Sab Din Rahat Na Ek Saman “सब दिन रहत न एक समान” Essay in Hindi, Best Essay, Paragraph, Nibandh for Class 8, 9, 10, 12 Students.

सब दिन रहत न एक समान

Sab Din Rahat Na Ek Saman

 

प्रभु तेरी माया।

कहीं धूप कहीं छाया।।

परमात्मा की सृष्टि एक खेल की तरह है। इसमें धूप भी है और छाया भी। पहाड़ भी हैं और खाइयाँ भी। वसंत भी है और पतझड़ भी। जन्म भी है और मृत्यु भी। विजय भी है और पराजय भी। यहाँ डोली भी निकलती है और जनाज़ा भी। ये सब दृश्य संसार में बने ही रहते हैं। अंतर इतना है कि आज रामलाल पहाड़ की ऊँचाइयों पर है तो कल शामलाल होगा। समय परिवर्तनशील है। इसलिए दुख के दिनों में अधीर नहीं होना चाहिए। ये तूफान भी एक दिन चले जाएंगे। सुख के दिनों में फूल कर कुप्पा नहीं होना चाहिए। एक दिन ये सुख-साधन भी नहीं रहेंगे। कभी भारत में अंग्रेजों की तूती बोलती थी। ईस्ट इंडिया कंपनी ने पूरे भारत को निगल लिया था। आज भारत के लक्ष्मी मित्तल और टाटा ब्रिटेन की विशालकाय कंपनियाँ खरीद रहे हैं। यहाँ तो यह कहावत चरितार्थ होती है-

कभी नाव जहाज़ पर तो कभी जहाज़ नाव पर।

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