प्रांतीयता का फैलता हुआ विष
Prantiyata ka Failta Hua Vish
भारत की पहचान एकता है। हमारे वेदों, पुराणों में : राष्ट्रभक्त लेखकों ने भारतीयों को सांप्रदायिक एकता का पाठ पढ़ाया है। भारत विशाल है। इसमें अनेक प्रांत हैं। इन प्रांतों में स्थानीय जनता की ओर से सरकारें चुनी जाती हैं और वही सरकारें केन्द्र सरकार के सहयोग से शासन का संचालन करती हैं। लेकिन कुछ स्वार्थी राजनेता देश में प्रान्तीयता का जहर फैला रहे हैं। अपने प्रान्त का होने पर प्रत्येक व्यक्ति को गर्व हो सकता है और होना भी चाहिए लेकिन अगर कोई दूसरे प्रान्त में आता-जाता है तो उसे प्रांतीय होकर कोसा जाए, बुरी बात है। यह भेद-भाव देश की अखंडता को खंडित करता है और कर रहा है। दिल्ली में आने वाले विभिन्न प्रांतों के लोगों के साथ कुछ लोग इसीलिए मारपीट कर बैठते हैं कि वे महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा अथवा पंजाब आदि राज्यों से हैं। कथित लोग अपने राज्य के नागरिकों को श्रेष्ठ मानते हैं और दूसरे राज्यों को अपने से हीन समझते हैं। मुम्बई में बिहार और उत्तर प्रदेश के लोगों से भेदभाव किया जाता है। शिव सेना और अन्य प्रांतीय दल महाराष्ट्र के लोगों को महत्त्व देते हैं जबकि बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, असम, से आए हुए लोगों को जब देखा अपमानित करते रहते हैं। नतीजतन रोजी-रोटी कमाने आए विभिन्न प्रान्तों के लोगों को अपमानित होकर इन प्रान्तों से पलायन करना पड़ता है, बल्कि कर भी रहे हैं। भारतीय संविधान में सभी भारतीय नागरिकों को समान अधिकार प्राप्त हैं। भारत के किसी भी प्रांत में रहने वाला कहीं भी जाकर जीविका अर्जित कर सकता है। लेकिन प्रान्तीयता के जहर ने इन नागरिकों की स्वतंत्रता खतरे में डाल दी है। दिल्ली में आए दिन पूर्वोत्तर राज्यों से रोजी-रोटी अर्जित करने या पढ़ने वाले छात्रों के साथ अपमानित व्यवहार किया जाता है। केंद्र सरकार को इस ओर कड़े कदम उठाने चाहिए और कथित स्वार्थी तत्त्वों पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए।