सुभाष चन्द्र बोस जयन्ती (23 जनवरी) Subhash Chandra Bose Jayanti
भारतवर्ष की स्वतंत्रता के इतिहास में नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का अपना विशिष्ट स्थान है। सुभाष का जन्म जगन्नाथपुरी के निकट कटक नगर में 23 जनवरी, 1897 को प्रसिद्ध और समृद्ध वकील बाबू जानकीनाथ के घर हुआ था। इनकी माता का नाम प्रभावती था।
सम्पन्न परिवार में पैदा होने के बावजूद सुभाष बहुत सादगी भरा जीवन जीते थे। कहते हैं वे घर में अपने शरीर पर एक धोती लपेटे रहते। जमीन पर ही सोते थे। स्कूल में पढ़ते समय भी वे अपने गरीब साथियों की प्रायः मदद करते रहते थे। यही नहीं, कुछ साथियों के साथ मिलकर गरीब व बीमार लोगों की सेवा भी करते। उनके घर में सफाई कर देते, दवा आदि लाकर दे देते।
कॉलेज की शिक्षा बी.ए. तक पूरी करके इंग्लैण्ड चले गए। वहाँ शिक्षा ग्रहण करते हुए भी अपनी प्रतिभा के कारण काफी प्रसिद्ध हुए। वहाँ रहकर आई.सी.एस. परीक्षा पास कर ली। वे चाहते तो उच्च अधिकारी के पद पर उन्हें नौकरी मिल जाती। पर उन्हें नौकरी करना स्वीकार नहीं था।
इंग्लैंड प्रवास में वहाँ लोगों की राष्ट्रीय भावना, साफ-सफाई व वहाँ का अनुशासन देखकर उनके मन में यह भावना जाग्रत हुई कि मेरा देश भी ऐसा बने। वे इंग्लैंड की स्वतंत्रता से प्रभावित हुए। उनके मन में तभी भारत को एक स्वतंत्र राष्ट्र बनाने की प्रेरणा जागी। भारत लौटकर वह ब्रिटिश सरकार की सेवा में लगने के बजाय देश-सेवा में जुट गए। उन्होंने कांग्रेस दल में सम्मिलित होकर देश की आजादी की लड़ाई में सच्ची निष्ठा और लगन से भाग लिया।
अपने व्यवहार और कार्यों से देश के लाखों लोगों का मन जीत लिया। देश की खातिर वे कई बार जेल गए। सन् 1924 में जेल गए तो भूख हड़ताल कर दी। आखिर अंग्रेज सरकार को झुकना पड़ा। पर इस भूख हड़ताल के कारण वे काफी बीमार हो गए। उनका लगभग बीस किलो वजन कम हो गया था ।
सुभाष बाबू कॉलेज में पढ़ते हुए भी कभी इस बात से नहीं डरे कि यहाँ अंग्रेजों का राज्य है। कॉलेज में अंग्रेज विद्यार्थियों की भारतीयों का अपमान करने पर उनकी पिटाई तक कर दी थी।
अपनी प्रतिभा के बल पर सुभाष बाबू कलकत्ता कारपोरेशन के मेयर चुने गए थे। 26 जनवरी, 1930 को कांग्रेस ने स्वतंत्रता दिवस घोषित किया। जगह-जगह जुलूस निकाले गए। सुभाष बाबू कहाँ पीछे रहते। उन्होंने युवाओं का नेतृत्व करते हुए जुलूस निकाला। वे सबसे आगे थे। अंग्रेज पुलिस ने जुलूस को रोका। लाठी चार्ज किया जिसमें सुभाष घायल हो गए। उन्हें फिर जेल में डाल दिया गया।
बम्बई में कांग्रेस की मीटिंग थी। गांधीजी सहित सभी बड़े नेता बम्बई मीटिंग में इकट्ठे हुए। मीटिंग से लौटते हुए सुभाष बाबू को फिर गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया। सुभाष इस बार फिर काफी बीमार हो गए। डॉक्टरों ने उन्हें टीबी (तपेदिक) बता दिया। वे चिकित्सा के लिए यूरोप भेज दिए गए। वहीं इन्हें पिता की बीमारी का संदेश मिला तो वे स्वदेश लौट आए। पर इस यात्रा में उनका विट्ठल भाई जैसे कई विद्वानों और क्रांतिकारियों से मिलना हुआ था।
