सशक्त न्यायपालिका
Sashakt Nyaypalika
लोकतंत्र के तीनों पायों-विधायिका कार्यपालिका और न्यायपालिका का अपना-अपना महत्त्व है, किन्तु जब प्रथम दो अपने मार्ग या उद्देश्य के प्रति शिथिल होती हैं या संविधान के दिशा-निर्देशों की अवहेलना होती है तो न्यायपालिका का विशेष महत्त्व हो जाता है। न्यायपालिका ही है जो हमें आईना दिखाती है, किन्तु आईना तभी उपयोगी होता है जब उसमें दिखाई देने वाले चेहरे को विद्रूपता को सुधारने का प्रयास हो। सर्वोच्च न्यायालय के अनेक जनहितकारी निर्णयों को कुछ लोगों ने न्यायपालिका की अतिसक्रियता माना, पर जनता को लगा कि न्यायालय सही है। राजनीतिक चश्मे से देखने पर भ्रम की स्थिति हो सकती है।
प्रश्न यह है कि जब संविधान की सत्ता सर्वोपरि है तो उसके अनुपालन में शिथिलता क्यों होती है। राजनीतिक दलगत स्वार्थ या निजी हित आड़े आ जाता है और यही भ्रष्टाचार को जन्म देता है। हम कसमें खाते हैं जनकल्याण की और कदम उठाते हैं आत्मकल्याण के। ऐसे तत्त्वों से देश को, समाज को सदा खतरा रहेगा। अत: जब कभी कोई न्यायालय ऐसे फैसले देता है जो समाज कल्याण के हों और राजनीतिक ठेकेदारों को उनकी औकात बताते हों तो जनता को उसमें आशा की किरण दिखाई देती है। अन्यथा तो वह अंधकार में जीने को विवश है ही।