परहित सरिस धर्म नहीं भाई
Parhit Saris Dharam Nahi Bhai
‘परहित सरिस धर्म नहीं भाई। पर पीडा सम नहिं अधमाई’ चौपाई महाकवि तुलसी द्वारा रचित गोस्वामी तुलसीदास की है। भरत की प्रार्थना पर मर्यादा पुरुषोत्तम राम साधु और असाधु की चर्चा करते हैं और उनमें भेद बताते हैं। वे कहते हैं कि दूसरे का हित करने के समान संसार में अन्य कोई श्रेष्ठ धर्म नहीं है और दूसरों को पीड़ित करने के समान अन्य कोई पाप नहीं है। जो व्यक्ति स्वार्थ को परे रखकर दूसरों के हित के लिए सदा काम करता रहता है, वह परहित करता है। इसके विपरीत जो स्वार्थ सामने रखकर दूसरों को दु:खी करता रहता है वह परपीड़ा है। व्यक्ति को दूसरों की पीड़ा हरण करने का सदा प्रयास करते रहना चाहिए। परस्पर विरोध की भावना को घटाना चाहिए और प्रेम के भाव को बढ़ाना चाहिए। जो व्यक्ति दीन-दुखियों व कमज़ोरों की मदद करता है वह परहित का काम करता है। आवश्यकता पड़ने पर जो व्यक्ति नि:स्वार्थ भाव से दूसरों की सहायता के लिए तत्पर रहता है, वह परहित है। जो व्यक्ति मन से, वचन से और कर्म से समाज के मंगल के लिए सदा तत्पर रहता है, वह परहित है। वस्तुतः गोस्वामी तुलसीदास कहना चाहते हैं कि इस लोक में परहित अर्थात् परोपकार ही सबसे बड़ा सुख है और इसीसे सबकी उन्नति संभव है। परहित करने वाले में शारीरिक शक्ति सदा बनी रहती है। शरीर बलवान होता है और अपराजेय बनता है। उसमें सहनशीलता आती है और सदा शांत रहता है। उसे धैर्य कभी अपने मार्ग से डिगा नहीं सकता। उसमें सब कुछ करने की शक्ति आ जाती है। उसमें वचन परिपालन में आत्मविश्वास जगता है और सुखपूर्वक लौकिक जीवन व्यतीत करता है। ऐसे ही व्यक्ति अपनी इंद्रियों को वश में करते हैं। कालिदास ने परहित का उदाहरण दिया है-वृक्ष अपने सर पर तीव्र धूप धारण करता है पर दूसरों को छाया प्रदान करता है। महाकवि हर्ष सूर्य को धन्य कहते हैं जिसका पूर्ण प्रयास परहित में है। परहित की विशेषताएँ पंडित अयोध्यासिंह उपाध्याय हरिऔध ने ‘प्रियप्रवास’ में यों बताई हैं
विपत्ति से रक्षण सर्वभूत का, सहाय होना असाहय का
उबारना संकट से स्वजाति का, मनुष्य का सर्वप्रधान धर्म है।
व्यासजी ने भी परोपकाराय पुण्याय कहकर परहित के धर्म को मान्यता दी है। ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामयः’ कामना कर ऋषियों ने मानवीय धर्म निभाया है। भतृहरि ने कहा है ‘परोपकाराय सतां विभूतयः’ इसमें इस राजा ने धर्म का चरम लक्ष्य बता दिया है। यह सब प्रमाणित करता है कि परहित के समान दुनिया में कोई अन्य धर्म नहीं है।