प्राचीन भारतीय विज्ञान
Prachin Bharatiya Vigyan
प्राचीन भारतीय विज्ञान भारतीय पुरातत्व और प्राचीन साहित्य साक्षी है कि प्राचीन भारतीय विज्ञान अत्यंत संपन्न रहा है। इसमें अनेक विविधताएँ हैं। यह वैज्ञानिकता धर्म, दर्शन, भाषा, व्याकरण आदि के अतिरिक्त गणित, ज्योतिष, आयुर्वेद, रसायन, सैन्य विज्ञान आदि में देखी जा सकती है। प्राचीन ऋषि-मुनियों ने अपने पुरुषार्थ, ज्ञान और शोध से कई शास्त्रों की रचना की है। इनमें से प्रमुख है-आयुर्वेद शास्त्रा आयुर्वेद शास्त्र का विकास उत्तर वैदिक काल में हुआ। इस विषय पर अनेक स्वतंत्र ग्रंथों की रचना हुई। भारतीय परम्परा के अनुसार आयुर्वेद की रचना सबसे पहले ब्रह्मा ने की। ब्रह्मा ने प्रजापति को. प्रजापति ने अश्विनी कुमार को और फिर अश्विनी कुमार ने इस विद्या को इन्द्र को प्रदान किया। इन्द्र के द्वारा ही यह विद्या सम्पूर्ण लोक में विस्तृत हुई।
आयुर्वेद की मुख्य तीन परम्पराएँ हैं-भारद्वाज, धनवन्तरि और कश्यप। आयुर्वेद विज्ञान के आठ अंग है।
दूसरा प्रमुख शास्त्र है-रसायन शास्त्र। रसायन शास्त्र का प्रारंभ वैदिक यग से माना गया है। प्राचीन ग्रंथों में रसायन शास्त्र के रस का अर्थ होता है-पारद। पारद को भगवान शिव का वीर्य माना गया है। रसायन शास्त्र के अन्तर्गत विभिन्न प्रकार के खनिजों का अध्ययन किया जाता है।
ज्योतिष शास्त्र वैदिक साहित्य का ही एक अंग है। इसमें सूर्य, चन्द्र, पृथ्वी, नक्षत्र, ऋत, मास आदि की स्थितियों पर गंभीर अध्ययन किया जाता है। आर्यभट्ट ज्योतिष गणित के महान् विद्वान में माने जाते हैं।
प्राचीन काल से ही भारत में गणित शास्त्र का विशेष महत्त्व रहा है। यह सभी जानते हैं कि शून्य एवं दशमलव की खोज भारत में ही हुई है। यह भारत के द्वारा विश्व को दी गई अनमोल देन है। भारतीय परम्परा में भगवान शिव को संगीत तथा नृत्य का प्रथम आचार्य कहा गया है। कहा जाता है कि नारद ने भगवान शिव से संगीत का ज्ञान प्राप्त किया था। इस विषय पर अनेक ग्रंथ प्राप्त होते हैं।
प्राचीन काल से ही शासन व्यवस्था धर्म पर आधारित थी। प्रमुख धर्म मर्मज्ञों वैरवान्स, अत्रि, उशना, कण्व, कश्यप, गाय आदि ने धर्म के विभिन्न सिद्धान्तों एवं रूपों की विवेचना की है।
चार पुरुषार्थों में अर्थ का दूसरा स्थान है। महाभारत में वर्णित है कि ब्रह्मा ने अर्थशास्त्र पर लाख विभागों के एक ग्रंथ की रचना की है। अर्थशास्त्र के अन्तर्गत केवल वित्त सम्बन्धी चर्चा का ही उल्लेख नहीं किया गया है। कौटिल्य अर्थशास्त्र में धर्म, अर्थ, राजनीति, दण्डनीति आदि का विस्तृत उपदेश है। अतः प्राचीन भारतीय विज्ञान का कोष समृद्ध था।