परीक्षा से डर लगता है
Pariksha Se Dar Lagta Hai
परीक्षा से डर लगना स्वाभाविक है। हम सभी दूसरों की नजरों में भले बनना चाहते हैं। इसलिए हम अपने आपको वैसा नहीं दिखाते जैसे कि हम हैं। हम अपने आपको वैसा दिखाते हैं जैसे कि हम दिखना चाहते हैं। परीक्षा हमारी इस इच्छा का भंडाफोड करती है। वह हमारी वास्तविकता को उजागर कर देती है। उससे भी अधिक हमें अच्छे-बुरे के खानों में बाँट देती है। हम नहीं चाहते कि हमें कोई किसी से छोटा सिद्ध करे। परीक्षा हमें किसी से छोटा या बड़ा सिद्ध कर देती है। इस कारण हम परीक्षा से डरते हैं। जरूरी नहीं कि परीक्षा हर किसी को डराए। अच्छे योग्य और कुशल लोगों को परीक्षा से आनंद मिलता है। उन्हें लगता है कि परीक्षा उन्हें सबसे अच्छा सिद्ध कर देगी। इसलिए कहें कि परीक्षा से वे लोग डरते हैं जिन्हें अपनी योग्यता का विश्वास नहीं होता या जो आलस में पड़े रहना चाहते हैं। परीक्षा हमें तैयारी के लिए प्रेरित करती है। हमें कष्ट उठाना पड़ता है। इस कष्ट से बचने के लिए, हम परीक्षा से बचते हैं। परंतु जब परीक्षा सिर पर आ ही पड़ती है तो यह तनाव सवार हो जाता है कि कहीं हम अपने अन्य साथियों की तुलना में अधिक छोटे न सिद्ध हो जाएँ। यहीं से डर और तनाव पैदा होता है। ये परीक्षाएँ जीवन का अनिवार्य अंग हैं। इनसे बचकर नहीं रहा जा सकता। अत: सबसे अच्छा रास्ता यही है कि परीक्षा को चुनौती मानकर इसे स्वीकार किया जाए और परिणाम ईश्वर पर छोड़ दिया जाए।