सांप्रदायिक सदभावना
Sampradayik Sadbhavna
इस देश की अगर कोई सबसे बड़ी दुश्मन है तो सांप्रदायिकता है। सांप्रदायिकता ऐसा जहर है। जिसमें व्यक्ति केवल अपने धर्म-जाति और भाषा आदि की अच्छाइयों को गिनाता है। दूसरों के धर्म की लाख बुराइया करता है। इससे देश में सांप्रदायिक झगड़ों को बल मिलता है। इसलिए देश के प्रेमी सांप्रदायिकहीन भावना पर ज्यादा बल देते हैं। उनकी हर कोशिश यही होती है कि देश में किसी तरह के झगडे न हों। सब धर्म-जाति व भाषा के लोग एक थाली में बैठकर भोजन करें। एक साथ देश को आगे बढ़ाने का प्रयास करें और जब भी देश पर बाहरी हमला हो तो सब अपने जातिगत, धर्मगत भेद मिटाकर दुश्मनों के आगे सीना तान कर खड़े हो जाएँ। सच तो यह है कि आज सबस बड़ा देश को खतरा भारत की एकता को है। इस एकता को दुश्मन सांप्रदायिक तनाव पैदा कर खत्म करने पर तुला है। देश में संप्रदाय के नाम पर ईष्या फैलाई जाती है, दंगे भड़काए जाते हैं. तोड-फोड की घटनाएँ की जाती हैं, बर्बरता और अमानवीय प्रवृत्तियाँ अपनाई जाती हैं। इसके कारण पानवीय संवेदनाएँ चर-चूर हो जाती हैं। सांप्रदायिकता में मानव पशुवत् व्यवहार करता है। शांति और सद्भाव की जगह रक्तपात के लिए उतारु हो जाता है। मानवीय मूल्यों को ताक पर रख देता है। ऐसे में देश का प्रबुद्ध वर्ग समाज में सांप्रदायिक सदभावना लेकर आता है और लोगों को समझा-बुझा कर शांत करता है। असल में, हम सांप्रदायिकता का सही अर्थ नहीं जानते। जब तक हम राष्ट्र धर्म और संप्रदाय का सही अर्थ नहीं जानेंगे तब तक सांप्रदायिक सद्भावना कायम नहीं हो सकती। असल में संप्रदाय एक विशेष प्रकार की पूजा-पद्धति का नाम है। साधारणत: किसी व्यक्ति के द्वारा चलाए गए पंथ को संप्रदाय कहते हैं। जैसे इस्लाम, बौद्ध, शाक्त, वैष्णव, शैव संप्रदाय आदि। इनके चलाने वाले कोई न कोई महापुरुष हैं। कोई भी पंथ का संचालक कभी भी किसी दूसरे धर्म का अपमान नहीं करता। न ही दूसरे धर्म को मानने से मना करता है पर स्वार्थी समाज स्वार्थ पूरा करने के लिए इन विभिन्न पंथ के लोगों को एक-दूसरे से लड़वा देते हैं जिसके कारण इंसानियत का खून हो जाता है। संप्रदाय पूजा-पद्धति है जबकि धर्म नियम है। ये ऐसे नियम हैं जिनसे समाज संचालित होता है। संप्रदाय धर्म नहीं है। संप्रदाय संकुचित विचारधारा है जबकि धर्म विशाल है। ऐसे में अगर हम देश में सांप्रदायिक एकता बनाए रखना चाहते हैं, सांप्रदायिक सद्भावना बनाए रखना चाहते हैं तो हमें अपने मन को उदार बनाना होगा। हमें विभिन्न संप्रदायों की पूजा-पद्धति के प्रति आदर भाव दिखाना होगा, इन संप्रदायों की अच्छी बातों को अपनाना होगा, विचारों में मतभेद दूर करने होंगे। तब देश में सांपदायिक सद्भावना कायम होगी और इसी भावना से देश उन्नत होगा।