शारीरिक दण्ड
Sharirik Dand
विद्यार्थियों को अनुशासन में रखने के लिए पहले उन्हें कठोर यातनाएँ दी जाती थीं। उन्हें डंडों से, बल्लों से खूब पीटा जाता था। नन्हें बच्चों को मुर्गा बनाकर थकाया जाता था। वर्तमान काल में बच्चों को शारीरिक दण्ड नहीं दिया जा सकता।
मेरे विचार से, शारीरिक दण्ड पर रोक लगाना बहुत आवश्यक कदम है। बच्चों को विद्यालय में शारीरिक दण्ड से नहीं अपितु मानसिक संस्कार द्वारा अनुशासित करना चाहिए। इसके लिए पुरस्कार, प्रशंसा, निंदा आदि उपाय अधिक ठीक रहते हैं। क्योंकि शारीरिक दण्ड के भय से बच्चा कभी भी अपनी समस्या अपने शिक्षक के समक्ष नहीं रख पाता है। उसे सदैव यही भय सताता रहता है कि यदि वह अपने अध्यापक को अपनी समस्या बताएगा तो उसके अध्यापक उसकी कहीं पिटाई न कर दें जिसके कारण वह बच्चा दब्बू किस्म का बन जाता है। इसके स्थान पर यदि उसे स्नेह से समझाया जाएगा तो वह सदैव अनुशासित रहेगा और ठीक से पढ़ाई भी करेगा।