पर्यावरण प्रदूषण
Paryavaran Pradushan
बहुत-से विज्ञानियों का मानना है कि द्वितीय विश्व युद्ध से पहले वायु शुद्ध थी। इस युद्ध के बाद पर्यावरण प्रदूषित होने लगा। लेकिन सचाई यह है कि पर्यावरण दूषित होना द्वितीय युद्ध से पहले ही आरम्भ हो गया था। यह कभी से – होना शुरू हुआ हो पर इसके लिए साफ तौर पर ‘हम’ ही ज़िम्मेदार हैं। लकड़ी, कोयला जलाने के प्रचलन से पर्यावरण दूषित होना शुरू हुआ। इससे बचने के लिए चिमनी का आविष्कार हुआ। बाद में, पता चला कि सल्फर डाइ-ऑक्साइड गैस पर्यावरण प्रदूषित कर रही है। अब तो पूरे देश खासतौर पर नगरों व महानगरों का पर्यावरण दूषित हो रहा है। वायु प्रदूषण का प्रभाव लंबे समय तक रहता है। इससे अस्थमा, एम्फीसीमा, इसोफेगस जैसे रोग हो रहे हैं। इस वातावरण में हर जीव प्रभावित हो रहा – है। पर्यावरण का प्रभाव वनस्पति, पेड़-पौधे पर पड़ रहा है। इस कारण पौधे सूखने और मुरझाने लगते हैं। कार्बन डॉआक्साइड के कारण बर्फ कम पड़ रही है। गर्मी की मात्रा बढ़ गई है। वायु शुद्ध रखने से पर्यावरण शुद्ध हो सकता है। शरीर में साँस न जाए तो व्यक्ति कुछ पल ही जीवित रह सकता है। शरीर में जल न जाए तो लोग दस-बीस या तीस दिन भी जिंदा रह सकते – हैं। वस्तुतः शरीर में वसा पिघल कर भोजन की आपूर्ति करता है। औद्योगिक क्रान्ति ने जल प्रदूषित कर दिया है। छोटे-बड़े कुटीर उद्योगों ने जल पीने लायक नहीं छोड़ा है। इस कारण व्यक्तिं नाना बीमारियों से ग्रसित है। जल प्रदूषित न हो, इसके लिए बड़े पैमाने पर काम किया जा रहा है और भी ज़रूरत है। अंधाधुंध औद्योगीकरण पर नियंत्रण से जल प्रदूषित होने से बचाया जा सकता है। पर्यावरण को दूषित करने वाला ध्वनिप्रदूषण भी है। यह हमें असमय बहरा बना रहा है। कानफोड़ गाड़ियों पर नियंत्रण कर ध्वनिप्रदूषण से बचा जा सकता है। इसके अतिरिक्त असमय और गैरजरूरी लाउडस्पीकर बजाने पर नियंत्रण से भी यह समस्या सुलझाई जा सकती है। ध्वनिप्रदूषण का सबसे बड़ा नुकसान दिल और दिमाग को होता है। लगातार शोर सनने से श्रवण शक्ति निर्बल होती है और हृदयाघात के ख़तरे बढ़ते हैं। ईधन से प्राप्त ऊर्जा हमारे जीवन का आधार है। इसके लिए सघन वन काटे जा रहे हैं। यह काम पर्यावरण बिगाड़ रहा है। अगर पेड़ काटे जा रहे हैं तो उतनी तेजी से लगाए भी तो जाने चाहिए। अधिक वन वर्षा करते हैं और पर्यावरण शुद्ध रखने में सहायक हैं। अगर हम स्वस्थ रहना चाहते हैं तो पर्यावरण प्रदूषित होने से बचाना होगा। अगर इस ओर तेज़ी से कदम नहीं उठाया गया तो ऐसा दिन आ सकता है जब व्यक्ति व्यक्ति के लिए तरसेगा।