शिखा रखने एवं उसमें गाँठ बाँधने का औचित्य क्या है?

शिखा रखने एवं उसमें गाँठ बाँधने का औचित्य क्या है?

Shikha rakhen evm usme gaanth bandhne ka auchitya kya hai?

Pauranik-Kahta

हिन्दूधर्म के साथ शिखा का अटूट सम्बन्ध होने के कारण चोटी रखने की परम्परा प्राचीनकाल से चली आ रही है। शिखा का महत्त्व भारतीय-संस्कृति में अंकुश के समान है। यह हमारे आदर्श और सिद्धान्तों का अंकुश है। इससे मस्तिष्क में पवित्र भाव उत्पन्न होते हैं।

पूजा-पाठ के समय शिखा में गाँठ लगाकर रखने से मस्तिष्क में संकलित ऊर्जा-तरंगें बाहर नहीं निकल पाती हैं। इनके अन्तर्मुखी हो जाने से मानसिक शक्तियों का पोषण, सद्बुद्धि, सद्विचार आदि की प्राप्ति, वासना की कमी, आत्मशक्ति में बढ़ोतरी, शारीरिक शक्ति का संचार, अवसाद से बचाव, अनिष्टकर प्रभावों से रक्षा, सुरक्षित नेत्र-ज्योति, कार्यों में सफलता तथा सद्गति जैसे लाभ भी मिलते हैं।

शिखारहित व्यक्ति श्रीहीन (लक्ष्मी से हीन) कहा गया है। यजुर्वेदीय तैत्तिरीयोपनिषद् के ‘शिखाध्याय’ (1/6/1) में कहा गया है-

अन्तरेण तालुके य एषः स्तन अवलम्बते स इन्द्रयोनिः।

यत्रासो वेशान्तो विवर्तते. व्यापोह्य शीषकपाले।

अर्थात् ‘तालु के मध्य में स्तन की तरह जो केशराशि दिखती है, वहाँ केशों का मूल है। वहाँ सिर के कपाल का भेदन करके ‘इन्द्रयोनि नामक सुषुम्ना नाड़ी है।’

योगियों का कहना है कि योगी इस सुषुम्ना नाड़ी को प्रबुद्ध करके आत्म-साक्षात्कार करते हैं। वैद्य नाडी को ‘मस्तुलिंग’ तथा साथ वाले अग्रभाग को योगी तथा वैद्य ‘ब्रह्मरन्ध्र’ कहते हैं। वैद्यों का कान है कि शरीर में प्रधान अंग सिर है। शरीर में जितनी भी नाडियाँ हैं, उनका सम्बन्ध सिर से मानवजीवन का केन्द्र भी सिर ही है। सिर में दो शक्तियाँ रहती हैं-प्रथम ज्ञानशक्ति और दूसरी शक्ति। इन दोनों शक्तियों की परम्परा नाड़ियों द्वारा सारे शरीर में फैलती है। शरीर में भी ज्ञान और ये दो विभाग हैं। दोनों विभागों का मूलस्थान मस्तुलिंग तथा मस्तिष्क है। ‘मस्तलिंग’ कर्मशक्ति का केन्द्र है और मस्तिष्क’ ज्ञानशक्ति का। मस्तिष्क के साथ ज्ञानेन्द्रियों-कान, का आँख, जीभ और त्वचा का सम्बन्ध है तथा मस्तुलिंग से हाथ, पैर, गदा, इन्द्रिय और वाणी का बन्ध है। मस्तिष्क और मस्तुलिंग जितने स्वस्थ या सामर्थ्यवान होंगे. ज्ञानेन्द्रियों तथा कामेन्द्रियों में उतनी ही शक्ति बढ़ेगी। इन दोनों के अस्वस्थ होने से इन्द्रियों में भी विकार आ जाएँगे।

प्रकृति की विलक्षणता है कि मस्तिष्क ठण्डक चाहता है और मस्तुलिंग गर्मी। मस्तिष्क की गर्मी को शान्त करने के लिए उस पर तेल आदि रखा जाता है, क्षौरकर्म आदि कराया जाता है, किन्तु मस्तलिंग की स्थिति विचित्र है। इसे गर्मी या ठण्डक से बचने के लिए कपड़े या अन्य वस्तु से बने पदार्थ से ढका नहीं जा सकता। मस्तुलिंग में मध्यम उष्णता के लिए गोखुर (गौ के खुर) के परिमाप के बाल ही उपयुक्त हैं, जो सिर पर ही होते हैं। मस्तुलिंग पर सदा गहरे बाल रहें, अन्य केशों से उसकी विशेषता या उच्चता रहे, इसलिए उसका नाम ‘शिखा’ है। कर्मप्रवर्तक होने से ‘शिखा’ का सम्बन्ध धर्म से भी है। संध्या आदि के समय परमात्मा की कृपा शिखा के माध्यम से ही हमारे अन्दर पहुँचती है। इसीलिए नंगे सिर होकर संध्या करने या भोजन करने का विधान है। एक प्रकार से हमारी शिखा रेडियो के एरियल की तरह हमारे मस्तुलिंग पर होती है। शिखा रखने का प्रावधान हिन्दू धर्म के चारों वर्गों में एक समान है।

शिखा क्यों?

