रामलीला मैदान का दृश्य
Ramlila maidan Ka Drishya
मैं राम लीला मैदान से लिख रहा हूँ। यह ऐतिहासिक मैदान है। रामलीला मैदान इसलिए कहलाता है कि यहाँ सैकड़ों सालों से रामलीला का आयोजन किया जाता है। इसी रामलीला मैदान में आज विश्वप्रसिद्ध राष्ट्राय सत मुरारि बाबू की राम कथा हो रही है। कथा सबह नौ बजे आरम्भ हई और एक बजे समाप्त हुई। कथा से पहल बापूने श्री राम ही राम, राम राम राम राम राम का कीर्तन किया। यह कीर्तन दस मिनट तक हुआ। इसके बाद कथा प्रवचन आरम्भ हुआ। चौपाई का चुनाव किया ‘रिपसदन पद कमल नमामि। सर सुशील भरत अनुगामी। जाकासमुन सा रिपुनासा। नाम सत्रुघ्न वेद प्रकासा।’ बापू ने इस चौपाई को आधार मानकर शत्रुघ्न की वीरता का यशगान किया। इसके लिए उन्होंने अपने कथन को प्रमाणित करने के लिए विभिन्न धर्मग्रंथों का आश्रय लिया। शत्रुघ्न की यश गाथा का गुणगान जब वे कर रहे थे तब रामलीला मैदान में पूरी तरह सन्नाटा छाया हुआ था। कहीं भी कोई सर खड़ा नहीं था। सब लोग तल्लीनता से भक्ति कथा में अवगाहन कर रहे थे। बीच-बीच में बापू ने अनेक भजन गाए। जब भजन गाते थे तो कुछ रसविभोर भक्त नृत्य करने लगते थे। भजन समाप्त होने पर पुनः पंडाल में स्तब्धता छा जाती थी। चार घंटे का प्रवचन कब समाप्त हो गया, भक्तजन को पता ही नहीं चला। बाप की कथा में केवल कथा नहीं थी अपितु कथा के बहाने दर्शन, नीति, राष्ट्र चिंता भी थी। कथा समापन के बाद फिर राम धन लगी और आरती आदि के बाद कथा का विसर्जन हुआ।