विद्यालय की ओर से आपको दिल्ली-भ्रमण पर ले जाया गया। रास्ते में सड़क पर भीख मांगते, ढाबे पर काम करते और चौराहों पर सामान बेचते छोटे बच्चों को देखकर कैसा लगा, अपने एक पुराने मित्र को पत्र लिखिए।
अविनाश
14, आजाद नगर
मेरठ
13 नवंबर, 2014
प्रिय संचित!
कैसे हो?
आशा है, तू सानंद होगा। मैं भी यहाँ सकुशल हूँ।
कल हमारी पूरी कक्षा दिल्ली-भ्रमण पर गई थी। खूब मजा रहा। पूरा दिन चहल-पहल और आनंद में बीता। वापसी में हमने एक ढाबे पर चाय पी। हमें चाय परोसने वाला एक नन्हा लड़का था। उसकी उम्र हमारे जितनी ही रही होगी। फटे कपडे, चेहरा उदास। वह हमें शॉब कहके पुकार रहा था। यार! उसका वह संबोधन मुझे अब तक नहीं भूलता। मैं सोचने लगा कि अगर वह हमारा सहपाठी होता तो हमारे साथ घूम-फिर कर मौज ले रहा होता। उस बेचारे की दशा पर दया आती है।
फिर रास्ते में तो मुझे अनेक बच्चे मिले-भीख माँगते और चौराहों पर सामान बेचते। सामान बेचते बच्चों को देखकर मुझे कौतुहल होता था। किंतु भीख माँगते बच्चों को देखकर तो दया ही आती थी। क्यों नहीं, सरकार इन्हें पढ़ने की सुविधा देती? क्यों इनके माँ-बाप इन्हें काम करने देते हैं? क्या ये अनाथ हैं? क्या इनकी कोई मजबूरी है? कोई इनकी परवाह कयों नहीं करता! मैं अब भी यही सोचे जा रहा हूँ।
खैर, अब पत्र बंद करता हूँ।
तेरा
अविनाश