वर्तमान भौतिक युग में जब कि मनुष्य के सम्पूर्ण क्रिया-कलाप बिना मतलब के कभी नहीं होते, जब कि प्रत्येक वस्तु का प्रत्यक्ष दृष्ट लाभ उसमें प्रवृत्ति का कारण होता है, तब यह प्रश्न स्वाभाविक है कि शिखा क्यों रखी जाये? आधुनिक समाज में मनुष्य द्वारा बालों के इस गुच्छे को सिर पर पालकर रखने से क्या फायदा? इसलिए अब हम पौरस्त्य एवं पाश्चात्य दृष्टिकोणों से शिखा के कतिपय लाभों पर विचार करते हैं।

शिखा हमारी ज्ञानशक्ति को चैतन्य रखते हुए उसे सर्वदा अभिवृद्धि की ओर अग्रसर है। यह विज्ञानानुकूल बात है कि काली वस्तु सूर्य की किरणों में से अधिक ताप तथा शक्ति का आकर्षण किया करती है। इस वस्तु को सिद्ध करने के लिए हमें दूर जाने की आवश्यकता न होगी। आप सफेद और काले कपड़ों के दो टुकड़े लीजिए उनको भिगोकर धूप में सूखने डाल दीजिए। आप देखेंगे कि काला कपड़ा सफेद की अपेक्षा जल्दी सूख गया। उदाहरण का तात्पर्य यही है कि काली वस्तु में सूर्य-किरणों को विशेष रूप से अपने में आत्मसात् करने की शक्ति होती है। वैसे भी सूर्य की प्रखर किरणों से काले हुए व्यक्ति दक्षिण प्रदेश में खूब देखे जा सकते हैं।

प्रकृति में यह नियम पाया जाता है कि प्रत्येक क्षुद्रांश सर्वदा अपने महान् अंशी (कुल) में मिलकर ही अपनी पूर्णता को प्राप्त करता है। प्रकृति की सभी वस्तुएँ इसी नियम के अधीन काम कर रही हैं। सूर्यांशभूता बुद्धि तथा प्राणशक्ति को जागृत करने के लिए ऋषियों ने बुद्धि-केन्द्र मस्तिष्क पर गोखुर के बराबर वालों का एक गुच्छा रखने का विधान किया है। बालों का यह गुच्छा, जिसे हम ‘शिखा’ कहते हैं, काले रंग का होने कारण सूर्य से मेधा प्रकाशिनी शक्ति का विशेष आकर्षण करके ऊर्ध्वाभिमुखी बुद्धि को और भी उन्नत करने में सहायक होता है।

शिखास्थान के नीचे मज्जातन्तुओं द्वारा निर्मित बुद्धिचक्र और उसके ही समीप ब्रह्मरन्ध्र है। इन दोनों के ऊपर सहस्रदल कमल में अमृत-रूपी ब्रह्म का अधिष्ठान है। शास्त्रविधि से जब मनुष्य उस परम पुरुष परमात्मा का ध्यान करता है या वेदादि स्वाध्याय करता है, तब इनके अनुष्ठान से समुत्पन्न अमृत तत्त्व वायुवेग से इस सहस्र दल कर्णिका में प्रविष्ट हो जाता है। यह अमृत तत्त्व यहीं नहीं रुकता, अपितु अपने केन्द्र स्वरूप भगवान् सूर्य में लीन होने के लिए सिर से भी बाहर निकलने का प्रयत्न करता है।

“शिखा’ इस अत्यन्त कोमल तथा सद्योमारक मर्मस्थान के लिए प्रकृतिप्रदत्त कवच है, जो कि न केवल आकस्मिक आघातों से इस मर्म को बचाती है, अपितु उग्र शीत, धूप आदि से भी इसकी रक्षा करती है। विदेशों में इसी मर्मस्थान को उग्र शीत-ताप से बचाने के लिए टोप (Cap) धारण किया जाता है।

शिखा-बन्धन का हेतु-गुप्तद्वार, दशमद्वार, इन्द्रयोनि, अधिप और वस्तुलिंग आदि अनेक नामों से पुकारे जाने वाले उस स्थान की रक्षा करना है, जो कि मानवपिण्ड में सर्वाधिक मर्मस्थान माना जाता है।

Leave a Reply