शारीरिक श्रम
Sharirik Shram
श्रम का मतलब है, मनुष्य द्वारा अपने किसी विशेष प्रयोजन के लिए प्रकृति में किया जा रहा सचेत परिवर्तन। श्रम का उद्देश्य निश्चित समाज के लिए उपयोगी उत्पादों को पैदा करना है। जाहिर है, इसके लिए उसे अपने पूर्व के अनुभवों के आधार पर पहले मानसिक प्रक्रिया सम्पन्न करनी पड़ती है, आवश्यकता क्या है, उसकी तुष्टि के लिए करना होगा, किस तरह करना होगा, एक निश्चित योजना आर क्रिथाओं, गतियों का एक सुनिश्चित ढाँचा दिमाग में तैयार किया जाता हैं तत्पश्चात उसी के अनुरूप मनुष्य प्रकृति पर कुछ निश्चित साधनों के द्वारा कुछ निश्चित शारीरिक क्रियाएँ सम्पन्न करता है।
शारीरिक श्रम से मनुष्य का शरीर स्वस्थ रहता है तथा शारीरिक श्रम के द्वारा उसे धन की प्राप्ति होती है। जिससे वह अपना जीविकोपार्जन आसानी से करता है। कठोर श्रम करने वाला मनुष्य सदैव उन्नति करता है। बड़े से बड़े तेज और समर्थ व्यक्ति तनिक आलस्य से जीवन की दौड़ में पिछड़ जाते हैं किंतु श्रम करने वाले व्यक्ति दुर्बल व साधनहीन होकर भी सफलता की दौड़ में आगे निकल जाते हैं।
श्रम प्रत्येक मनुष्य जाति तथा राष्ट्र की उन्नति के लिए अनिवार्य है। मनुष्य जितना श्रम करता है उतनी ही उन्नति कर लेता है। हमारे देश में कई औद्योगिक घराने हैं जिन्होंने साम्राज्य स्थापित कर रखे हैं। यह सब उनके श्रम का ही परिणाम है। श्री लाल बहादुर शास्त्री अपने श्रम के कारण ही देश के प्रधानमन्त्री बन सके।
अमेरिका, रूस, जापान तथा इंग्लैण्ड ने श्रम के माध्यम से ही उन्नति की है और आज विश्व के सबसे समृद्ध देश बन गए हैं। अतः यह कहना अनुचित न होगा कि श्रम के बिना कुछ भी कर पाना संभव नहीं है।