियों की निगाह में आई।
उसके बाद वह सिडनी ओलंपिक में भाग लेने के लिए तैयारियों में लगी रही। उसे महसूस हुआ कि 10,000 मीटर की स्पर्धा छोड़कर उसे 50000 मीटर दौड़ने की क्षमता का विकास करना चाहिए, साथ ही 800 मीटर दौड़ का अभ्यास करना चाहिए ताकि स्पीड बनी रहे। उसे यकीन था कि वह अपनी टाइमिंग ठीक करके पदक पा लेगी परन्तु किन्हीं कारणों वश वह सिडनी ओलंपिक में भाग नहीं ले सकी।
2002 में हुए बुसान एशियाई खेलों में उसने अपना राष्ट्रीय रिकार्ड तोड़ते हुए 1500 मीटर का स्वर्ण पदक प्राप्त किया। 4:06:03 मिनट में दूरी तय करके उसने 6 सेकिंड से एशियाई रिकार्ड तोड़ दिया। वह दूसरी प्रतियोगियों से भी छह सेंकिड आगे थी।
सुनीता की यही ख्याति रातोंरात बदल गई और उसे उसकी निन्दनीय स्थिति की ओर ले गई। उसका डोप टेस्ट पाज़िटिव रहा, जिसके कारण उसकी सर्वत्र निन्दा होने लगी। एथलेटिक्स फेडरेशन और भारतीय ओलंपिक संघ ने उसे बचाना तो दूर उससे दूरी बनानी आरम्भ कर दी। सुनीता गुमनामी में खोने लगी। जब कि यही स्थिति श्रीलंका की सुशान्तिका जयसिंह और इंग्लैंड के लिन्फोर्ड क्रिस्टी की हुई थी तो उनके देशों ने उन्हें बचाने का प्रयास किया था।
23 वर्षीय खिलाड़ी को उस वक्त कि ने ढाढ़स बंधाने का साहस नहीं किया। कहा जाता है कि भारत में 1998 से राज्यों द्वारा स्पांसर किए गए डोपिंग प्रोग्राम चल रहे हैं ताकि खिलाड़ी बेहतर प्रदर्शन कर सकें और पदक जीत सकें। सच्चाई क्या है ? कोई नहीं जानता ?
24 दिसम्बर, 2002 भारतीय ओलंपिक संघ ने घोषणा की कि अन्तरराष्ट्रीय ओलंपिक मेडिकल कमीशन ने सुनीता के डोप टेस्ट के आरोप वापस ले लिए हैं। सुनीता के लिए यह नए वर्ष के उपहार जैसा ही था जो कुछ समय पूर्व ही आ गया था।
जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में वह दिन कोई नहीं भूल सकता जब सुनीता सलवान कमेटी के सामने अपना मामला रखने आई थी। मीडिया ने उन्हें घेर लिया तो उन्हें बचाकर ले जाना पड़ा था। ड्रग टेस्ट में विफल होना पहले पृष्ठ की सुर्खियों में रहा था। लेकिन अंत में सुनीता इस मामले से बच निकलने में कामयाब रही। वह अपने पदक भी बचा सकी। कुवैत में ओलंपिक कांउसिल आफ एशिया के पास उसके पदक रख दिये गए थे, जो उसे अन्त में वापस दे दिए गए।
अंत में ओलंपिक काउंसिल ऑफ एशिया की डोपिंग और बायो कैमिस्ट्री कमेटी ने पाया कि सियोल की टेस्ट लेबोरेटरी में कुछ गड़बड़ियां थीं। अतः इस केस को खत्म करने का निर्णय लिया गया। अतः घोषित किया गया कि उसके द्वारा बनाए गए रिकार्ड भी ज्यों के त्यों उसी के नाम रहेंगे।
एशियाई खेलों के इतिहास में यह पहला मौका था जब डोपिंग टेस्ट का फैसला बदला गया हो। भारतीय ओलंपिक संघ के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी ने भी सुनीता को बचाने का प्रयास किया था।
कई वर्षों के अन्तराल के पश्चात सनीता रानी ट्रैक पर पुनः लौटी। मई 2005 में पंजाब पुलिस की सुनीता ने ए. एफ. आई. राष्ट्रीय एथलेटिक सर्किट मीट में 10,000 मीटर दौड़ का स्वर्ण पदक हासिल किया। उसने यह दौड़ 34:57.42 सेकंड में पूरी करके पदक प्राप्त किया।
जून 2005 में सुनीता रानी ने शानदार वापसी करते हुए 1500 मीटर दौड़ 4:20.63 में पूरी करके प्रथम स्थान प्राप्त किया। यह प्रतियोगिता नेहरू स्टेडियम, दिल्ली में फेडरेशन कप एथलेटिक्स के लिए थी। उनकी यह दौड़ उनके राष्ट्रीय रिकार्ड से 12 सैकंड ज्यादा थी।
क्या होता है डोप टेस्ट? डोप टैस्ट या ड्रग टैस्ट वह टैस्ट है जो खिलाड़ियों के खून के सैंपल पर किया जाता है। दरअसल एशियाई ओलंपिक परिषद् की ओर से कुछ ताकत व नशे की दवाइयों पर प्रतिबंध लगा रहता है ताकि खिलाड़ी उनका सेवन कर कृत्रिम ताकत के द्वारा खेलों में पदक न जीत सकें। ये प्रतिबंधित दवाएं सभी अन्तरराष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं पर लागू होती हैं। ये दवाएं खिलाड़ी के तन में एक अतिरिक्त ऊर्जा भर देती हैं जिससे वह सामान्य की अपेक्षा असामान्य रिकार्ड बनाकर विजयी बन जाता है। जबकि सामान्य व्यक्ति उतनी अधिक ऊर्जा प्राप्त नहीं कर सकता। टैस्ट के बाद रक्त में पाया जाने वाला नैंड्रोलिन नामक रसायन प्रतिबंधित दवाइयों की ओर इंगित करता है, जैसा कि सुनीता रानी के ब्लड सैंपल एक में पाया गया था। लेकिन सियोल में हुए बी टैस्ट में सुनीता के टेस्ट में बहुत अधिक असमानता पाई गई।
नैंड्रोलिन ही वह द्रव्य है जिसके कारण विश्व भर के खिलाड़ी दोषी पाए जाने पर सजा भुगत रहे हैं। मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार इसे लेने पर शरीर नैंड्रोलिन की भांति बन जाता है।
भारतीय एथलेटिक संघ की ओर से सुनीता को निर्दोष घोषित कर दिया गया था। उन्होंने जो मुददे उठाए थे, उसमें ए और बी सेंपल में नैंड्रोलीन की मात्रा में 250 प्रतिशत का फर्क था। बुसान के लैब की गड़बड़ी की बात भी उठाई गई थी। भारत के लिए यह फैसला अत्यन्त महत्त्वपूर्ण था। इस प्रकरण के बाद अन्तरराष्ट्रीय मीडिया ने कुछ इस प्रकार प्रचार किया था जैसे भारत में ड्रग्स लेना आम बात हो।
उपलब्धियां :
- 2002 में सुनीता ने बुसान एशियाई खेलों में 1500 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक जीता।
- बुसान एशियाई खेलों में उन्होंने 5000 मीटर दौड़ में कांस्य पदक जीता।
- मई 2005 में ए. एफ. आई. राष्ट्रीय एथलेटिक्स मीट में उन्होंने 10,000 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक प्राप्त किया। ४ जून 2005 में सुनीता रानी ने 1500 मीटर दौड़ में प्रथम स्थान प्राप्त किया।