स्वदेश लौटकर वे घर पहुँचे। उसके थोड़ी देर बाद ही इनके पिता का स्वर्गवास हो गया। सुभाष बाबू अभी पूणतया स्वस्थ नहीं थे। इस सदमे से वे वापस अस्वस्थ हो गए। अंग्रेज सरकार ने उन्हें वापस यूरोप भेज दिया।
सन् 1936 अप्रैल में वे भारत लौटे। कलकत्ता बंदरगाह पर उनके स्वागत में लाखों लोग खड़े थे। अंग्रेज सरकार ने उन्हें वहीं गिरफ्तार कर लिया। अगले दिन पूरे भारत में हड़ताल और आंदोलन हो गया। इनका स्वास्थ्य और बिगड़ गया। अगले वर्ष कांग्रेस अधिवेशन हरिपुर में हुआ। उसमें सुभाष को अध्यक्ष चुना गया। कहते हैं कांग्रेस का इतना भव्य और शानदार अधिवेशन नहीं हुआ। सुभाष बाबू को लेकर जो जुलूस निकाला गया, उसने सिद्ध कर दिया कि देशवासी सुभाष को कितना प्यार और सम्मान देते हैं। सन् 1939 के कांग्रेस अधिवेशन में गांधीजी के विरोध के उपरान्त वे अध्यक्ष चुने गए। पर वे इतने बीमार थे कि उन्हें स्ट्रेचर पर लिटाकर मंच पर लाया गया।
कहते हैं गांधी और सुभाष के बीच वैचारिक मतभेद था। इसके चलते ही उन्होंने स्वयं को कांग्रेस से अलग कर लिया और ‘फारवर्ड ब्लाक’ नाम से नई पार्टी बना ली। पर उनके मन में गांधी के प्रति कटुता नहीं थी । वे कहते थे कि स्वतंत्र भारत के प्रधान तो बापू ही होंगे, मैं तो सेनापति बनकर देश की रक्षा करूँगा।
द्वितीय विश्वयुद्ध के समय अंग्रेज सरकार ने इन्हें घर में ही नजरबंद कर दिया था। परंतु 23 जनवरी, 1941 को वे उस कैद से निकल भागे। काबुल की राह होकर जर्मनी पहुँच गए। वहाँ अपनी अलग आजाद हिन्द फौज बनाई। हिटलर की मदद से ब्रिटिश सेना से युद्ध किया। कहते हैं। यहाँ से जापान जाते हुए विमान दुर्घटना में सुभाष बाबू की मृत्यु हो गई।
भारतवासी नेताजी के सदा कृतज्ञ रहेंगे। ऐसे साहसी, निडर, देशभक्त नेता की जयन्ती मनाकर बच्चों में देशभक्ति की ज्वाला जगाई जा सकती है। सुभाष बाबू की मृत्यु के बाद सन् 1992 में भारत सरकार ने इन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न’ से अलंकृत किया।
कैसे मनाएँ सुभाष जयन्ती (How to celebrate Subhash Chandra Bose Jayanti)
- आयोजन स्थल पर तिरंगी झंडियाँ लगाएँ ।
- सुभाष की तस्वीर पर माल्यार्पण कर दीप प्रज्वलित करें।
- भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक थे सुभाष। सादगी, गरीबों की मदद, बीमारों की सेवा, भारत और भारतवासियों की प्रतिष्ठा जैसे अनेक उद्देश्य थे उनके जीवन के। उनके जीवन परिचय में से ऐसे प्रसंग और घटनाएँ बच्चों को सुनाई जाएँ।
- उनके संक्षिप्त परिचय से बच्चों को अवगत कराएँ।
- उनकी आजाद हिन्द फौज का परिचय दें।
- उनके जीवन की घटनाओं को लघु नाटिका रूप में दिखाया जा सकता है।
- नन्हे बच्चों की ‘नन्हा मुन्ना राही हूँ, देश का सिपाही हूँ, बोलो मेरे संग जयहिन्द …’ गाने के साथ सैनिक वेश में परेड कराई जा सकती है।
- वे अंग्रेज सरकार की जेल से कैसे निकल भागे, फिर कहाँ गए इस पूरे प्रसंग को इस तरह पेश किया जाए कि बच्चों में सुभाष के साहस और निडरता के गुण उभरकर आएँ।
- सुभाष के सैनिक रूप में बच्चे सजकर आएँ ऐसी प्रतियोगिता की जा सकती है।