साम्प्रदायिकता का ज़हर
Sampradayikta Ka Jahar
संप्रदाय का अर्थ है किसी विशिष्ट मत या सिद्धांत को मानने वालों का वर्ग या समह। जैसे हिंदओं का वैष्णव संप्रदाय, शैव संप्रदाय, सिख संप्रदाय, जैन संप्रदाय और बौद्ध संप्रदाय आदि। मुसलमानों का शिया, सन्नी वोहरा संप्रदाय, इसाइयों का कैथोलिक, प्रोटेस्टेंट संप्रदाय। जब कोई व्यक्ति समाज में अपने संप्रदाय को श्रेष्ठ मानकर अन्य संप्रदायों को भी उसे मान लेने पर जोर डालता है तो यह सांप्रदायिकता कहलाती है। यही साम्प्रदायिकता देश के लिए भयानक अभिशाप बन जाती है। साम्प्रदायिकता के कारण दंगे होते हैं जिनमें हजारों निर्दोषों की निर्मम हत्या होती है। इन दंगों में दुकानों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों को लूटा जाता है। भारत में सांप्रदायिकता के जहर के कारण जान-माल का काफी नुकसान उठाना पड़ता है। इससे देश पीछे चला जाता है। भारत में कई बार हिंदू-मुस्लिम दंगे हुए हैं जिससे निर्दोषों को अपनी संपत्ति और जान से हाथ धोना पड़ा है। 1947 में भारत विभाजन के समय साम्प्रदायिक दंगे हुए। इसमें हजारों हिंदुओं और मुसलमानों को जान से हाथ धोना पड़ा। हजारों लड़कियों के साथ बलात्कार हुआ। इसी प्रकार 1984 में हजारों सिक्खों की हत्या हुई। उससे पहले पंजाब में सिक्ख आतंकवादियों ने हजारों हिंदुओं को मौत के घाट उतारा। 2002 में गोधरा में 250 हिंदुओं को जीवित जला दिया गया। इसके परिणामस्वरूप गुजरात में भीषण दंगे हुए। ताजा घटना हरियाणा की है। इसी साल जाट आरक्षण के नाम पर हरियाणा के अनेक स्थानों रोहतक, जींद, कैथल आदि में दंगे हुए। इन दंगों में एक खास समुदाय की संपत्ति को ज्यादा नुकसान पहुँचा। करीब तीस करोड़ के नुकसान का अनुमान है। राज्य भी कई साल पीछे हो गया। वस्तुतः साम्प्रदायिकता के अभिशाप के लिए राजनीतिक नेता उत्तरदायी हैं। पंजाब का आतंकवाद, राम जन्मभूमि विवाद आदि राजनीतिक दलों ने पैदा किया है। राजनीतिक दल अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण के लिए अनुचित कदम उठाते हैं। वोट बैंक की राजनीति साम्प्रदायिकता का महत्त्वपूर्ण कारण है। निष्पक्ष प्रशासन और दोषियों को कड़ी सजा ही देशवासियों को सांपदायिकता के जहर से मुक्ति दिला सकती है।