बढ़ती महँगाई को लेकर दो नागरिकों की बातचीत को संवाद के रूप में लिखिए।
राहुल : अरे! महेश बाबू, क्या लाए हो बाज़ार से?
महेश : अरे! भैया ज्यादा कुछ नहीं, बस थोड़ी-सी दालें और चावल ही लाया हूँ।
राहुल : अब इस बढ़ती महँगाई ने तो सबका हाथ ही तंग कर दिया है।
महेश : कुछ न पूछो। सभी चीजों के दाम आसमान को छू रहे हैं। कोई भी चीज़ सस्ती नहीं है। कुछ दालों के भाव तो 100-150 रुपए किलो तक पहुँच गए हैं।
राहुल : दालें ही क्या सभी चीजें इतनी महंगी हो गई हैं कि वे आम आदमी की पहुँच से बाहर होती जा रही हैं।
महेश : पर एक बात मेरी समझ में नहीं आती। महँगाई को रोकने के लिए सरकार क्यों कुछ नहीं कर रही है?
राहुल : अरे भैया! मुझे तो लगता है दाल में कुछ काला है। वरना सरकार चाहे, तो क्या कुछ नहीं कर सकती। महँगाई के खिलाफ कानून बना सकती है। चीजों के दाम तय कर सकती है।
महेश : यही नहीं, उचित दाम से अधिक मूल्य वसूलने वालों की धर-पकड़ भी कर सकती है।
राहुल : हाँ, सरकार आए दिन कुछ-न-कुछ बयान अवश्य देती है। कभी वायदे करती है की योजनाएँ बनाती है, पर न तो वे वायदे कभी पूरे होते हैं और न ही वे योजनाएँ।
महेश : देश में बढ़ते भ्रष्टाचार के कारण ही यह सब कुछ हो रहा है।
राहुल : आश्यर्च की बात तो यह है कि विपक्षी पार्टियाँ भी सरकार पर दबाव डालने के लिए कछ नहीं कर रही हैं।