प्रकृति के प्रति मानव की उदासीनता
Prakriti ke Prati Manav ki Udasinta
मानव अपने उदभव काल से ही प्रकृति से प्रेम करता रहा है। उसने प्रकृति की गोद में जन्म लिया है। उसी से उसने अपने भरण-पोषण की सामग्री प्राप्त की है। सभी प्रकार के वन्य या प्राकृतिक उपादान उसके जीवन और जीविका के एकमात्र साधन रहे हैं। प्रकृति ने उसे संरक्षण दिया। हिंसक पशुआ का मार से बचने के लिए उसने ऊँचे-ऊँचे वृक्षों का आश्रय लिया। मीठे फलों को खाकर अपनी भूख शांत की। सूर्य की तीव्र गर्मी से बचने के लिए उसने शीतल छाया देने वाले वृक्षों का रोपण किया। लेकिन आज वही मानव आधुनिक बनकर प्रकृति का दोहन कर रहा है। प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर विकास कर रहा है लेकिन यह विकास किसी भी दशा में उचित नहीं है। वह प्रकृति के प्रति उदासीन हो गया है इसलिए अनेक वर्षों से वन लगातार सिकुड़ते जा रहे हैं। प्राकृतिक शीतल व स्वच्छ जल प्रवाहित करने वाली नदियाँ प्रदूषित हो रही हैं जिसके मूल में स्वयं कारण है। कोयला, आयरन और अभ्रक आदि का। अवैध खनन हो रहा है। प्रकृति का जम कर दोहन करने वाले मानव को पता नहीं है कि वह स्वयं अपने पाँव पर कुल्हाड़ी मार रहा है। अगर यही हाल रहा तो एक दिन इस संसार में मानव का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा क्योंकि प्रकृति उसे जीवित रखे हुए है। उसे प्रकृति की ओर अपनाई यह उदासीनता छोड़नी होगी। प्रकृति के रखरखाव की जिम्मेदारी मात्र प्रशासन की नहीं है उसकी भी है। और उसे यह सहयोग मन से देना चाहिए। आखिर प्रकृति उसकी माँ ही तो है।