शिक्षा का अधिकार
Shiksha Ka Adhikar
मानव जीवन में शिक्षा का महत्त्वपूर्ण स्थान है। शिक्षा ही मानव को सच्चा मानव बनाती है। सच्ची शिक्षा उसे सुसंस्कृत और अनुशासन युक्त बनाती है। वह ज्ञानार्जन कर अपना बौद्धिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास करती है। लेकिन आज के यग में शिक्षा और इनके महत्त्वपूर्ण उद्देश्य लुप्त होते जा रहे हैं। आज इनका उद्देश्य भौतिक सुख और संपन्नता प्राप्त करना रह गया है। व्यक्ति की सच्ची शिक्षा निरक्षरता में नहीं, साक्षरता में है। इसलिए हमारे देश के नेताओं ने देश की स्वतंत्रता से पहले राष्ट्रीय विकास के माध्यम से शिक्षा का महत्त्व अनुभव कर लिया था। वे जान चुके थे कि नैतिक, आर्थिक और सामाजिक उत्थान के लिए शिक्षा बहुत आवश्यक है। तब से ही शिक्षा को व्यक्ति का अधिकार बनाने का प्रयास शुरू कर दिया गया था। महात्मा गाँधी तो प्रत्येक भारतवासी को बुनियादी शिक्षा देने के पक्ष में थे।
शिक्षा पर सबको अधिकार का उद्देश्य पूरा करने के लिए भारत सरकार ने जगह-जगह विद्यालय खोले हैं। प्रौढ शिक्षा सह शिक्षा और अनौपचारिक शिक्षा केन्द्र खोले हैं। आज तो शिक्षा का स्तर बहुत बढ़ गया है। लेकिन अभी स्थिति इतनी मजबत नहीं हुई है जितनी कि होनी चाहिए थीं। मनुष्य पृथ्वी का स्वामी तो बन गया है पर शिक्षा का स्वामी नहीं बन पाया है। शिक्षा के क्षेत्र में अभी बालिकाएँ बहुत पिछड़ी हुई हैं। उनकी स्थिति सुदृढ़ नहीं है। आज भी पुरुष समाज नारी शिक्षा में रुकावट बना हुआ है। इसलिए विद्यालय छोड़ने वाली लड़कियाँ ही अधिक हैं। भारत में जब भी कभी शिक्षा नीति में बदलाव लाने की आवश्यकता पाटे तो उसमें शिक्षा का अधिकार सभी को देना आवश्यक होना चाहिए।
शिक्षा का अनिवार्य अधिकार देने पर सभी निरक्षर शिक्षा के दायरे में आ जाएंगे। शिक्षित होकर वे अपने अधिकारों व कर्मयों को समझ सकेंगे। अपने देश की राजनीति, समाजनीति, सांस्कृतिक धरोहर व धार्मिक निरपेक्षता के लाभ समझ सकेंगे। बल्कि होना यह चाहिए कि जो भी बच्चों को शिक्षित करने में बाधक बने उसके विरुद्ध कार्रवाई की जानी चाहिए। चाहे वे अभिभावक हों या शिक्षा केन्द्र का संचालन करने वाले। जब देश में शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार सबको मिल जाएगा तब देश परी नाह साभा हो जाएगा। देश से अशिक्षा का अंधकार समाप्त हो जाएगा। यह तभी संभव होगा जब पूरी ईमानदारी से साक्षरता अभियान चलाया जाएगा और शिक्षा को पूरी तरह निःशुल्क बनाया जाएगा।