सामाजिक सुरक्षा
Samajik Suraksha
समाज एक ऐसा समूह है जिसके अन्तर्गत सदस्य सामान्य जीवन की प्राथमिक आवश्यकताओं एव दशाओं को पूर्ण करता है। मनुष्य की पारस्परिक क्रियाएँ ही समाज का निर्माण करती है और विकास करती है। इनके माध्यम से समाज की पीढ़ी दूसरी पीढ़ी को उसके कल्याण के लिए अपने अनुभव हस्तांतरित करती है। व्यक्ति के सत्य से ही सामाजिक सत्य का उद्घाटन होता है। सामाजिक सत्य व्यक्ति सत्य को प्रभावित करता है। यह समाज सुखी रहना चाहिए, इसके नागरिक स्वतंत्र रहने चाहिए. तभी कोई राष्ट्र महान बनता है। लेकिन राष्ट्र का परम कर्त्तव्य है कि यह समाज सुरक्षित रहे। सामाजिक सुरक्षा देना देश की ज़िम्मेदारी है। भारतीय समाज में अनेक कुप्रथाएँ हैं जिनसे कई बार बचने के लिए सामाजिक सुरक्षा की आवश्यकता पड़ती है। जब कोई भी देश नारी को सामजिक सुरक्षा देगा, यहाँ के प्रत्येक व्यक्ति को भयमुक्त करेगा, प्रत्येक व्यक्ति अपनी इच्छानुसार बिना किसी दबाव के अपने काम-धंधे करेगा। तभी कोई देश प्रगतिगामी हो सकता है। सत्तारूढ़ सरकार का काम सामाजिक सुरक्षा देना है। अत: किसी भी समाज की तरक्की के लिए यह आवश्यक है कि लोग सुरक्षित हों। सामाजिक सुरक्षा एक प्रश्न है। समाज में रह रहे बच्चे, स्त्री-पुरुष आदि सभी की सुरक्षा इसके अन्तर्गत आती है। वर्तमान समाज में समाज सुरक्षित नहीं है। इसके लिए केवल सरकारें उत्तरदायी नहीं हैं; अपितु समाज स्वयं भी उत्तरदायी है। इस समय समाज में बलात्कार, अपहरण, लूट-पाट, खून-खराबा, मार-काट आदि घटनाएँ घट रही हैं। इन जघन्य अपराधों के प्रति समाज को सजग किया जाए और से ही अपराधों से बचने के लिए बचपन से ही बच्चों को सुसंस्कृत किया जाए। सरकार का यह कर्तव्य है कि सामाजिक सुरक्षा को छिन्न-भिन्न करने वाले तत्त्वों के साथ कडाई से निपटे। जब अपराधमुक्त समाज होगा, स्वतंत्र चिंतक समाज होगा, तभी देश की प्रगति में अपना अमूल्य योग देगा। अतः सामाजिक सुरक्षा सरकार और स्वयं देश के नागारिकों का संयुक्त उत्तरदायित्व है।